लखीमपुर खीरी। दीपावली का पर्व पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्तियों को बड़े चाव से खरीदते हैं और श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी के आह्वान और समृद्धि की कामना से पूजी गई ये मूर्तियाँ हमारे धार्मिक जीवन का अटूट हिस्सा हैं। लेकिन पर्व समाप्त होने के बाद अक्सर देखा जाता है कि लोग इन पूजी हुई मूर्तियों को इधर-उधर फेंक देते हैं या किसी सार्वजनिक स्थान पर छोड़ आते हैं।
इस प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए लखीमपुर खीरी के स्वतंत्र नेता रामजी पांडे ने कहा कि, "यह हमारी श्रद्धा और भक्ति की पराकाष्ठा है कि एक ओर हम मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठित मानते हैं, परंतु समय के साथ हम उन्हें सड़क के किनारे या किसी खंभे के पास छोड़ने में भी हिचकिचाते नहीं हैं। यह हमारी धार्मिक संवेदनहीनता को दर्शाता है। सनातन धर्म का मर्म न समझकर, उसे अनदेखा कर देना और फिर उसकी रक्षा के नारे लगाना अत्यंत खेदजनक है।"
उन्होंने आगे सुझाव दिया कि मिट्टी की मूर्तियों को यदि जल प्रवाहित नहीं कर सकते हैं तो खेत में गड्ढा खोदकर दबा सकते हैं, जिससे मूर्ति मिट्टी में मिलकर फिर से प्रकृति का हिस्सा बन सके। सार्वजनिक स्थलों पर मूर्तियाँ फेंकने से समाज की धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुँचती है और इससे हमारी सामाजिक जिम्मेदारियों की भी अवहेलना होती है।
रामजी पांडे के अनुसार, यह हम सभी का दायित्व है कि हम पूजी गई मूर्तियों का सम्मान बनाए रखें और उन्हें उचित तरीके से विसर्जित करें।