सीमावर्ती क्षेत्र में रह रहे नागरिकों के साथ संबंध और संवाद स्थापित कर हम देश की सीमाओं की सुरक्षा का एक मजबूत चक्र बना सकते हैं

रामजी पांडे

                                 

नई दिल्ली:केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज राजस्थान के जैसलमेर में सीमा सुरक्षा बल के 57वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया। केन्द्रीय गृह मंत्री ने देश की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों के परिजनों और सेवारत बीएसएफ़कर्मियों को बहादुरी के लिए पुलिस मेडल और उत्कृष्ट सेवा के लिए सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मियों को राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया। इस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी उपस्थित थे।

इस अवसर पर केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने 1965 में बीएसएफ की स्थापना के बाद पहली बार बीएसएफ का स्थापना दिवस देश के सीमावर्ती जिले में मनाने का निर्णय लिया है और इस परंपरा को हमें आगे भी जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये स्थापना दिवस हमारी आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष का स्थापना दिवस है। आज़ादी मिले हुए 75 वर्ष हो गए हैं और माननीय प्रधानमंत्री जी ने इस वर्ष को आज़ादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय किया है। आज़ादी के शताब्दी वर्ष तक 75 से सौ साल के बीच का कालखंड अमृत काल है और इस अमृत काल में यह तय करना है कि जब आज़ादी के सौ साल होंगे तब हर क्षेत्र में हम कहां खड़े होंगे।

श्री अमित शाह ने कहा कि देशभर में सीमा सुरक्षा बल, पुलिस बलों और सीएपीएफ़ के 35 हज़ार से ज़्यादा जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है और बीएसएफ़ इसमें सबसे आगे है क्योंकि सबसे कठिन सीमाओं की सुरक्षा का दायित्व बीएसएफ़ को दिया गया है। मैं उन सभी शहीद दिवंगत वीर जवानों को पूरे देश और देश के प्रधानमंत्री जी की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि देना चाहता हूं। सीमा सुरक्षा बल का बहुत गौरवपूर्ण इतिहास है। 1965 के युद्ध के बाद इसकी स्थापना का निर्णय किया गया और आज ये दुनिया का सबसे बड़ा सीमाओं की रक्षा करने वाला बल है। पहाड़, रेगिस्तान, जंगल और किसी भी प्रकार का भौगोलिक परिवेश हो, सीमा सुरक्षा बल ने हर परिस्थिति में पराक्रम और उत्कृष्ट सेवा का परिचय दिया है। सेना और सीमा सुरक्षा बल ने एकसाथ 1971 में लोंगेवाला में अदम्य साहस का परिचय देते हुए पूरी टैंक बटालियन को खदेड़ दिया था। भले ही दुश्मन संख्या में अधिक हों, उनके पास आधुनिक हथियार हों, फिर भी विजयश्री उसी का वरण करती है जो साहस व वीरता के साथ देशभक्ति के जज्बे से प्रेरित होकर दुश्मन का सामना करता है।