नई दिल्ली:जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री श्री बिशेश्वर टुडू ने राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान, (एनटीआरआई), भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए), नई दिल्ली, केआईएसएस, (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), ओडिशा और एससीएससीआरटीआई, ओडिशा के सहयोग से 23-24 सितंबर 2021 तक आयोजित दो दिवसीय वर्चुअल “राष्ट्रीय जनजातीय प्रतिभा पूल सम्मेलन” का उद्घाटन किया।
इस कार्यशाला के दौरान, उन्होंने ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 250 से अधिक जनजातीय शोधार्थियों के साथ बातचीत की। शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र भी प्रस्तुत किए। शोधार्थियों और उनके मार्गदर्शकों का मंत्रालय के अधिकारियों के साथ एक संवादात्मक सत्र का भी आयोजन किया।
जनजातीय प्रतिभा पूल पहल (एमओटीए) का उद्देश्य शिक्षण, सहायता और योगदान तथा मान्यता का माहौल उपलब्ध कराकर जनजातीय शोधार्थियों का विकास करना है, ताकि उन्हें केन्द्र और राज्य स्तर पर एमओटीए द्वारा किए गए विभिन्न अनुसंधान और मूल्यांकन गतिविधियों में भाग लेने में सक्षम बनाया जा सके।
इस अवसर पर श्री बिशेश्वर टुडू ने कहा कि आदिवासी समुदाय के पास न केवल अनुसंधान के क्षेत्र में क्षमता और कई प्रतिभाएं हैं, बल्कि वे खेल, कला और शिल्प में भी निपुण हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि शोधार्थियों में प्रेरणा और प्रोत्साहन की आवश्यकता के साथ-साथ जागरूकता की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जनजातीय प्रतिभा पूल सम्मेलन विभिन्न अनुसंधान संस्थानों द्वारा उचित मार्गदर्शन के साथ जनजातीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करेगा। इस प्रकार के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए और ये लंबी अवधि के होने चाहिए। उन्होंने कहा कि मंत्रालय, राज्य सरकार, गैर-सरकारी संगठनों, विश्वविद्यालयों को मानव विकास में महत्वपूर्ण सुधार अर्जित करने के लिए "आजादी का अमृत महोत्सव" पर मिलकर काम करना है, जिसमें शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव श्री अनिल कुमार झा ने कहा कि मंत्रालय देश में जनजातीय विकास के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता है। “राष्ट्रीय जनजातीय प्रतिभा पूल सम्मेलन मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य जनजातीय शोधार्थियों के लिए राष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि जनजातीय प्रतिभाओं को एक मंच पर सामूहिक रूप से प्रदर्शित किए जाने की जरूरत है। जनजातीय विद्वान केंद्र और राज्य दोनों स्तरों, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में नीति निर्माण और समुदाय के विकास के लिए भी योगदान कर सकते हैं। इस तरह के सम्मेलन/कार्यशालाएं इन जनजातीय शोधार्थियों को अपने शोध कार्य के साथ सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। उन्होंने सभी भागीदारों कों उनके इस प्रयास के लिए बधाई देते हुए यह सुझाव दिया कि ज्ञान वृद्धि के लिए सहयोग एक बुनियादी कुंजी है और विद्वानों की नेटवर्किंग इस तरह के शोध विषय में काम करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।