लक्ष्मी चालीसा हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध एक पौराणिक मंत्र है जिसका पाठ देवी लक्ष्मी की आराधना और आशीर्वाद के लिए किया जाता है। यह चालीसा लक्ष्मी माता के गुण, महत्व और वरदानों का उल्लेख करती है और उनके भक्तों को धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है।
चालीसा का पाठ:
लक्ष्मी चालीसा के पाठ से भक्त देवी लक्ष्मी के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं। इस चालीसा का पाठ नियमित रूप से किया जाता है, विशेष रूप से वैष्णव समुदाय में। यहां चालीसा का एक अंश दिया गया है:
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
लक्ष्मी चालीसा का महत्व:
लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से मान्यता है कि देवी लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। यह चालीसा समृद्धि, धन, सफलता, सुख और शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती है।
लक्ष्मी चालीसा के लाभ:
आर्थिक समृद्धि: लक्ष्मी चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है और वित्तीय समृद्धि प्राप्ति में मदद मिल सकती है।
कर्मिक फल: इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति के कर्मिक फल में सुधार हो सकता है और कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
आत्मिक शांति: लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की मानसिक शांति और सुख-शांति में सुधार हो सकता है।
नियमित पाठ की विधि:
लक्ष्मी चालीसा का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। प्रतिदिन एक निश्चित समय और स्थान पर चालीसा का पाठ करना चाहिए।
श्री लक्ष्मी चालीसा
दोहा:
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, पूरण कीजै आश॥
चालीसा:
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला, तूही है जगमाता।
सुर-वन्दित, तु बरननी, माता जी की आरती॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता॥
भुज चार अति शोभित, वर मुद्रित करता।
मन वांछित फल पावत, सेवत नर नरी॥
कानन कुठारी कामिनी, वरवरणी धाता।
श्री महालक्ष्मी जी की आरती॥
तुम बिना यज्ञ न होते, वस्त्र धारणा धान्य।
रूप ब्रता तुही, शुभ फल की दाता॥
कंबल, किंकिणी, काण्डा, मुण्ड माला धारणा।
श्री महालक्ष्मी जी की आरती॥
श्रीरुपकुमारि, सचित्रा गणेश जी की माता।
जिष्णुआनन्द करियाँ, तुही धन्य भवन्ता॥
तुम गायन विना, सुनत दिन रैन चार।
नाम तुम्हारे जपत, नित दिन मन वांछित फल पाता॥
धूप-दीप नित्य फल प्रति, तुम्हारी यही आरती।
श्री महालक्ष्मी जी की आरती॥
जो कोई जन तुमको ध्यावै।
रिद्धि-सिद्धि सकल जनम आवै॥
रत्न चतुर्दश तुम्हारे, जग माहि जन्म उपावै।
भाग्य हीन त जन नहिं तुम्हरे चरणों में आवै॥
त्रैलोक्य की सुख संपत्ति तुम्हारी शरणागत हो।
दीन बन्धु दुख बहु तुम्हारे, हरहु माँ संताप॥
श्री महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गावै।
भाग्य उनको चारों दिशा, सोहै पार्वती अवश्य पावै॥
आरती करत हरिहर अनुरागी।
पूरन परम प्रेम तुम्हरो शिवा पुकारी॥
जय गिरिवर गजराज उजागर।
जय भवानि जय भवानि जय जय माँ॥
समापन:
इस प्रकार, श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से भक्त देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करते हैं और उनके जीवन में धन, समृद्धि, सफलता, सुख और शांति की प्राप्ति हो सकती है। यह चालीसा हमें आदर्श जीवन की दिशा में मार्गदर्शन करती है और हमें सद्गुणों की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करती है।