रामजी पांडे
नई दिल्ली डॉ. जीमन पन्नियमकल, वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, श्री चित्रा तिरुनल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, त्रिवेंद्रम में सहायक प्रोफेसर के रूप में तैनात हैं और अब प्रतिष्ठित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के 11 प्राप्तकर्ताओं में से एक हैं। उन्हें यह पुरस्कार पुरानी बीमारी महामारी विज्ञान, जटिल सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप और गुणवत्ता सुधार पहल के क्षेत्र में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी (2021) में उनके अनुकरणीय अनुसंधान कार्य तथा अनुसंधान नेतृत्व के लिए दिया गया हैI
सामुदायिक सेटिंग में उच्च रक्तचाप और मधुमेह के प्रबंधन के लिए कार्य-साझाकरण के मॉडल में डॉ. जीमोन के योगदान को शैक्षणिक समुदाय एवं निम्न और मध्यम आय वाले देशों के नीति निर्माताओं द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया है। इस कार्य पर आधारित दो महत्वपूर्ण शोध पत्र हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने समुदाय, कार्यस्थल सेटिंग्स और उच्च जोखिम वाले परिवारों में हृदय संबंधी खतरे के प्रबंधन के लिए प्राथमिक देखभाल के अनूठे मॉडल में योगदान किया है। भारत में रोकथाम और नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित करके उन्होंने निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हृदय विज्ञान को आगे बढ़ाने में मदद की है।
भारत में राष्ट्रीय स्तर पर 15 वर्षों से अधिक के अपने शोध करियर में उन्होंने हृदय रोग की स्थिति की रोकथाम और उसके नियंत्रण में विभिन्न अध्ययन डिजाइनों में अनुसंधान की विशेषज्ञता प्राप्त की है। वह नैदानिक परीक्षणों, बेडसाइड-टू-पॉपुलेशन प्रकार के अनुप्रयोग उपयुक्त परीक्षणों (ट्रांसलेशनल ट्रायल), जटिल सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के मूल्यांकन और गुणवत्ता सुधार की पहल, बड़े पैमाने पर रोगों का लेखाजोखा रखने {रजिस्ट्री) और प्रतिनिधि समूहों के (क्रॉस-सेक्शनल) निगरानी अध्ययनों में शामिल थे। वेलकम ट्रस्ट, एमआरसी (यूके), एनएचएमआरसी (ऑस्ट्रेलिया), एनआईएच (यूएसए) और वर्ल्ड डायबिटीज फेडरेशन से अनुसंधान अनुदान के साथ उन्होंने उच्च प्रभाव वाले अनेक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।
एक कठोर रैंडमाइज्ड नियंत्रित परीक्षण के बाद उनके शोध से यह निष्कर्ष निकला कि एक अनूठे परिवार-आधारित मॉडल से प्राप्त होने वाले लाभों से भारत में कोरोनरी हृदय रोग से होने वाली मौतों की एक बड़ी संख्या को रोकने की क्षमता भी शामिल हो सकती है। परिवार-आधारित मॉडल पर आधारित उनका हालिया शोध लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में एक मूल प्रपत्र के रूप में प्रकाशित हुआ है।
मधुमेह और हृदय रोग की रोकथाम के लिए कार्यस्थल-आधारित मॉडल, जिसका वे नेतृत्व कर रहे हैं, को विश्व हृदय संघ (वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपनाए जाने के लिए एक मॉडल के रूप में मान्यता दी गई है। यह भारत में संगठित कार्य क्षेत्र में हृदय और मधुमेह के जोखिम का प्रबंधन करने के लिए विशेष रूप से कोविड वैश्विक महामारी की अवधि में एक महत्वपूर्ण परियोजना है। निम्न और मध्यम आय वाले क्षेत्रों के अन्य देश इस मॉडल को दोहराने में सक्षम हो सकते हैं क्योंकि यह कोविड महामारी के समय में उनकी सेटिंग के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है।
डॉ. जीमन केरल के नीलांबुर के रहने वाले हैं और उन्होंने जन स्वास्थ्य में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण के तुरंत बाड ह्रदवाहिनी (कार्डियोवैस्कुलर) महामारी विज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने प्रो. के. श्रीनाथ रेड्डी और प्रो. डी प्रभाकरन जैसे प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञों के साथ काम करते हुए अपने शोध कौशल को और परिष्कृत किया, जो पूर्व में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के हृदयरोग (कार्डियोलॉजी) विभाग से जुड़े थे। उन्हें व्यवसाय विकास (करियर डेवलपमेंट) फेलोशिप (2013-2014), मध्यावधि (इंटरमीडिएट) करियर फेलोशिप (2015-2021) और हाल ही में वेलकम-डीबीटी इंडिया एलायंस (डीबीटी) से प्रतिष्ठित और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी सीनियर फेलोशिप (2021-2026) से सम्मानित किया गया है। इन फलोशिप ने उन्हें निवारक कार्डियोलॉजी पर ध्यान देने के साथ हृदय रोग महामारी विज्ञान में एक स्वतंत्र शोध कैरियर स्थापित करने में मदद की है। अपने नाम पर 130 से अधिक प्रकाशनों के साथउन्होंने उत्कृष्टता के कई वैश्विक संस्थानों के साथ अनुसंधान सहयोग का निर्माण भी किया है।