सुप्रीम कोर्ट ने कहा संपत्ति पर जिसका 12 साल से कब्जा है उसे बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता

नई दिल्ली, 5 जुलाई 2024 सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें संपत्ति के कब्जे और अवैध कब्जाधारकों के कानूनी अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इस निर्णय के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संपत्ति पर जिसका कब्जा है, उसे बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता है।

फैसला और उसकी पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजो की बेंच जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल्लाह नजीर और जस्टिस शाह की बेंच ने  कहा अगर किसी व्यक्ति ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है, तो कानून मालिक के पास भी उसे हटाने का कोई अधिकार नहीं है।

कानूनी सिद्धांत और सुरक्षा
इस निर्णय के तहत, यह स्पष्ट किया गया है कि संपत्ति पर अवैध कब्जा करने वाले व्यक्ति को भी कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने लगातार 12 साल तक किसी संपत्ति पर कब्जा रखा है और उस दौरान वास्तविक मालिक ने उसे हटाने के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाया है, तो कब्जाधारक को ही उस संपत्ति पर कानूनी अधिकार और मालिकाना हक मिलेगा।

न्यायालय का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह सिद्धांत “प्रत्यक्ष कब्जाधारिता” (Adverse Possession) के कानून पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति एक निश्चित अवधि तक किसी संपत्ति पर लगातार और सार्वजनिक रूप से कब्जा रखता है, तो उसे उस संपत्ति का कानूनी मालिक माना जाएगा।

न्यायिक विश्लेषण
इस फैसले ने भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत की है, जो संपत्ति अधिकारों और कब्जाधारिता के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह निर्णय यह भी सुनिश्चित करता है कि संपत्ति के मामलों में कानून का पालन करते हुए निष्पक्षता बनी रहे।

जनता की प्रतिक्रिया
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद, विभिन्न कानूनी विशेषज्ञों और जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे न्याय और निष्पक्षता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे संपत्ति मालिकों के अधिकारों के खिलाफ बता रहे हैं।

यह ऐतिहासिक फैसला निश्चित रूप से भारतीय कानूनी प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत करेगा और संपत्ति अधिकारों के मामले में निष्पक्षता और न्याय को बढ़ावा देगा।

नोट: यह लेख सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है और इसमें दी गई जानकारी विश्वसनीय और सत्यापित स्रोतों पर आधारित है।

इस तरीके का फैसला कानून की किस धारा के तहत आता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय कानून में "प्रत्यक्ष कब्जाधारिता" (Adverse Possession) के सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) और भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) के विभिन्न प्रावधानों से संबंधित है।

भारतीय कानून में प्रत्यक्ष कब्जाधारिता (Adverse Possession)
भारतीय सीमा अधिनियम, 1963 (The Limitation Act, 1963)
प्रत्यक्ष कब्जाधारिता से संबंधित सबसे प्रमुख कानून भारतीय सीमा अधिनियम, 1963 है। इसके तहत प्रमुख धारा निम्नलिखित हैं:

धारा 27 (Section 27): यह धारा बताती है कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल या उससे अधिक समय तक किसी संपत्ति पर कब्जा बनाए रखता है, तो वास्तविक मालिक के अधिकार समाप्त हो जाते हैं और कब्जाधारक को मालिकाना हक प्राप्त हो जाता है।
भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (The Code of Civil Procedure, 1908)
भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 65 और धारा 68 भी प्रत्यक्ष कब्जाधारिता से संबंधित मामलों में उपयोगी होती हैं:

धारा 65 (Section 65): इस धारा के तहत, किसी भी संपत्ति के कब्जाधारी को निष्कासन आदेश (Eviction Order) प्राप्त करने के लिए एक दीवानी अदालत में मामला दर्ज करना होता है।

धारा 68 (Section 68): इस धारा के तहत, न्यायालय कब्जे के अधिकार को मान्यता देता है और कब्जाधारिता के मामलों में न्यायिक समीक्षा करता है।

निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इन कानूनी धाराओं और प्रावधानों पर आधारित है, जो प्रत्यक्ष कब्जाधारिता के सिद्धांत को मान्यता देते हैं। इस सिद्धांत के तहत, यदि कोई व्यक्ति लगातार 12 साल या उससे अधिक समय तक किसी संपत्ति पर कब्जा बनाए रखता है और इस अवधि के दौरान वास्तविक मालिक ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है, तो कब्जाधारक को ही उस संपत्ति का कानूनी मालिक माना जाता है।