प्रकरण...काल भैरव के काशी में स्थापित होने के पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है। एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच यह चर्चा छिड़ गई कि दोनों में बड़ा कौन है? चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिव बहुत क्रुद्ध हुए। उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। इसी कारण काल भैरव को शिव का अंश कहा जाता है। काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करनेवाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया।अब यह मुख उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था। तभी शिवजी प्रकट हुए। उन्होंने भैरव से कहा कि अब तुम्हें ब्रह्म हत्या का दोष लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्हें एक सामान्य व्यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा। जिस स्थान पर यह शीश तुम्हारे हाथ से छूट जाएगा,शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए।
उनके जाते ही शिवजी की प्रेरणा से एक कन्या प्रकट हुई। एक तेजस्वी कन्या, जो अपनी लंबी जीभ से कटोरे में रक्तपान कर रही थी। यह कन्या कोई और नहीं ब्रह्म हत्या थी। इसे शिवजी ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था।शिवजी के कहे अनुसार, भैरव ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोक की यात्रा कर रहे थे और वह कन्या भी उनका पीछा कर रही थी। फिर एक दिन जैसे ही भैरव बाबा ने काशी में प्रवेश किया कन्या पीछे छूट गई। शिवजी के आदेशानुसार काशी में इस कन्या का प्रवेश करना मना था।काशी शिव की नगरी है, जहां वह बाबा विश्वनाथ के रूप में नगर के राजा के तौर पर पूजे जाते हैं। यहां गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया और भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।
काल भैरव के पाप मुक्त होते ही वहां शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया।शिवजी ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में तुम्हारी युगों-युगों तक पूजा होगी। शिव प्रेरणा से जिस स्थान पर काल भैरव रह गए, बाद में वहां काल भैरव का मंदिर स्थापित कर दिया गया। काशी मेंमान्यता है कि भक्तों को बाबा विश्वनाथ के बाद काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है। अन्यथा बाबा विश्वनाथ के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं।