रामजी पांडेय
नई दिल्ली:भारत में टीबी की चुनौती का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वैसे तो ज्यादा पुरुष टीबी की चपेट में आते हैं, लेकिन अध्ययनों से पता चलता है कि टीबी के लक्षणों के लिए अपने पुरुष समकक्ष की तुलना में महिलाओं की देखभाल की संभावना कम होती है, उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने महिलाओं में क्षय रोग पर राष्ट्रीय संसदीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार और महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्री मुंजपारा महेंद्रभाई मौजूद रहे।
सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया कि बिना लक्षण के मौजूद टीबी संक्रमण के सक्रिय टीबी में तब्दील होने के लिए उचित पोषण की कमी के साथ ही इसका खतरनाक स्वरूप जोखिम भरा कारक है। ऐसे में, क्षय रोग के कलंक से लड़ने के लिए यह सुनिश्चित करने की बात कही गई कि महिलाओं को पर्याप्त पोषण संबंधी मदद मिले और वे टीबी से उबरने के लिए पूरी देखभाल करें। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि 2025 तक टीबी को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करने में पूरे समाज की भागीदारी हो।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि टीबी को समाप्त करना एक राष्ट्रीय कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि 2025 तक टीबी को समाप्त करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो सभी लिंग और पृष्ठभूमि के लोगों को 'जन आंदोलन' में एक साथ लाए। उन्होंने सभी से बेहतर पोषण, स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के साथ ही बीमारी से जुड़े सामाजिक कलंक को दूर करने के लिए प्रयास करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर डॉ. मांडविया ने कहा, 'टीबी भारत के लिए प्रमुख जन स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल, देश में 24.8 लाख से अधिक टीबी के नए मामले सामने आते हैं और 4 लाख से ज्यादा लोग सालाना इस बीमारी से मर जाते हैं। देश में हर साल 10 लाख से ज्यादा महिलाएं व लड़कियां और 3 लाख से ज्यादा बच्चे टीबी की चपेट में आते हैं। गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद भ्रूण और शिशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ ही महिलाओं में इस बीमारी के जोखिम से समस्या और बढ़ जाती है।