नई दिल्ली इकोनॉमिस्ट’ ने 23 दिसंबर, 2023 के अपने साल के अंतिम ‘क्रिसमस डबल’ शीर्षक वाले अंक में भारत की मेट्रो रेल प्रणालियों के बारे में एक लेख में इस तथ्य की गलत व्याख्या की है कि “भारत की विशाल मेट्रो व्यवस्था पर्याप्त संख्या में यात्रियों को आकर्षित करने में विफल हो रही है”। इस लेख में तथ्यात्मक अशुद्धियां होने के साथ-साथ वैसे आवश्यक संदर्भ भी अनुपस्थित हैं जिसके आधार पर भारत के बढ़ते मेट्रो रेल नेटवर्क का अध्ययन किया जाना चाहिए।
इस लेख का केंद्रीय बिंदु यह है कि भारत की किसी भी मेट्रो रेल प्रणाली ने अपनी अनुमानित यात्री संख्या का आधा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाई है। लेकिन ऐसा बताते हुए, इस तथ्य की अनदेखी कर दी गई है कि भारत के वर्तमान मेट्रो रेल नेटवर्क के तीन-चौथाई से अधिक हिस्से की कल्पना और उसका निर्माण एवं संचालन दस साल से भी कम समय पहले शुरू किया गया है। कई मेट्रो रेल प्रणालियां तो महज कुछ ही वर्ष पुरानी हैं। फिर भी, देश की सभी मेट्रो प्रणालियों में दैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही 10 मिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है और अगले एक या दो वर्षों में इसके 12.5 मिलियन से अधिक हो जाने की आशा है। भारत में मेट्रो यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी जा रही है और जैसे-जैसे हमारी मेट्रो प्रणाली विकसित होगी, यह संख्या बढ़ती जायेगी। यह भी गौर दिया जाना चाहिए कि देश की लगभग सभी मेट्रो रेल प्रणालियां वर्तमान में परिचालन लाभ अर्जित कर रही हैं।
दिल्ली मेट्रो जैसी एक परिपक्व मेट्रो प्रणाली मेंदैनिक यात्रियों की संख्या पहले ही सात मिलियन से अधिक हो गई है। यह आंकड़ा 2023 के अंत तक दिल्ली मेट्रो के लिए अनुमानित संख्या से कहीं अधिक है। वास्तव में, विश्लेषणों से यह पता चलता है कि दिल्ली मेट्रो से शहर के भीड़भाड़ वाले गलियारों पर दबाव कम करने में मदद मिली है। भीड़भाड़ के इस दबाव से अकेले सार्वजनिक बस प्रणालियों के सहारे नहीं निपटा जा सकता था। इस तथ्य को शहर के कुछ गलियारों में परखा जा सकता है जहां डीएमआरसी बहुत अधिक भीड़भाड़ वाले घंटों (पीक-आवर) और भीड़भाड़ वाली दिशा (पीक-डायरेक्शन) में यातायात के क्रम में 50,000 से अधिक लोगों को सेवा प्रदान करता है। अकेले सार्वजनिक बसों के माध्यम से इतनी अधिक यातायात संबंधी मांग को पूरा करने हेतु, उन गलियारों में एक घंटे के भीतर 715 बसों को एक ही दिशा में यात्रा करने की आवश्यकता होगी यानी प्रत्येक बस के बीच लगभग पांच सेकंड की दूरी - एक असंभव परिदृश्य! दिल्ली मेट्रो के बिना दिल्ली में सड़क यातायात की स्थिति की कल्पना करना डरावना-सा है।