नई दिल्ली: वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया, देश के मीडियाकर्मियों का शीर्ष संगठन है। हमारी यूनियन, विश्व की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन, भारतीय मजदूर संघ(बीएमएस) से सम्बद्ध है। हमारी यूनियन पत्रकारो की समस्याओं को लेकर समय समय पर सत्ता के गलियारों से लेकर सड़को पर सक्रिय रहती है। मान्यवर, आज हम आपको देश के प्रिंट मीडिया के पत्रकारों/प्रकाशकों की समस्याओं को लेकर एक विस्तृत ज्ञापन दे रहे है। देश की आज़ादी के आंदोलन व देश मे लगे आपातकाल में प्रिंट मीडिया का अहम रोल रहा है। पर आज प्रिंट मीडिया की हालात काफी खस्ता है। हम आपको प्रिंट मीडिया की समस्याओं को लेकर सिलसिलेवार बता रहे है ।
1. प्रिंट मीडिया की खस्ता हालात - आपको अवगत कराना है कि समाचार पत्र उद्योग को जबसे जीएसटी के दायरे में लाया गया है, तबसे समाचार पत्रों के प्रकाशन करने में काफी लागत बढ़ गई है । कारण साफ है कि अखबारी कागज पर जीएसटी लागू होने से अखबारों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है । जबकि पहले अखबारी कागज रियायती दरों पर सरकार उपलब्ध कराती थी । अखबार में प्रयुक्त होने वाले कागज की जीएसटी की दरों में विसंगतियों की वजह से छोटे अखबार वाले बहुत ज्यादा ही पीड़ित है । क्योंकि अखबारी कागज सीधे मिल से लेने पर जीएसटी की दर 5% है और वही अखबारी कागज बाजार से लेने पर जीएसटी की दर 12% है । अखबारों के प्रकाशन में आने वाली वस्तुओं के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई है । कागज की कीमतों में दोगुनी वृद्धि हुई है । एल्मुनियम प्लेट, इंक व केमिकल्स के मूल्यों में भी अनाप शनाप बढ़ोत्तरी होने से इस अखबारी उद्योग की कमर टूट गई है । साथ ही ट्रांसपोर्टेशन व कोरोना से बचाव के लिए सेनेटिराईजेसन पर काफी व्यय हो रहा है । ऐसी स्थिति में लोक संपर्क ब्यूरो (DAVP) की विज्ञापन दरों में अविलम्ब दोगुनी वृद्धि आवश्यक हो गई है । रेट स्ट्रक्चर कमेटी के नाम पर समय व्यतीत किया जा रहा है । सरकार के पास सारे आँकड़े मौजूद रहते हैं । मूल्य सूचकांक के आधार पर भी विज्ञापन दरों का निर्धारण हो सकता है । जिस प्रकार से सरकार मँहगाई भत्ता अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को निर्धारित करती है उसी नीति व रीति से DAVP की विज्ञापन दरों को पुनर्निर्धारण किया जाना चाहिए । यूनियन का सुझाव है कि छोटे व मझौले अखबारों की दयनीय स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए 10 हजार की प्रसार संख्या तक रुपये 30 प्रति वर्ग सेमी. व 25 हजार की प्रसार संख्या तक रुपये 50 प्रति वर्ग सेमी. की विज्ञापन दर निर्धारित किया जाना उचित होगा । इससे प्रसार संख्या की जांच कराने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी ।
2.*प्रेस कौंसिल द्वारा पत्रकारो/ प्रकाशकों का उत्पीड़न*- कृपया अवगत हो कि प्रेस कौंसिल के कार्यालय द्वारा अनेकों समाचार पत्रों के प्रकाशकों को बकाया लेवी फीस के नाम पर रिकवरी भेजकर उत्पीड़ित किया जा रहा है । आखिर इतनी पुरानी बकाया लेवी फीस वसूला जाना न्यायसंगत है ? जबकि भारतीय प्रेस परिषद अपने उद्देश्यों के विपरीत ही काम कर रही है । काफी समय से हजारों परिवाद लंबित है । परिवादों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है । तब वर्तमान परिस्थितियों में बकाया लेवी फीस की वसूलयाबी उचित है ?
DAVP द्वारा विगत अगस्त 2021 से 25 हजार से अधिक प्रसार वाले अखबारों को CA के अधिक प्रसार के प्रमाण पत्र के बाद भी 25 हजार तक प्रसार के आधार पर विज्ञापन दर निर्धारित कर दी गई है । प्रेस परिषद को अब RNI द्वारा प्रेषित प्रसार की सूचना पर लेवी फीस लेने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है । जब प्रकाशक को वार्षिक विवरण के आधार पर कोई लाभ नहीं दिया जा रहा हो तब PCI कैसे लेवी वसूल कर सकती है ? अब PCI को DAVP की सूचना के आधार पर ही लेवी फीस लेनी चाहिए ।
PCI आज तक अपने प्रस्तावों के पारित होने के बाद भी जीएसटी कॉउन्सिल से प्रकाशकों के हित में कोई कार्यवाही नहीं करा सकी है ।
DAVP द्वारा वर्ष 2016 की विज्ञापन नीति से भी प्रकाशकों का उत्पीड़न किया गया था । फिर पुनः वर्ष 2020 में नई विज्ञापन नीति बनाकर समाचार पत्रों के प्रकाशकों को उत्पीड़ित किया जा रहा है ।
आज तक DAVP व GST Council ने भारतीय प्रेस परिषद की अनुशंसा को नहीं माना गया है । ऐसी परिस्थिति में भारतीय प्रेस परिषद को कोई भी लेवी फीस वसूली का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है । भारतीय प्रेस परिषद में कोई भी अध्यक्ष ही नहीं है तब प्रशासनिक फैसले किस नियम और अधिकार से प्रेस काउंसिल द्वारा लिए जा रहे है ?
आपसे यूनियन समाचार पत्रों के प्रकाशकों के हित में अनुरोध करती है कि आप तत्काल ही लेवी फीस की वसूली की रिकवरी कार्यवाही को स्थगित करवाये।
3. *RNI से संबंधित समस्याए*- 1. पिछले 2 वर्षों से समाचार पत्रों के पंजीकरण, शीर्षक स्वीकृति व संशोधन पंजीकरण प्रमाणपत्र के प्रकरण अप्रत्याशित देरी से निष्पादित किए जा रहे हैं। लंबित सभी प्रकरणों को समयबद्ध निष्पादन करने की तत्काल व्यवस्था की जाए।
2. हजारों समाचार पत्रों का डाटा RNI की वेबसाइट पर प्रदर्शित नहीं हो रहा जिसके कारण संबंधित प्रकाशक अनिश्चिता की स्थिति में है। कृपया समाचार पत्रों का डाटा अपडेट किए जाने की व्यवस्था की जाए।
3. समाचार पत्रों के पंजीकरण प्रमाण पत्र में दर्शाये विवरण व RNI के डाटाबेस में काफी भिन्नताएं हैं। जिससे वार्षिक रिटर्न भरने अथवा संशोधित पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने में प्रकाशकों को काफी दिक्कत आ रही है। यद्यपि इसे संशोधित कराने के लिए RNI ने एडवाइजरी जारी की है किंतु यह जटिल है। न्यूनतम प्रपत्रों के साथ ऐसे आवेदन स्वीकार किए जाएं तथा इनका त्वरित निष्पादन सुनिश्चित किया जाए।
4. समाचार पत्रों के प्रकाशकों से बिना किसी टोकन या फॉर्मेलिटी के प्रतिदिन DPR/APR स्तर की मुलाकात की व्यवस्था की जाए।
5. टाइटल की स्वीकृति के बाद शीर्षक पंजीकरण कराने के लिए पूर्व की भांति ही न्यूनतम 2 वर्ष की अवधि ही रखी जाए.
6. जिन समाचार पत्रों को वार्षिक विवरण जमा ना करने पर ब्लॉक कर दिया है उन्हें एक बार न्यूनतम विलंब शुल्क के साथ जमा करने का अंतिम अवसर दिया जाय।
4. *मीडिया कॉउन्सिल की स्थापना की जाए*- देश मे जिस समय सिर्फ प्रिंट मीडिया था, उस समय मीडियाकर्मियों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर , प्रेस कॉउन्सिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गयी थी। प्रेस कॉउन्सिल की स्थापना के बाद आल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन, टीवी चैनल्स व अब डिजिटल मीडिया वर्चस्व में आया है। इस नए मीडिया से जुड़े पत्रकारों से जुड़ा कोई मामला होता है, तो वह प्रेस कॉउन्सिल के अधिकार क्षेत्र में नही आता है, इसलिये इस नए मीडिया से जुड़े पत्रकारों के लिये कोई भी आधिकारिक फैसले प्रेस कॉउन्सिल नही ले पाता है । यूनियन का मानना है कि प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया कॉउन्सिल की स्थापना की जाए। ये कॉउन्सिल केंद्र से लेकर राज्य व जिला स्तर तक बनाया जाए व उन्हें ज्यादा से ज्यादा अधिकार दिए जाएं।
5. *ई- पेपर को मान्यता दी जाए*- केंद्र सरकार डिजिटल भारत की बात करती है। ये तभी संभव है, जब सभी क्षेत्रों में डिजिटल को बढ़ावा दिया जाए। देश मे कोरोना महामारी के दौरान आम लोगो ने समाचार पत्रों को पढ़ना काफी कम कर दिया। ज्यादातर समाचार पत्र जो प्रतिदिन 50 पेज के छपते थे वे सिमटकर 12 से 16 पेज पर आ गए। ज्यादातर समाचार पत्र विदेशों से आने वाले कागज पर छपते है, स्याही भी विदेशों से आती है, जो कोरोना काल में आनी बंद हो गयी। जिनके पास इन दोनों का स्टॉक था, उन्होंने अपने प्रकाशन के पेज संख्या घटाकर समाचार पत्र प्रकाशित करते रहे। अन्य पब्लिकसे ने ई-पेपर निकालने शुरू कर दिए और अपने रीडर्स तक मोबाइल या कंप्यूटर के जरिये उसे भेजना शुरू कर दिया। उसकी देखा देखी ज्यादातर पब्लिकसे ने भी अपने संस्करण डिजिटल भी निकालने शुरू कर दिए। बाद में तो कई बड़े मीडिया घरानों ने तो उसे सब्सक्राइब भी करना शुरू कर दिया ओर पाठकों को भी वह भाने लगा। विदेशों में तो ई पेपर को तो पूरी मान्यता है। यूनियन का मानना है कि हमारे देश मे भी उसे मान्यता देनी चाहिये और सरकार को उसे लेकर कोई पालिसी तैयार करनी चाहिये।
6. *मीडिया में एक देश-एक नीति,की मांग*- देश मे केंद्र सरकार की मीडिया को लेकर अलग नीतियां है व राज्यो की अलग अलग नीतियां है। यूनियन की मांग है कि एक देश-एक नीति होनी चाहिये। जिसका पालन सभी राज्य सरकारें करे। लेबर कोड्स में मीडिया व मीडियाकर्मियों को लेकर जो भी विसंगतियां है, उन्हें दूर किया जाए। मीडिया में पहले की तरह वेज बोर्ड होना चाहिये, जिसका प्रत्येक पांच साल बाद गठन होना चाहियें।
मान्यवर, हमें उम्मीद है कि हमारी यूनियन, वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया के इस ज्ञापन पर आप गौर
करेंगे व कोई इन समस्याओं का कोई हल निकालेंगे
सधन्यवाद,