नई दिल्ली: देश में राष्ट्रीय रोजगार नीति की की मांग को लेकर चर्चाएं तेज होने लगी है इसी कड़ी में नई दिल्ली के शाह स्टेडियम में एक रोजगार संसद का आयोजन किया गया जिसमें देश भर के 250 से अधिक प्रमुख छात्र संगठन, युवा संगठन, शिक्षक संगठन, ट्रेड यूनियन, किसान यूनियन, महिला संगठन, LGBTIQ+, पत्रकार संगठन, दलित संगठन, आदिवासी संगठन, NGO's आदि संगठनों के लगभग 700 प्रितिनिधियों ने हिस्सेदारी कि जिसमे
मुख्य अतिथि देश की बात फाउंडेशन के संस्थापक एवं दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री श्री गोपाल राय रहे उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को लेकर प्रस्ताव रखा की एक राष्ट्रीय आंदोलन समिति बननी चाहिए, जो आंदोलन की रूप रेखा पर चर्चा करे और उससे आगे बढ़ा सकें I
बताते चले कि पिछले वर्ष दिल्ली की जंतर मंतर पर हुई रोजगार संसद की तरज पर भारत के हर राज्य मे एक रोजगार संसद के आयोजन की रूपरेखा तैयार की गई
जिसमे श्री गोपाल राय ने कहा बेरोजगारी के समाधान के लिए राष्ट्रीय रोजगार नीति बनाना वक्त की मांग है उन्होंने कहा कि देश बेरोजगारी के भयावह संकट से जूझ रहा है यहाँ बड़ी- बड़ी डिग्रियां लेकर भी युवा आज काम के लिए दर -दर भटक रहे हैं । रोजगार का नया सृजन करना तो दूर देशभर में लाखों खाली पड़ी सरकारी वेकैंसी पर भी भर्ती नहीं की जा रही है, इसके उलट भर्ती की जगह युवाओंको लाठियां मिल रही है अभी हाल ही मे पुरे देश ने देखा की किस तरह रेलवे RRB-NTPC की भर्ती को लेकर छात्रों के उपर बर्बर दमन किया गया I जहाँ भर्ती हो भी रही है, ठेकेदारी व्यवस्था के तहत हो रही है, जहाँ मिनिमम वेज इतना कम है की जिससे काम करने के बावजूद भी लोगो को सम्मानपूर्वक जीवन जीना मुश्किल हो रहा है, प्राइवेट सेक्टर मे भी रोजगार के नए अवसर पैदा होने की जगह छटनी की तलवार लोगों के सर मंडरा रही है I वहीं हम देख रहे है की देश के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून बनवाने के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं I जहाँ तक देश की आधी आबादी महिलाओं का प्रश्न है उनकी आर्थिक मजबूती के लिए सरकार के पास कोई कार्ययोजना नही है उन्होंने कहा कि बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए भारत में आजादी के बाद जिस तरह की नीतियां बनाने की जरूरत थी, हमारी अब तक की सरकारों ने वैसी नीतियां नही बनाई। यही वजय है कि आजादी के सात दशक से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी हमारे देश में राष्ट्रीय रोजगार नीति नहीं बन पाई है I पहले से ही बेरोजगारी की मार झेल रही हमारी अर्थव्यवस्था को कोरोना ने और आधिक चिंताजनक स्तिथि मे पहुचां दिया I आज बेरोजगारी की समस्या ना सिर्फ गांव के लोगों की है बल्कि जो लोग बड़े-बड़े शहरों में रहते हैं, उनकी भी समस्या है I चाहे कोई किसी भी जाति में पैदा हुआ हो, किसी भी धर्म को मानने वाला हो, किसी भी भाषा को बोलने वाला हो, चाहे कोई किसी भी क्षेत्र का रहने वाला हो, चाहे महिला हो, पुरुष हो या फिर ट्रांस जेंडर, कोई भी बेरोजगारी की इस मार से नहीं बच पाया है Iश्री गोपाल राय ने कहा पिछले कई वर्षों से बेरोजगारी व आर्थिक समस्याओं को लेकर छात्र, युवा, मजदूर, किसान, महिलाएं सहित देश के तमाम संगठन अलग-अलग तरीके से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन केंद्र की सरकार सुनने को तैयार नहीं है ऐसे समय में ये वक्त की जरूरत है कि बेरोजगारी के खिलाफ सभी संगठन मिलकर राष्ट्रीय आंदोलन की पहल करें I
जिस तरह पिछले वर्ष 19 दिसंबर को दिल्ली में जंतर मंतर पर रोजगार संसद का आयोजन किया गया था, उसी तरज पर भारत के हर राज्य मे आयोजित होगी एक रोजगार संसद जिसमें वहाँ के सभी संघर्षरत संगठनों को शामिल किया जाएगा I
श्री गोपाल राय ने प्रस्ताव रखा की एक राष्ट्रीय आंदोलन समिति बननी चाहिए जिसमे हर संगठन का एक प्रितिनिधि हो जो आंदोलन की रूप रेखा पर चर्चा करे और उससे आगे बढ़ा सकें Iइसके अलावा राष्ट्रीय रोजगार संसद में
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण ने कहा की बेरोजगारी की समस्या आज चरम सीमा पर है, जिसका समाधान राष्ट्रीय रोजगार निति हैं, इसमें दिए गए 10 M’s की मिनी टेक्नोलॉजी, मिनी मार्किट, मिनिमम वागेस (न्यूनतम मजदूरी), माइंड सेट एंड स्किल ट्रेनिंग निचले स्तर से विकास की बात करता हैं I