शंकर झा
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता होगा कि जब रावण कैलाश पर्वत उठा सकता था तो शिव का धनुष कैसे नहीं उठा पाया और भगवान श्रीराम कैसे उस धनुष को उठाकर तोड़ पाए?
इसका जवाब पाने की कोशिश करते हैं:-
महादेव के पिनाक धनुष की कथा : -
भगवान श्री राम ने सीता जी के स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा से शिवजी का कठोर धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था। लेकिन शिवजी का वह धनुष किसने और किससे बनाया था तथा वह शिव धनुष महाराज जनक जी के पास कैसे पहुंचा, इस रहस्य को बहुत कम लोग जानते हैं।
पिनाक धनुष की बड़ी विचित्र कथा है। कहते हैं एक बार घोर कानन के अंदर कण्व मुनि बड़ी भारी तपस्या कर रहे थे।तपस्या करते करते समाधिस्थ होने के कारण उन्हें भान ही नहीं रहा कि उनका शरीर दीमक के द्वारा बांबी बना दिया गया। उस मिट्टी के ढ़ेर पर ही एक सुंदर बांस उग आया। कण्व ॠषि की तपस्या जब पूर्ण हुई,तब ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने अपने अमोघ जल के द्वारा कण्व ऋषि की काया को सुंदर बना दिया।
ब्रह्मा जी ने उन्हें अनेक वरदान प्रदान किए और जब ब्रह्मा जी जाने लगे,तब उन्हें ध्यान आया कि कण्व की मूर्धा पर उगी हुई बांस कोई साधारण नहीं हो सकती।इसलिए इसका सदुपयोग किया जाना चाहिए।यह विचारकर ब्रह्मा जी ने वह बांस काट कर विश्वकर्मा जी को दे दिया। विश्वकर्मा जी ने उससे दो दिव्य धनुष बनाये,जिनमें एक जिसका नाम सारंग था, उन्होंने भगवान विष्णु को और एक जिसका नाम पिनाक था,शिव जी को समर्पित कर दिया।
पिनाक धनुष धारण करने के कारण ही शिवजी को पिनाकी कहा जाता है। शिवजी ने जिस पिनाक धनुष को धारण किया था, उसकी एक टंकार से बादल फट जाते थे और पृथ्वी डगमगा जाती थी। ऐसा लगता था मानों कोई भयंकर भूकंप आ गया हो। यह असाधारण धनुष अत्यंत ही शक्तिशाली था। इसी के मात्र एक ही तीर से भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद यह धनुष देवताओं को सौंप दिया। देवताओं ने इस धनुष को महाराजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया।
बाद में धनुष का क्या हुआ?
देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे,शिव-धनुष उन्हीं की धरोहर स्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था ।
धनुष की विशेषता :- भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था, धनुष की टंकार मात्र से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे, ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो।यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था, इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था, इस धनुष का नाम पिनाक था।
रावण क्यों नहीं उठा पाया धनुष?
रावण एक अहंकारी मनुष्य था, रावण धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था,रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था,वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार की वजह से धनुष को हिला भी नहीं पाए ।
श्रीराम ही धनुष को क्यों उठा पाए?
जब कोई उस धनुष को नहीं उठा पा रहा था तो जनक जी को निराश देखकर गुरु विश्वामित्र श्री श्रीरामजी से कहते हैं कि :-
"उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापा I"
भावार्थ- श्रीराम उठो और "भव सागर रुपी" इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।"
जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझ चुके थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है, इसीलिए सबसे पहले उन्हों धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया ।
प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही खतम हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया।
कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिवजी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए!
महाराजा जनक जी के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिवजी का वह धनुष उन्हीं की धरोहर स्वरूप जनक जी के पास सुरक्षित था। इस शिव-धनुष को उठाने की क्षमता कोई नहीं रखता था। एक बार देवी सीता जी ने इस धनुष को उठा दिया था, जिससे प्रभावित हो कर जनक जी ने सोचा कि यह कोई साधारण कन्या नहीं है। अत: जो भी इससे विवाह करेगा, वह भी साधारण पुरुष नहीं होना चाहिए। इसी लिए ही जनक जी ने सीता जी के स्वयंवर