लखीमपुर खीरी का देवकली तीर्थ ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है -ramji pandey


लखीमपुर खीरी जिले के अलीगंज मार्ग पर स्थित देवकली तीर्थ स्थल एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां महाभारतकालीन पांडवों के पौत्र महाराज परीक्षित के सर्पदंश से हुई मृत्यु पर उनके पुत्र राजा जनमेजय ने विशाल सर्प यज्ञ कराया था। यज्ञकुंड आज भी यहाँ मौजूद है और यह स्थान लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है।

इतिहास और मान्यता
माना जाता है कि सर्प यज्ञ के समय शेष नाग के भांजे अस्तकारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश को बचाया था। मुनि को यह आशीर्वाद मिला था कि सच्चे मन से उनका नाम लेने से ही सर्प वापस चले जाएंगे। फिर भी, जो सर्प काटेगा, उसका सिर शीशम के पत्ते की तरह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। यहाँ के यज्ञकुंड की मिट्टी लोग अपने घरों में ले जाकर रखते हैं, जिससे घरों में सर्प नहीं आते हैं।

धार्मिक और प्राकृतिक स्थल
इस ऐतिहासिक स्थल पर एक प्राकृतिक तालाब भी है, जिसका प्रवेश द्वार और घाट इस प्रकार से बने हैं कि थोड़ी व्यवस्था के बाद महिलाओं और पुरुषों के स्नान की सुरक्षित सुविधा बन सकती है। मंदिर प्रांगण में कुछ खंडित मूर्तियाँ भी देखने को मिलती हैं, जो कई सौ वर्ष पहले उपद्रवकारियों द्वारा तोड़ी गई थीं।

यज्ञ भूमि और पुराना कुआँ
मुख्य मंदिर के पास ही ऐतिहासिक यज्ञ भूमि है, जिससे आज भी काली मिट्टी निकलती है, जबकि आसपास के क्षेत्र में वैसी मिट्टी नहीं है। यज्ञ भूमि के पास एक बेहद पुराना कुआँ भी है, जो अब सूख कर अनुपयोगी हो गया है।

भक्तों की भीड़
सावन के महीने में यहाँ भक्तों की भारी भीड़ रहती है। नाग पंचमी के दिन भक्त यहाँ की यज्ञ भूमि की मिट्टी ले जाकर अपने उन परिसरों में रखते हैं, जहाँ सर्प निकलते हैं।

लखीमपुर के स्वतंत्र नेता रामजी पांडे ने बताया कि हमारे जिले का यह देवकली तीर्थ स्थल, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के अलीगंज गोला मार्ग पर स्थित है। यह स्थान ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है।