वैज्ञानिक प्रशासकों ने अनुसंधान मूल्यांकन को अधिक मजबूत बनाने के तरीकों के बारे में विचार-विमर्श किया

रामजी पांडेय

नई दिल्ली भारतीय वित्त पोषण एजेंसियों में अनुसंधान मूल्यांकन प्रथाओं के बारे में आयोजित कार्यशाला में विभिन्न मंत्रालयों के वैज्ञानिक प्रशासकों ने अनुसंधान मूल्यांकन तरीकों को मजबूत तथा समावेशी बनाने के तरीकों के बारे में विचार-विमर्श किया ताकि भारत के लिए प्रासंगिक नए विचारों को प्रोत्साहित किया जा सके और युवा प्रतिभाओं को अवसर उपलब्ध हो सकें।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ एस. चंद्रशेखर ने कहा कि अनुसंधान का मूल्यांकन विश्व में एक ज्वलंत चुनौती बन गया है और दुनिया के विशेषज्ञ इससे निपटने के तरीकों को तलाशने में लगे हुए हैं। भारत को अनुसंधान परियोजनाओं, उनके निष्कर्षों और परिणामों का आकलन करने की अपनी ऐसी पद्धति विकसित करनी चाहिए जो देश के अनुकूल हों। उन्होंने स्वतंत्र मूल्यांकन के लाभों पर प्रकाश डाला- जहां समीक्षक उस व्यक्ति या संस्थान को जाने बिना ही प्रस्तावक की परियोजनाओं का मूल्यांकन करता है। डॉ. चंद्रशेखर ने समीक्षकों को संवेदनशील बनाने के लिए कार्यशालाएं आयोजित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

इस एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा किया गया था और इसमें विभिन्न स्तरों के ऐसे वैज्ञानिक प्रशासकों ने भाग लिया था, जिन्होंने अनुसंधान मूल्यांकन की मौजूदा स्थिति का आकलन करने और उनमें सुधार करने के उपाय सुझाने में मदद करने से संबंधित गतिविधियों में भाग लिया था।

डीएसटी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता ने ऐसे जिम्मेदार अनुसंधान मूल्यांकन पर जोर दिया जो भूगोल, लिंग, संसाधनों तक पहुंच, संस्थागत सुविधाओं आदि के मामले में भारत की विशाल विविधता को ध्यान में रखता हो। उन्होंने समीक्षकों के एक विषयगत क्लब की स्थापना की जरूरत और समीक्षा प्रक्रिया की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए समीक्षकों को मानदेय का भुगतान करने के बारे में प्रकाश डाला।

इस कार्यशाला और पैनल चर्चा का आयोजन डीएसटी के पॉलिसी कोऑर्डिनेशन एंड प्रोग्राम मैनेजमेंट (पीसीपीएम) डिविजन द्वारा डीएसटी पॉलिसी फेलो के साथ किया था। इसका उद्देश्य भारत की वित्त पोषित एजेंसियों की मौजूदा इन्ट्राम्युरल और एक्सट्राम्युरल अनुसंधान मूल्यांकन प्रक्रियाओं उनकी ताकत और कमजोरियों को समझने के लिए अनुसंधान इकोसिस्टम हितधारकों के साथ संवाद मूलक प्रक्रियाओं और विचार-विमर्शों का उपयोग करते हुए इनमें सुधार लाने के तरीके खोजना है।

विज्ञान प्रशासकों ने यह विचार-विमर्श किया था कि अनुसंधान प्राथमिकताएं और चुनौतियों में समय के साथ-साथ बदलाव आ रहा है।  प्रोत्साहन या संकेतकों पर निर्मित और मुख्य रूप से पत्रिका-आधारित मैट्रिक्स पर आधारित मौजूदा प्रथाओं पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है, जैसा कि भारत की 5वीं एसटीआई नीति के मसौदे में सिफारिश की गई थी कि अनुसंधान विषय सूची में सुधार लाने के लिए अनुसंधान मूल्यांकन ढांचे के बारे में दोबारा काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया में जिम्मेदार मेट्रिक्स आंदोलन, जैसे कि लीडेन मेनिफेस्टो, डीओआरओ घोषणा आदि अनुसंधान मूल्यांकन के वैकल्पिक समग्र मैट्रिक्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण हैं। एक भारत केंद्रित अनुसंधान मूल्यांकन प्रक्रिया समय की जरूरत थी।

डीएसटी, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य वैज्ञानिक वित्त पोषण एजेंसियों के अधिकारियों ने इस कार्यशाला और पैनल चर्चा में भाग लिया।

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