नई दिल्ली ,बदायूं उझानी- मेरे राम सेवा आश्रम पर श्री रवि जी महाराज के द्वारा श्री राम कथा का श्रवण कराया जा रहा है जिसमें राम की महिमा का वर्णन किया गया मेरे प्रभु अवध का राज्य सम्हालें भरत जी बोले पिता की आज्ञा के अनुसार में 14 वर्ष ही नहीं जीवन भर वन में रहने को तैयार हूं, मेरे लिए इससे बड़ा और कोई सुख नहींभरत जी की ऐसी वाणी सुनकर वशिष्ठ जी प्रेम में देवभान भूल गए भारत की अपना दुर्भाग्य और प्रभु का स्वभाव रो-रो कर बखान कर रहे हैं।
भगवान अनेकानेक दृष्टांत सुनाकर भरत जी को समझा रहे हैं भरत तेरे जैसा भाई त्रिभुवन में हो ही नहीं सकता राम जी ने भरत का कारुण्य रुदन देखकर समर्पण कर दिया l
राम जी बोले आज पिता से अधिक तेरी आज्ञा का महत्व हो गया है मैं सब कुछ कर सकता हूं पर तेरी बात नहीं टाल सकता तू संत है भारत भारत प्रश्न है सारी अवध वास प्रसन्न हो गए लगता है भगवान हम सबके साथ अवध लौट चलेंगे इस समय जनक जी का आगमन होता है जनक जी को देखकर सब संकोच में है सभी ने खड़े होकर स्वागत अभिवादन किया सुनैना ने माताओं से भेंट की जनक सुनैना ने जानकी जी को तप पेश में देखकर दुखी हुए,हृदय से लगा लिया लेकिन बहुत प्रसन्न है जानकी के त्याग को देखकर नेत्र सजल है मुख से गदगद वाली में बोले बेटी तुमने 2 कुलो को पवित्र कर दिया बेटा तो केवल एक ही कुल को पवित्र करता है लेकिन तुमने दो-दो कुलो को पवित्र कर दिया।
धन्य कर दिया जानकी जी को अनेक अनेक आशीर्वाद देते हैं,भगवान ने जनक जी से कहा आप हमारे पिता समान है हमारा मार्गदर्शन करें महाराज हमें ऐसा मार्गदर्शन करें ताकि हमारा धर्म भी ना जाए और सबका भला भी हो आप हमारे माता-पिता गुरु समान हैं,भरत जी बोले वही करें जिससे मेरे प्रभु को कष्ट ना हो, प्रभू हमारे ही कारण आपको संकोच हुआ है मुझे इस अपराध को क्षमा करें इतना कहकर भारत जी चरणों में गिरकर विलख बिलख कर रो पड़े सारी सभा दुखी हो गई भगवान भी दुखी हुए,मेरे राम जी ने इस संयुक्त वाणी में कहा भैया तुम तो धर्म की दुरी हो लोग व्यवहार और वैदिक मर्यादा में तुम निपुण हो मुझे सब प्रकार से तुम पर भरोसा है इसलिए कहने का साहस कर रहा हूं प्रिय भरत में भाग्यशाली हूं तुम जैसा भाई प्राप्त किया है अब थोड़े समय का संकट शेष है इसलिए सब भाई इस विपत्ति को मिलकर बांट लेते हैं, मैं जानता हूं भरत तुम्हारा अवध में रहना कठिन है ।
पर पिता के दोनों वचनों का पालन भी हम दोनों भाइयों को यथावत करना है इसी में रघुकुल का यश और हम सबका हित ऐसा विचार कर सब कुछ छोड़कर अवध जाकर 14 वर्ष भर उसका पालन करो सब समझे राम जी अवध जाने वाले हैं,लेकिन भगवान ने राज्य ग्रहण करके भरत को सौंप दिया भरत बोले में इस योग्य नहीं,कैसे राज चला सकता हूं तब राम जी ने भरत को प्रतीक चिन्ह पादुका प्रदान की भरत जी सीताराम मानकर दोनों पालिकाओं के सिर पर रखकर और सब से विदा ली है सब ने सबको यथा योग्य अभिवादन किया माताएं फूट-फूट कर रोने लगी दुखी मन से सब विदा लेते हैं दुख के कारण माता के मुख से आशीर्वाद के शब्द भी नहीं निकल पा रहे हैं जनक जी और सुनैना ने अपनी बेटी को मूक आशीष दिया सब अवध आए भारत जी चरण पादुकाओं को सिंहासन पर विराजित कर देते हैं नंदीग्राम में परण कुटी बनाकर रहते हैं, कहते हैं जमीन पर मैं रह नहीं सकता सो नहीं सकता इसलिए जमीन से 3 फीट गहरा गड्ढा खोद वाकर चटाई बिछाकर उसमें रात्रि निवास करते हैं गोबर से निकले जो को भिन्न कर उसका भोजन करते हैं इतना बड़ा त्याग इसीलिए भरत को संत कहा जाता है।
एक बार की घटना भगवान खुद पुष्प तोड़कर माता जी का सिंगार करने लगे उसी समय इंद्र का बेटा जयंत कौवे के बीच में आया भ्रम में पड़ गया यह भगवान है या मानव परीक्षा लेना चाहता था मां के पैर मैं चोंच मार कर भागा भगवान ने उसी तिनके का वान अभिमंत्रित करके उसके पीछे छोड़ा जयंत सबसे पहले अपने पिता इंद्र के पास गया फिर ब्रह्मा जी के पास गया, अरुण वरुण चंद्र सूर्य सब के पास गया लेकिन किसने बैठने तक को नहीं कहा अंत में नारद जी ने की शरण में गया तब नारद जी ने कहा जिसका तुमने अहित किया है उसी से क्षमा मांग दौड़ कर गया भगवान के चरणों में गिर गया उल्टा गिरा जानकी ने कहा प्रभु इसे क्षमा करो इस क्षमा मांगना भी नहीं आता या ज्ञानी है भगवान ने क्षमा किया लेकिन सारे संसार को एक भाव से समदर्शी भाव से देखने के लिए एक आंख फोड़ दी, भगवान शंकर जी पार्वती इसे कहते हैं देवी *एक नयन कर सजा भवानी*
भगवान ने सोचा शीश 1 वर्ष कहीं और रहा जाए इसी भाव से चल दिए और अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे अत्रि और अनसूया जी को राम लक्ष्मण और जानकी जी ने प्रणाम किया महामुनी अत्री बहुत प्रसन्न हुए हृदय से लगा लिया और बिठाकर तीनों की स्तुति करने लगे *नमामि भक्तवत्सलम कृपालु शील कोमलम* भाव से वंदना की भगवान ने जानकी जी को अनुसुईया से शिक्षा लेने भेजा, जानकी जी को हृदय से लगाकर अनुसूया बोली देवी तुमने नारी धर्म को बचा लिया तुम नई धर्म की मूर्ति हो संसार की समस्त स्त्रियां तेरा नाम लेकर प्रतिवार धर्म की रक्षा करेंगे अनुसूया जानकी जी के माध्यम से सारे संसार की माता को उपदेश देती हैं, देवी आपत्ति के समय धैर्य धर्म मित्र और नारी की परीक्षा हुआ करती बड़े-बड़े धैर्यशाली संकट के समय धैर्य को बैठते हैं धर्म त्याग देते हैं, देवी जानकी पति कैसा भी हो निर्धन गूंगा बहरा जड़ हो पर पति ब्रता नई मन वचन कर्म से पति को ही ईश्वर मानती है ।
नारी का एक ही धर्म है एक ही व्रत है एक ही पूजा है केवल पति को प्रसन्नता देना जो नई ऐसा करती हैं यह बिना श्रम के ही परम गति को प्राप्त करती हैं विभिन्न प्रकार के वस्त्र आभूषण दिए ऐसे वस्त्र जो कभी मेल नहीं होते ऐसे आभूषण जो कभी चमक हीन नहीं होते ऐसा मंत्र दिया जो भूख प्यास भी नहीं लगती यही कारण था जानकी जी को कभी भूख प्यास और वस्त्र बदलने नहीं पडे, भगवान और जानकी जी ने अनसूया और अत्री के चरणों में प्रणाम कर और वहां से आगे की यात्रा प्रारंभ की, आज 25वीं दिवस की राम कथा के यजमान श्रीमती कांति देवी राम शंकर शर्मा वैद्य जी रहे भागवत आचार्य अमित आनंद ने पगड़ी पहनकर महाराज जी का स्वागत किया भाजपा नेता ब्राह्मण सभा पूर्व अध्यक्ष किशन शर्मा व संजीव गुप्ता ने राम जी का चित्र भेंटकर व्यास पीठ से आशीर्वाद प्राप्त किया ।
सहायता अरविंद शर्मा रामाश्रय शर्मा की ओर से प्रसाद वितरण किया गया कथा में कमलेश मिश्रा अंजू चौहान लक्ष्मी विष्णु गुप्ता कामिनी तिवारी गिरीश पाल सिंह सिसोदिया विकास चौहान अर्चना चौहान अलंकार सोलंकी प्रियंका सोलंकी कौशल सोलंकी करुणा सोलंकी बाबू साहब के वीडियो सुरेंद्र गुप्ता शशांक लड्डू अजय अंकित मोना चौधरी राखी साहू अमर साहू धर्मेंद्र सक्सेना टॉमसन माहेश्वरी अनुराधा सक्सेना मनीष सक्सेना अखिलेश गौतम अनिल प्रताप सिंह लोकेंद्र एडवोकेट महेंद्र सक्सेना राजू चौहान ब्रह्मानंद दयाशंकर दीपेश उमेद सिंह कुशवाह सत्यम शर्मा आदि सैकड़ों भक्तों ने आरती पूजा कर प्रसाद पाया विद्वान आचार्य रंजीत भारद्वाज ने यजमान रामशंकर से विधि विधान से वैदियों का पूजन कराया व्यास पूजन और व्यास पूजन करा कर आरती कराई