रामजी पांडे
तमिलनाडु में लगभग 10 सामुदायिक बीज बैंकों के माध्यम से चावल की लगभग 20 पारम्परिक किस्मों का पता लगाकर, उन्हें एकत्र किया जा रहा है, बचाया जा रहा है और पुन: प्रचलन में लाया जा रहा है, जिससे राज्य में 500 से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
तमिलनाडु के अधिकांश छोटे और मध्यम किसान संकरों (हाइब्रिड) की मोनोक्रॉपिंग के कारण किसी समय उनके समुदाय के पूर्वजों के स्वामित्व वाले पारम्परिक बीजों को खो चुके हैं। इन किस्मों की पहचान उनके अद्वितीय पोषण, औषधीय और पारिस्थितिक गुणों तथा सबसे बढ़कर, जलवायु के प्रति उनके लचीलेपन के लिए की गई थी। धान की किस्मों के पारम्परिक आनुवंशिक क्षरण और स्वदेशी जीन पूल, देशी मौजूदा किस्मों के चिकित्सीय/उपचारात्मक गुणों के बारे में जानकारी के नुकसान, उनके बीज भंडार तक पहुंच की कमी, तमिलनाडु में कृषि और मानव स्वास्थ्य के भरण-पोषण तथा भविष्य के लिए एक चुनौती है।
इन सामुदायिक बीज बैंकों को 24 जिलों - अरियालुर, चेंगलपट्टू, कोयम्बटूर, धर्मपुरी, डिंडीगल, इरोड, कांचीपुरम, करूर, मदुरै, मयीलादुरई, नागपट्टिनम, पुदुकोट्टई, रामनाथपुरम रानीपेट्टई, सेलम, शिवगंगई, तेनकासी, तंजावुर, थूथुकुडी, तिरुवन्नामलाई, थिरुवरुर, तिरुचिरापल्ली, विल्लुपुरम और विरुदुनगर में स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की सहायता से स्थान के आधार पर इच्छुक किसानों द्वारा इनकी पहचान करके बढ़ावा दिया गया है।
एक प्रमुख किसान अपने खेत में एक से लेकर अनेक पारंपरिक किस्मों की खेती करता है, जिसका एक हिस्सा कटाई के बाद पड़ोसी इलाकों और जिलों में अन्य इच्छुक किसानों को भुगतान के साथ या उसके बिना वितरित किया जाता है। यह स्वैच्छिक भागीदारी के साथ एक औपचारिक ढांचा है। बीज बैंक की 2000 रुपये की पूंजी प्रत्येक लाभार्थी किसान को वितरित की गई ताकि पारम्परिक चावल समुदाय बीज बैंकों को मजबूत बनाया जा सके।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की विज्ञान और पारम्परिक अनुसंधान पहल (एसएचआरआई) कार्यक्रम के समर्थन से सस्त्र डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी की पहल से चावल की पारम्परिक किस्मों को पुन: प्रचलन में लाया जा रहा है, संरक्षित किया जा रहा है और उसकी विशेषता बताई जा रही है।