लखीमपुर सदर, से संभावित निर्दलीय प्रत्याशी रामजी पांडे ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म फेसबुक वॉट्सएप का उपयोग करके लखीमपुर में एक जनमत संग्रह करवाया था जिसमें जनता ने उन्हें 2027 का चुनाव लड़ने के लिए कहा है इसके बाद उन्होंने लखीमपुर की राजनीति में अपनी उपस्थित दर्ज करानी शुरू कर दी है। अब जब लखीमपुर की राजनीति में उनका नाम चर्चा में आने लगा तो लोगों में उनके जीवन परिचय को जानने की उत्सुकता तेज होने लगी है,उसी का हल लेकर हम आज आप के बीच उपस्थित हुए है।
मिली जानकारी के अनुसार, रामजी पांडे का जन्म 5 मार्च 1980 को लखीमपुर खीरी के उमरपुर गांव में हुआ था। उनके परिवार में दो भाई-बहन हैं। उनके पिता, कल्लू पांडे,गांव में शुरू से ही दबंग प्रवृत्ति के व्यक्ति रहे हैं और उन पर कई मर्डर के केस भी चल चुके हैं। उनके बारे में लोगो से बातचीत करने पर पता चला कल्लू पांडे ने हमेशा आम लोगों की मदद की है, एक जमाना था जब उनकी ख्याति जिले भर में फैल गई थी और थी कारण रहा कि उनका राजनीतिक दबदबा एक दशक तक जिले की राजनीति में छाया रहा।
वहीं, रामजी पांडे बेहद शांत स्वभाव के नेक दिल इंसान हैं। जब वह 9 वर्ष के थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया, जिसके बाद वह गाँव छोड़कर लखीमपुर आ गए। अपने पिता की तरह रामजी पांडे का भी लोगों की मदद करने में काफी मन लगता था। इसके कारण वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ समाजसेवा में भी सक्रिय हो गए। उनका जीवन निस्वार्थ सेवा का प्रतीक रहा है। उन्होंने हमेशा ही समाज सेवा को अपना धर्म माना और अनेक सामाजिक अभियानों में सक्रिय भागीदारी निभाई। उनकी नेतृत्व क्षमता, न्यायप्रियता और विकास के प्रति समर्पण ने उन्हें लोगों के बीच एक लोकप्रिय व्यक्ति बना दिया है।
शिक्षा और समाज सेवा का संगम
रामजी पांडे का मन पढ़ाई से ज्यादा समाजसेवा में लगने लगा जिससे उनकी शिक्षा 10वीं तक होने के बाद अधूरी रह गई, लेकिन इसके बाद उन्होंने समाज सेवा में कदम रखा। वे विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दों पर काम किया। इसके अलावा, लखीमपुर की बड़ी रेलवे लाइन और फ्लाईओवर ब्रिज की मांग को लेकर अनशन भी कर चुके हैं।
रामजी पांडे की शादी और राजनीतिक जीवन की शुरुवात
लोग बताते है कि 24 वर्ष की उम्र में रामजी पांडे ने लखीमपुर में कोर्ट में लव मैरिज कर ली और दिल्ली चले गए। वहां पर भी उन्होंने अपने स्वभाव के अनुसार दिल्ली में चल रहे अन्ना आंदोलन से जुड़कर कई साल काम किया।
आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी में भी उन्होंने 10 साल काम किया। उनके काम से प्रभावित होकर अरविंद केजरीवाल ने उन्हें खुद की विधानसभा नई दिल्ली की जिम्मेदारी देकर उन्हें जोन इंचार्ज बना दिया, जहां पर उन्होंने अरविंद केजरीवाल से राजनीति की ट्रेनिंग ली। इसके बाद उन्हें पार्टी की मजदूर इकाई श्रमिक विकास संगठन का जिला अध्यक्ष और फिर एक साल बाद ही उत्तर प्रदेश का उपाध्याय बनाया गया।
अपने शहर से प्यार के कारण हुई लखीमपुर में वापसी
लोग कहते है कि आम आदमी पार्टी उनके मेहनती स्वभाव के कारण पार्टी उन्हें प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी देना चाहती थी, लेकिन रामजी पांडे अपने लखीमपुर से जुड़े रहना चाहते थे। इसी कारण संगठन में कुछ वैचारिक मतभेद उभरने लगे, जिससे आहत होकर रामजी पांडे ने 2023 में आम आदमी पार्टी छोड़ दी। इसके बाद वे लखीमपुर खीरी में आकर निर्दलीय अपनी जड़ें तैयार करने लगे। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने एक साल में ही लखीमपुर की राजनीति में जनता के दिलों में अपनी खास जगह बना ली है।
डिजिटल युग से रामजी पांडे का चुनावी सफर
रामजी पांडे ने अपने आप को ग्राउंड के अलावा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी विस्तारित किया है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वे लगातार सक्रिय रहते हैं और जनता से सीधे संवाद स्थापित करते हैं। उनकी हर पोस्ट और संदेश में एक खास बात होती है – जनता के प्रति उनकी निष्ठा और सेवा भाव। हिंदी भाषा में उनके संदेश जनता के दिलों तक सीधे पहुंचते हैं और भावनात्मक रूप से उन्हें जोड़ते हैं।
जनता के साथ एकजुटता
रामजी पांडे का मानना है कि किसी भी क्षेत्र का विकास तभी संभव है जब जनता और नेता एक साथ मिलकर काम करें। वे हमेशा जनता के साथ खड़े रहते हैं, उनकी समस्याओं को सुनते हैं और उन्हें हल करने का हर संभव प्रयास करते हैं। उनकी यही एकजुटता और समर्पण उन्हें एक आदर्श नेता के रूप में प्रस्तुत करता है।
लखीमपुर सदर के आगामी चुनाव में रामजी पांडे की उम्मीदवारी एक नई उम्मीद की किरण लेकर आई है। उनके व्यक्तित्व, सेवा भाव और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे इस क्षेत्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जनता का अपार समर्थन और उनकी लोकप्रियता उन्हें एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करती है।