एक बहुत बुजुर्ग सेठ थे । वे पुराने खानदानी रईस थे, धन-ऐश्वर्य प्रचुर मात्रा में था परंतु लक्ष्मीजी का तो है चंचल स्वभाव । आज यहाँ तो कल वहाँ
सेठ ने एक रात को स्वप्न में देखा कि एक स्त्री उनके घर के दरवाजे से निकलकर बाहर जा रही है
उन्होंने पूछा हे देवी आप कौन हैं मेरे घर में आप कब आयीं और मेरा घर छोडकर आप क्यों और कहाँ जा रही हैं
वह स्त्री बोली मैं तुम्हारे घर की वैभव लक्ष्मी हूँ कई पीढियों से मैं यहाँ निवास कर रही हूँ किन्तु अब मेरा समय यहाँ पर समाप्त हो गया है, इसलिए मैं यह घर छोडकर जा रही हूँ । मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ, क्योंकि जितना समय मैं तुम्हारे पास रही, तुमने मेरा भरपूर सदुपयोग किया । संतों व को घर पर आमंत्रित करके उनकी सेवा की गरीबों को भोजन कराया, धर्मार्थ कुएँ-तालाब बनवाये, गौशाला व प्याऊ बनवायी । तुमने लोक-कल्याण के कई कार्य किये । अब जाते समय मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ । जो चाहे मुझसे माँग लो
सेठ ने कहा मेरी चार बहुएँ है, मैं उनसे सलाह-मशविरा करके आपको बताऊँगा । आप कृपया कल रात को पधारें
सेठ ने चारों बहुओं की सलाह ली
उनमें से एक ने अन्न के गोदाम तो दूसरी ने सोने-चाँदी से तिजोरियाँ भरवाने के लिए कहा
किन्तु सबसे छोटी बहू धार्मिक कुटुंब से आयी थी। बचपन से ही सत्संग में जाया करती थी
उसने कहा पिताजी ! लक्ष्मीजी को जाना है तो जायेंगी ही और जो भी वस्तुएँ हम उनसे माँगेंगे वे भी सदा नहीं टिकेंगी । यदि सोने-चाँदी, रुपये-पैसों के ढेर माँगेगें तो हमारी आनेवाली पीढी के बच्चे अहंकार और आलस में अपना जीवन बिगाड देंगे। इसलिए आप लक्ष्मीजी से कहना कि वे जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें किन्तु हमें यह वरदान दें कि हमारे घर में सज्जनों की सेवा-पूजा, स्वाध्याय, तत्व चिंतन कथा सदा होती रहे तथा हमारे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में प्रेम होगा तो विपत्ति के दिन भी आसानी से कट जायेंगे
दूसरे दिन रात को लक्ष्मीजी ने स्वप्न में आकर सेठ से पूछा तुमने अपनी बहुओं से सलाह-मशवरा कर लिया क्या चाहिए तुम्हें
सेठ ने कहा हे माँ लक्ष्मी ! आपको जाना है तो प्रसन्नता से जाइये परंतु मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे घर में स्वाध्याय तत्व चिंतन धार्मिक कथा तथा संतो की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम बना रहे
यह सुनकर लक्ष्मीजी चौंक गयीं और बोलीं ‘यह तुमने क्या माँग लिया। जिस घर में स्वाध्याय और संतो की सेवा होती हो तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रीति रहे वहाँ तो साक्षात् सर्वार्थसिद्धि योग जैसा माहौल होता है और जहाँ तत्व चिंतन स्वाध्याय होता हैं वहाँ मैं तो उनके चरण वन्दन करती (दबाती) हूँ और मैं चाहकर भी उस घर को छोडकर नहीं जा सकती। यह वरदान माँगकर तुमने मुझे यहाँ रहने के लिए विवश कर दिया है
यह कथा सिर्फ जड़ लक्ष्मी प्राप्ति का उपाय नहीं जिन घरों में स्वाध्याय होता है निरंतर तत्व चिंतन होता है वहां तो लौकिक में भी समता के कारण सभी जीव सुखी होते हैं और भविष्य में भी सुखी रहते हैं और भविष्य में केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी जिनके आंगन में प्रकट रहती हैं इसलिए तत्व चिंतन स्वाध्याय से जुड़े और अपना भविष्य मंगलमय करें।