नई दिल्ली सरकार से जुड़े हुए और राजनीतिक और सामाजिक कामों से जुड़े हुए देश के सभी लोग ये विकसित भारत संकल्प यात्रा को सफल बनाने के लिए समय दे रहे हैं, जा रहे हैं, तो यहां के सांसद के नाते मेरा भी दायित्व बनता था कि मुझे भी उस कार्यक्रम में समय देना चाहिए। तो मैं एक सांसद के रूप में, आपके सेवक के रूप में आज सिर्फ इसमें आप ही तरह हिस्सा लेने के लिए आया हूं।
हमारे देश में सरकारें तो बहुत आई, योजनाएं भी बहुत बनीं, बातें भी बहुत हुई, बड़ी-बड़ी बातें हुई और उन सबका जो अनुभव था, जो निचोड़ था जो मुझे लगा कि जो देश का सबसे ध्यान देने वाला काम जो है, वो ये है कि सरकार जो योजना बनाती है, जिसके लिए बनाती है, जिस काम के लिए बनाती है, वो सही समय पर बिना किसी परेशानियों के, वो योजना उस तक पहुंचे। अगर प्रधानमंत्री आवास योजना है, तो जिसकी झ़ुग्गी है, झोपड़ी है, कच्चा घर है, उसका घर बनना चाहिए। और इसलिए उसको सरकार के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है, सरकार को सामने से जाकर के काम करना चाहिए। और जब से आपने मुझे ये काम दिया है तो अब तक करीब 4 करोड़ परिवारों को पक्का घर मिल चुका है। लेकिन अभी भी खबर मिलती है कि वहां कोई रह गया है, उस गांव में कोई रह गया है तो हमने तय किया कि भई फिर से हम एक बार देश भर में जाएं, जो सरकार की योजनाएं हैं, जिनको मिला हैं उनसे सुनें कि भई क्या-क्या मिला, कैसे मिला?, प्राप्त करने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई, कोई रिश्वत तो नहीं देनी पड़ी, जितना तय था, उतना मिला कि कम मिला। एक बार जाएंगे तो इसका हिसाब-किताब भी हो जाएगा। तो ये विकसित भारत संकल्प यात्रा जो है ना, वो एक प्रकार से मेरी भी कसौटी है, मेरी भी examination है कि मैंने जो कहा था और जो मैं काम कर रहा था, मैं आपके मुंह से सुनना चाहता था और देश भर से सुनना चाहत हूं कि जैसा मैंने चाहा था वैसा हुआ है कि नहीं हुआ है। जिसके लिए होना चाहिए था, उसके लिए हुआ है कि नहीं हुआ है, जो काम होना चाहिए था, हुआ है कि नहीं हुआ है। अब मैं अभी कुछ साथियों को मिला, जिन्होंने आयुष्मान कार्ड का फायदा उठाकर के गंभीर से गंभीर बिमारियों का इलाज करवाया है, उन्होंने एक्सीडेंट हो गया, हाथ-पैर टूट गए तो अस्पताल में जाकर के, मैंने उनको पूछा तो वो कह रहे थे कि साहब इतना खर्चा हम तो कहा से करते, जी लेते ऐसे ही। लेकिन जब आयुष्मान कार्ड आया तो हिम्मत आ गई, ऑपरेशन करवा दिया अब शरीर काम कर रहा है। अब उससे मुझे तो आशीर्वाद मिलता ही है, लेकिन जो सरकार में बाबू लोग हैं ना, अफसर लोग हैं, जो फाइल पर तो योजना को आगे बढ़ाते हैं, अच्छी योजना भी बनाते हैं, पैसे भी रवाना कर देते हैं, लेकिन वहां उनका काम पूरा हो जाता है कि चलो भई 50 लोगों को मिलना था, मिल गया, 100 लोगों को मिलना था, मिल गया, एक हजार गांव में जाना था, चला गया। लेकिन जब वो ये बात सुनता है कि उसने कभी फाइल पर काम किया था, उसके कारण काशी के फलाने मोहल्ले के, फलाने व्यक्ति की जिंदगी बच गई तो वो जो अफसर होता है, ना उसका भी काम करने का उत्साह अनेक गुना बढ़ जाता है। उसको संतोष मिलता है, जब तब वो कागज पर काम करता है, उसको लगता है मैं सरकारी काम कर रहा हूं। लेकिन जब उस काम का फायदा किसी को मिला है, उसको जब वो खुद देखता है, खुद सुनता है तो उसका काम करने का उत्साह बढ़ जाता है। और इसलिए मैंने देखा है कि विकसित भारत संकल्प यात्रा जहां-जहां गई है, वहां पर सरकारी अफसरों पर इतना सकारात्मक प्रभाव हुआ है, उनको अपने काम का संतोष होने लगा है। अच्छा भई ये योजना बनीं, मैंने तो फाइल बनाई थी, लेकिन क्या एक गरीब विधवा के घर में जीवन ज्योति विवाह का पैसा पहुंच गया, मुसीबत की जिंदगी में उसको इतनी बड़ी सहायता मिल गई, तब उसको लगता है कि अरे मैंने तो कितना बड़ा काम किया है। एक सरकारी मुलाजिम जब ये सुनता है तो उसको जीवन का एक नया संतोष मिलता है।