भोला नाथ मिश्रा
नई दिल्ली देवी देवताओं सूफी संतों एवं अवतारी सत्ताओं वाला हमारा देश भारत हमारी जान से ज्यादा प्यारा है तो राम कृष्ण कबीर रहीम का उत्तर प्रदेश हमारा दुनिया से न्यारा है और अवध साम्राज्य से जुड़ा हमारा बाराबंकी दुनिया को इंसानियत का पैगाम देने वाला हमारे दिल की घड़कन है जहां से जो रब है वही राम का संदेश निकलकर दुनिया में फैला है।
वैसे तो बाराबंकी भगवान विष्णु के बाराह अवतार एवं भगवान भोलेनाथ के प्रकटीकरण का साक्षी है लेकिन विष्णु अवतार माने जाने वाले समर्थ स्वामी जगजीवन साहेब और हाजी वारिस अली शाह की पुण्य स्थली भी है जो आज भी दुनिया को भाईचारे का संदेश देने वाला है। अगर जो रब है वहीं राम है का संदेश देने वाले हाजी वारिस शाह बाराबंकी की शान है तो हिन्दू मुसलमानों एकता को एक सूत्र में पिरोकर समर्थ जगजीवन साहेब भी दुनिया में मिशाल कायम कर बाराबंकी का भाल ऊंचा कर रहे हैं।
सतनामी सम्प्रदाय के संस्थापक समर्थ जगजीवन साहेब की तपोस्थली कोटवाधाम आज भी सूफी संत हजरत मलामत शाह की अजर अमर दोस्ती की अनूठा संगम स्थल है जहां पर हिन्दू मुस्लिम दोनों उनके मुरीद शिष्य हैं। जगजीवन साहेब के शिष्य आज भी हिन्दू मुस्लिम एकीकरण के प्रतीक जो धागा पहनते हैं उसमें दोनों कौमों की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है।समर्थ जगजीवन साहेब एवं मलामत शाह की दोस्ती के तमाम अफसाने आज भी लोगों की जुबान पर है और दोनों दोस्तों की अमर कहानी का पैगाम दुनिया में फैला रहे हैं। कोटवा धाम में साहेब की चौखट पर साल एक बार कार्तिक मास में देश दुनिया के कोने कोने से लाखों हिन्दू मुसलमान अपनी हाजिरी देने आते हैं तो देवा शरीफ में हाजी वारिस अली शाह के आस्ताने पर भी इसी महीने मेला लगता है जो एक माह तक चलता है और देश दुनिया के लोग इसमें सहभागिता करते हैं।
दोनों संतों द्वारा मानव जगत को दिया गया संदेशा आज भी प्रासंगिक बना है। शाह का जीवन दर्शन एवं संदेश सर्वधर्म सम्भाव पर आधारित है।
पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की 26 वीं पीढ़ी मे पैदा हाजी वारिश पैदाइशी वली थे। आजादी के समय विखन्डित समाज को उन्होंने अपने अध्यात्मिक संदेश के माध्यम से एक सूत्र मे पिरोने का कार्य किया ।वह अपना संदेशा सुनाने देश की सरहद लांघकर पाकिस्तान बंगलादेश नेपाल व खाड़ी के देश तक गये।उन्होंने अपने अनुयायियों को पीताम्बर प्रदान किया
इनमें हजरत बेदम शाह वारसी जिन्हें खुसरो वारिश पाक भी कहा जाता है।इनके अलावा फैजू शाह ,आसिफ शाह, शाकिर शाह, रहीम शाह, हाफिज प्यारी साहब, ठाकुर पंचम सिंह आदि शामिल थे।हाजी वारिश के संदेश को आगे बढ़ाने मे मुल्तान के अब्र शाह, लाहौर के मुनव्वर अली शाह, कराची के अंबार शाह साहब, बिहार के रजाशाह ,बर्बाद शाह, बछरावा के औघट शाह,इटावा के अबुल हसन शाह ने भी हाजी के अध्यात्मिक मिशन को गति प्रदान की।देवा शरीफ हाजी वारिश का अध्यात्मिक मुख्य केन्द्र था।कार्तिक, सफर एवं चैत के महीने मे हजारों लाखों जायरीन हाजी वारिश के दर पर हाजिरी लगाने आते हैं ।
सदियों से हाजी वारिश का प्रिय देवा हिन्दू मुस्लिम कौमी एकता का प्रतीक बना हुआ हुआ और देश विदेश तक के भक्त आते हैं ।सरकार हाजी वारिश पर लगने वाले मेले एवं मेले आने वाले जायरीनो की व्यवस्था खुद करती है और सारी व्यवस्था सरकारी खजाने से करती है।समर्थ जगजीवन साहेब एवं हाजी वारिस की दर पर माथा नवाने आने का मतलब है कि हम हाजी साहब उनके पैगाम को मानते हैं। उनकी चौखट पर आने वाला न हिन्दू होता है न मुसलमान होता है बल्कि वह इन्सान होता है।धन्यवाद।। सुप्रभात/वंदेमातरम/ गुडमार्निग/ जयहिंद/अदाब/ ऊं भूर्भुव स्व: