मध्य प्रदेश के 80 करोड़ रुपए के चिटफंड घोटाला में पूर्व मंत्री के बेटे की बढ़ सकती हैं मुश्किलें


छतरपुर, पंकज पाराशर
मध्य प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव पर 80 करोड़ रुपए के कथित चिटफंड घोटाले में शिकंजा कसता दिख रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एंट्री हो गई है। ईडी ने श्रद्धा सबुरी कमोडिटीज़ प्राइवेट लिमिटेड के 80 करोड़ के कथित चिटफंड घोटाले की जांच शुरू कर दी है। इस मामले में कंपनी से जुड़े नितिन वलेचा सहित अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनः मामले को खोलने के लिए याचिका दाखिल की है।

अभिषेक भार्गव, जो इस कंपनी के डायरेक्टर के रूप में जुड़े थे, इस केस में फिलहाल हाई कोर्ट से राहत प्राप्त किए हुए हैं। लेकिन गिरफ्तार हुए अन्य आरोपियों ने अभिषेक की गिरफ्तारी नहीं होने और उन्हें आरोपी नहीं बनाए जाने पर सवाल उठाए थे। अब ईडी ने नए सिरे से जांच शुरू की है, जिससे अभिषेक भार्गव की मुश्किलें फिर से बढ़ सकती हैं।

केस को नए सिरे से खोलने की याचिका
ईडी ने रायसेन पुलिस से केस की एफआईआर और अन्य दस्तावेज़ मांगे थे, जो उन्हें उपलब्ध कराए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में केस को नए सिरे से खोलने के लिए याचिका दाखिल की गई है। पूरा मामला करोड़ों के चिटफंड घोटाले का है और साथ ही पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव को आरोपी नहीं बनाए जाने को लेकर कई सवाल खड़े होते रहे हैं।

श्रद्धा सबुरी कमोडिटीज़ प्राइवेट लिमिटेड ने 2012 में रायसेन, भोपाल, सागर और अन्य जिलों में अपने पैर पसारना शुरू किया था। कंपनी ने करीब 400 निवेशकों की कमाई को दोगुना करने के बहाने उनसे कथित तौर पर 80 करोड़ रुपए की ठगी की थी। इन निवेशकों में ज्यादातर सेवानिवृत्त अधिकारी और महिलाएं भी शामिल हैं। जब निवेशकों ने तय वक्त पर अपना पैसा वापस मांगा तो कंपनी का दफ्तर बंद मिला। अक्टूबर 2015 में निवेशकों ने रायसेन कोतवाली का घेराव किया और कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने कंपनी के प्रबंधक वसंत उपाध्याय, नितिन वलेचा, बीपेंद्र भदौरिया सहित अन्य पदाधिकारियों को गिरफ्तार किया।

अभिषेक भार्गव पर कस सकता है शिकंजा
2016 में जेल में बंद बसंत उपाध्याय ने दूसरे निदेशकों के खिलाफ धारा 319 के तहत सत्र न्यायालय में आवेदन दायर किया। इसके आधार पर अभिषेक भार्गव सहित सभी आरोपियों के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120बी और निवेशकों के हितों के संरक्षण की धारा 3/6 के तहत गैर जमानती वारंट जारी किया गया। अभिषेक भार्गव ने सरेंडर किया और 50,000 रुपये का जमानत बांड और 20 लाख रुपये की एफडी जमा करने पर उन्हें ज़मानत मिली।

अभिषेक भार्गव ने कहा कि उन्हें फंसाया जा रहा है और यह उनके पिता गोपाल भार्गव के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की साजिश है। 2017 में उन्होंने जबलपुर उच्च न्यायालय में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने एफआईआर में अभिषेक का नाम नहीं होने पर उन्हें राहत दी, लेकिन पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए।

ईडी ने शुरू की चिटफंड घोटाले की जांच
ईडी की जांच और नितिन वलेचा की सुप्रीम कोर्ट में याचिका के चलते अब अभिषेक भार्गव एक बार फिर से जांच के दायरे में आ सकते हैं। वलेचा का दावा है कि वह कभी इस कंपनी का हिस्सा नहीं था और उसे अभिषेक भार्गव ने नौकरी का ऑफर दिया था। इस स्थिति में अभिषेक भार्गव की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।

यह मामला बुंदेलखंड की सियासत में भ्रष्टाचार की एक और मिसाल पेश करता है, जहां राजनेताओं के परिवारों पर गंभीर आरोप लगते हैं और कानून की पकड़ में आने से बचने की कोशिशें जारी रहती हैं।