वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं।

6 जून, 2024 स्थान: नई दिल्ली हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को महिलाएँ वट सावित्री व्रत मनाती हैं। इस पवित्र व्रत का संबंध एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जो सतयुग की महान नारी सावित्री और उनके पति सत्यवान की कहानी पर आधारित है। इस व्रत का उद्देश्य न केवल पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करना है, बल्कि इसे एक उदाहरण के रूप में भी देखा जाता है जिसमें नारी शक्ति और धैर्य की महत्ता को प्रकट किया गया है।

सावित्री, राजा अश्वपति की पुत्री, ने सत्यवान नामक राजकुमार से विवाह किया था। सत्यवान एक धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ व्यक्ति थे, लेकिन उनके जीवन में एक कठिनाई थी - उन्हें मात्र एक वर्ष का जीवन और शेष था। यह जानते हुए भी, सावित्री ने अपने पतिव्रता धर्म का पालन किया और पति के जीवन को बचाने का संकल्प लिया।

जिस दिन सत्यवान के प्राण हरने के लिए यमराज आए, सावित्री ने अपने अद्वितीय धैर्य और बुद्धिमानी से यमराज को प्रभावित किया। उसने यमराज से धर्म की बात की और अंततः अपनी तपस्या, व्रत और बुद्धिमानी से अपने पति के जीवन को वापस पाने में सफल रही। इस प्रकार, सावित्री ने पति की दीर्घायु के लिए किए गए अपने अटल प्रेम और दृढ़ संकल्प का उदाहरण प्रस्तुत किया।

वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। वट वृक्ष को सावित्री और सत्यवान की कथा का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसकी जड़ों में स्थायित्व और दीर्घायु की शक्ति होती है। महिलाएँ वृक्ष के चारों ओर धागा बांधकर परिक्रमा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए करती हैं।

व्रत के दौरान महिलाएँ निर्जला रहती हैं, जो उनके संकल्प और धैर्य को दर्शाता है। पूजा के बाद, वे अपने पति के साथ आशीर्वाद प्राप्त करती हैं और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस व्रत के माध्यम से समाज में महिलाओं की निष्ठा, प्रेम और शक्ति का सम्मान किया जाता है।

वट सावित्री व्रत भारतीय समाज में नारी की महत्ता और उसके धैर्य की प्रशंसा का पर्व है। यह नारी शक्ति की प्रतीक सावित्री के आदर्शों का पालन करने का प्रेरणास्त्रोत है। साथ ही, यह पर्व पारिवारिक एकता और सामाजिक सद्भावना को भी बढ़ावा देता है।

इस प्रकार, वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व रखता है, बल्कि समाज में नारी शक्ति और धैर्य की महानता का प्रतीक भी है। यह व्रत महिलाओं के संकल्प और उनके पति के प्रति उनके प्रेम और निष्ठा को उजागर करता है, जिससे समाज में पारिवारिक मूल्यों और नारी के प्रति सम्मान को बढ़ावा मिलता है।