नई दिल्ली उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज राष्ट्र और अर्थव्यवस्था दोनों के लिये ही रीढ़ का काम करने वाले अनुसंधान और विकास (आर एण्ड डी) की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। आयुर्विज्ञान विकास के क्षेत्र में नवाचार के महत्व पर जोर देते हुये उन्होंने कहा कि अनुसंधान और विकास प्रयास महज कार्य निष्पादन ही नहीं बल्कि इससे भी आगे बढ़कर मानवता के क्षेत्र में योगदान का सबसे उच्च स्वरूप है। उन्होंने आगे कहा, “विज्ञान और अनुसंधान के माध्यम से मानवता की सेवा के हमारे प्रयास अस्थायी असफलताओं के कारण बाधित नहीं होने चाहिये।“
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण के प्रयासों में भारत के योगदान पर प्रकाश डाला जिसमें टीका मैत्री पहल के तहत भारत से कोवैक्सीन दान स्वरूप दी गई। यह लंबे समय से चले आ रहे “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्वांत के तहत भारत के योगदान को दर्शाता है।
श्री धनखड़ ने उन्नत प्रौद्योगिकी पर ध्यान रखते हुये नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान और विकास गतिविधियों में तेजी लाने के लिये उद्योग जगत प्रमुखों से संस्थानों को समर्थन और सहारा दिये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
हैदराबाद में भारत बायोटेक परिसर में एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुये श्री धनखड़ ने हाल के समय में पद्म पुरस्कारों की बढ़ी विश्वसनीयता की सराहना की। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज पद्म पुरस्कार अधिक प्रामाणिक है, ये योग्य व्यक्तियों को दिये जा रहे हैं। उन्होंने कहा ’’ये पुरस्कार अब संरक्षण प्राप्त व्यक्तियों अथवा ईवेंट मैनेजमेंट से बनाई प्रतिष्ठा को देखकर नहीं दिये जाते हैं।’’
भारत बायोटेक में आर्थिक चिंताओं को संबोधित करते हुये श्री धनखड़ ने अनावश्यक आयात के कारण बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बाहर जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने इसे स्थानीय उत्पादों और सामाजिक प्रतिबद्वता को बढ़ावा देने के लोकाचार के विरूद्ध बताते हुये इसकी आलोचना की। उन्होंने इसको लेकर लोगों को तीन गंभीर परिणामों की चेतावनी भी दी, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी जिसे टाला जा सकता है, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामान का आयात करने से घरेलू विनिर्माण के समक्ष बाधायें और उद्यमिता के अवसरों का दमन होना।
इस बात को रेखांकित करते हुये कि दुनिया के कई शीर्ष संस्थान अपने पूर्व छात्रों से मजबूती पाते हैं, श्री धनखड़ ने राष्ट्र की वृद्धि और विकास में योगदान के लिये पूर्व छात्रों से आगे आकर थिंक टैंक के माध्यम से एक मजबूत पूर्व छात्र नेटवर्क तैयार करने का आग्रह किया।
उन्नत प्रौद्योगिकियों को प्रणालीबद्ध करने की वकालत करते हुये उपराष्ट्रपति ने उनकी बदलाव लाने की क्षमता को रेखांकित किया और साथ ही उनके अनियंत्रित प्रसार के प्रति आगाह भी किया।
उन्होंने आगे कहा कि जैव प्रौद्योगिकी और दवा अनुसंधान के प्रति अटूट समर्पण के चलते भारत को आज दुनिया की फार्मेसी के तौर पर जाना जाता है।
उपराष्ट्रपति ने देश की तीव्र प्रगति और बढ़ती गतिशीलता को देखते हुये भारत के एक महाशक्ति के तौर पर उभरने की घोषणा की। भारत के भविष्य में विश्वास जताते हुये उन्होंने कहा कि यह विशाल देश जो अब तक नींद में था लेकिन अब इसमें बदलाव आ रहा है और यह तेजी से आगे बढ़ती ताकत बन रहा है।
इस अवसर पर तेलंगाना के राज्यपाल श्री सी पी राधाकृष्णन, प्रबंध निदेशक सुचित्रा एल्ला, कार्यकारी चेयरमैन डा. कृष्णा एल्ला और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।