नई दिल्ली केंद्रीय नागर विमानन और इस्पात मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि केंद्र सरकार सामग्री पुनर्चक्रण उद्योग के प्रति अपनी वचनबद्धता पर अडिग है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे आज की दुनिया में प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने की जरूरत है। आज पुनर्चक्रण उद्योग भारत के जीएसटी में लगभग 10,000 करोड़ रुपये का योगदान देता है और आने वाले वर्षों में इसके 35,000 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है। केंद्रीय मंत्री कोच्चि में भारतीय सामग्री पुनर्चक्रण संघ (एमआरएआई) द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय भारतीय सामग्री पुनर्चक्रण के 10वें सम्मेलन के पूर्ण सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, "हम आने वाली पीढ़ी के लिए हितधारकों के रूप में जिम्मेदार हैं, इस प्रकार सामग्री पुनर्चक्रण क्षेत्र महत्वपूर्ण है।"
यह कहते हुए कि अमृतकाल में भारत की यात्रा दूरदर्शी होगी, श्री सिंधिया ने भारत की चक्रीय अर्थव्यवस्था और पुनर्चक्रण क्षेत्र के प्रति पूर्ण वचनबद्धता और इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि का आश्वासन दिया। उन्होंने बताया कि हमारे स्टील का 22 प्रतिशत पुनर्चक्रण के माध्यम से उत्पादित किया जाता है, लेकिन हमें इस क्षेत्र के विकास के लिए अनौपचारिक क्षेत्र को भी शामिल करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "2070 तक नेट जीरो के लिए हमारी प्रतिबद्धता के क्रम में, हम 2030 तक ऊर्जा दक्षता उपकरणों का 20 प्रतिशत का इस्तेमाल करके अल्पकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रख सकते हैं।
इस बात पर जोर देते हुए कि इस्पात उद्योग पुनर्चक्रण क्षेत्र का उप-खंड है, इसे 6 आर- रीड्यूस, रीसायकल, रीयूज, रीकवर, रीडिजाइन और रिमैन्युफैक्चरिंग के सिद्धांत के साथ मिलकर अनुकूलन और न्यूनीकरण में सबसे आगे होना चाहिए। श्री सिंधिया ने परिकल्पना करते हुए कहा कि छह आर के ये सिद्धांत हर अच्छी कॉर्पोरेट प्रशासन संरचना का हिस्सा बनना चाहिए।
श्री सिंधिया ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि उसके पास अपने दृष्टिकोण में एक दूरदर्शी होने की क्षमता है, जहां कोई अन्य देश पहले नेतृत्व नहीं कर सका है। श्री सिंधिया ने कहा कि कोविड से निपटने, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के संदर्भ में हमारी भूमिका सहित कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां भारत के नाम में कई प्रथम हैं। उन्होंने कहा, "उन तर्ज पर, हम पुनर्चक्रण सहित चक्रीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एक और नेतृत्व कायम करने का लक्ष्य बना रहे हैं।"
श्री सिंधिया ने कहा कि इस्पात आदर्श रूप से चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे उपयुक्त है और सरकार न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में चक्रीय अर्थव्यवस्था और पुनर्चक्रण क्षेत्र के प्रति पूरी तरह से समर्पित है। उन्होंने कहा कि इस्पात क्षेत्र कई प्रकार के कचरे का उत्पादन करता है और दुनिया भर में हो रहे कचरे के उपयोग का प्रसार विभिन्न उद्योगों में दिखाई देना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम पूरे लगन के साथ उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं।”
पुनर्चक्रण और चक्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए, श्री सिंधिया ने 2021 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री के उस भाषण को याद किया कि “मनुष्य और प्रकृति अब एक-दूसरे के साथ टकरावपूर्ण रिश्ते में नहीं रह सकते। उन्हें सामंजस्यपूर्ण रिश्ते में एक साथ रहना होगा।” श्री सिंधिया ने कहा कि चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री के इसी मौलिक विचार पर आधारित है।
इस क्षेत्र में हुई वृद्धि पर जोर देते हुए, श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में भारत ने 25 मिलियन टन स्क्रैप का उत्पादन किया है और 5 मिलियन टन खरीदा है। इस्पात का उत्पादन 80 मिलियन प्रति वर्ष से लगभग 50 प्रतिशत बढ़कर 120 मिलियन टन प्रति वर्ष हो गया। उन्होंने कहा, “हमारे इस्पात के 22 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन पुनर्चक्रण के माध्यम से किया जाता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक क्षेत्र में लायें, क्योंकि इसके संयोजन से पुनर्चक्रण और चक्रीय अर्थव्यवस्था को एक नई मजबूती मिलेगी।”
उन्होंने कहा कि 'स्क्रैप' एक सकारात्मक शब्द है जो आने वाले वर्षों में धरती माता को जीवंत बनाए रखने के लिए एक हरित अर्थव्यवस्था की ओर इंगित करता है। यह हमारी प्रतिबद्धता है कि 2030 तक हम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करेंगे और स्क्रैप को एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत के तौर पर उपयोग करने में समर्थ होंगे। स्क्रैप के उपयोग से न केवल ऊर्जा और उत्सर्जन की बचत होती है बल्कि इससे कई टन लौह अयस्क, खाना पकाने के कोयले और चूना पत्थर की खपत भी बचती है। वर्ष 2047 के विजन के साथ स्क्रैप का मौजूदा 15 प्रतिशत उपयोग अगले पांच वर्षों में बढ़कर लगभग 25 प्रतिशत हो जाएगा, जिसका सीधा अर्थ यह है कि इस्पात के उत्पादन में स्क्रैप की प्रतिशतता बढ़कर 50 प्रतिशत तक हो जाएगी और इस्पात के उत्पादन का केवल 50 प्रतिशत हिस्सा ही लौह अयस्क पर निर्भर होगा।
भारतीय सामग्री पुनर्चक्रण संघ (एमआरएआई) ने कोच्चि में 2 से 4 फरवरी 2023 तक अंतर्राष्ट्रीय भारतीय सामग्री पुनर्चक्रण सम्मेलन के 10वें संस्करण की मेजबानी की। वैश्विक पुनर्चक्रणकर्ताओं के इस अब तक के सबसे बड़े सम्मेलन में 1800 से भी अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें 38 देशों के 450 विदेशी प्रतिनिधि भी शामिल थे। इस सम्मेलन में पुनर्चक्रण की दर को अधिकतम करने, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने, पर्यावरण प्रदूषण को कम-से-कम करने, रोजगार के अधिक अवसर सृजित करने, और वर्ष 2070 तक कार्बन तटस्थता के लिए भारत की प्रतिबद्धता के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए गहन अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डालने पर ध्यान केंद्रित किया गया।