रामजी पांडे
नई दिल्ली:एक विधवा महिला किसी पीड़ा की वजह से मौन सी हो जाती है और आगे न बोलने का फैसला लेती है। फिर जब उसके जीवन में बचपन के दोस्त का प्रवेश होता है तो उससे उसके घायल दिल में प्यार की लौ फिर जल उठती है। ईरानी निर्देशक सेतारेह एस्कंदरी की बलूची फिल्म द सन ऑफ दैट मून, सिने प्रेमियों के लिए एक डूब जाने वाला अनुभव है जिसमें बीबन के किरदार की कोलाहल भरी भीतरी दुनिया और वो रूढ़िवादी समाज नज़र आता है जिस समाज के लिए अपने बचपन के प्यार की चाह वर्जित है।
बलूची भाषा में 'खुर्शीद-ए आन माह' के नाम से मशहूर इस फिल्म का 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (इफ्फी) में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ है। सिस्तान और बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी ईरानी प्रांतों पर आधारित इस फ़िल्म को इफ्फी महोत्सव के विश्व पैनोरमा खंड में सिनेमा प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
बीबन के किरदार के जरिए फ़िल्म की निर्देशक बाहरी दुनिया के लोगों को ईरान की महिलाओं के आम जीवन और यहां के लोगों की कम-ज्ञात संस्कृति को दिखाना चाहती हैं। कल 25 नवंबर, 2021 को इस महोत्सव में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए फ़िल्म की निर्देशक ने अपनी वो प्रेरणा बताई जिसने उन्हें फ़िल्म बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक लोकाचार और परंपरा के डर से बीबन का प्यार मौन में ही परवान चढ़ता और गिरता है।