रायपुर. रायपुर की रहने वाली विद्या राजपूत किन्नर समुदाय के अधिकारियों के लिए पिछले कई सालों से काम कर रहीं हैं। सोमवार की दोपहर जब पुलिस भर्ती के नतीजे आए तो लिस्ट में अपने साथियों का नाम देखकर हैरानी भी हुई और खुशी थी। खाकी तक पहुंचने के मुश्किल सफर तृतीय लिंग समूह का कोई भी शख्स भूल नहीं सकता। यह पहली बार है जब इस तरह की सरकारी नौकरी में समाज का तिरस्कार झेल रहे वर्ग को मौका दिया गया। एक आम सी जिंदगी चाहत लिए किन्नरों को समाज की रेस से बाहर होना पड़ता है। ये पुलिस भर्ती की रेस में दौड़े, और ऐसा दौड़े की अब इनकी कामयाबी हर वर्ग के लिए प्रेरणा बन चुकी है । पिछली जिंदगी में इन्होंने जो झेला उसके बाद फिर से खड़ा होना और कुछ हासिल करना मायने रखता है। पढ़िए पहली बार छत्तीसगढ़ पुलिस का हिस्सा बनने जा रहे ऐसे ही तृतीय लिंग समुदाय के इन लोगों की कहानी, उन्हीं के शब्दों में।
बचपन तो मजाक बनाए जाने और गालियों में बीता, अब मौका सम्मान का है
शबूरी ने बताया कि खाकी पुलिस का गौरवशाली यूनिफॉर्म तो है कि उससे भी कहीं ज्यादा ये मेरे लिए सम्मान की खाकी है। इस वर्दी की सभी इज्जत करते हैं। बचपन में मैं लड़कों से अलग थी। सभी मेरा मजाक बनाते थे, गालियां देते थे। तब मैंने देखा था कि सभी पुलिस से डरते हैं, सम्मान करते हैं। तभी सोच लिया था कि बड़ी होकर पुलिस में जाउंगी। जब साल 2017 में ये पता चला कि हमें भी पुलिस भर्ती में मौका मिल सकता है तो तैयारी में लग गए। मैदान में जाना और फिजिकल ट्रेनिंग की तैयारी करना बेहद मुश्किल रहा । मगर अब जब सलेक्शन हुआ है तो बेहद खुशी है। अब तक हम सम्मान के लिए तरसते थे, इस पुलिस युनिफॉर्म हमें वो सम्मान दिलाएगी।
घरों में किया झाड़ू-पोछे का काम, लड़कों की छेड़खानी भी झेली
रायपुर की शिवन्या का भी पुलिस कॉन्सटेबल के तौर पर सलेक्शन हुआ है। शिवन्या ने बताया कि वो अपनी मां के साथ रहती हैं। पैसों की तंगी की वजह से मां के साथ घरों में झाड़ू-पोछा लगाने का काम भी किया। जब लड़कियों की तरह रहने लगी तो मालिकों ने काम से निकालने का दबाव बनाया। वो काम हाल ही छोड़ना पड़ा। कॉलेज में पढ़ाई के लिए पहुंची तो टायलेट जाते वक्त लड़के छेड़ते थे। जब लंट टाइम होता था तो टॉयलेट नहीं जाती थी क्योंकि सभी स्टूडेंट बाहर ही होते थे और मजाक बनाते थे। क्लास शुरू होने पर टॉयलेट जाने से टीचर डांटते थे। कभी लोग मामू तो कभी किन्नर कहकर चिढ़ाते थे। एक बार कॉलेज के लड़कों ने टॉयलेट में बंद कर दिया था। इस तरह की छेड़छाड़ झेलकर पढ़ाई जारी रखी। मुझे देखकर लड़कियां भी मुंह बनाती थीं, आपस में फुसफुसाया करती थीं, मगर मैने भी कुछ बनने कोशिश जारी रखी और कामयाबी मिली।
सोचा क्यों न सुसाइड ही कर लूं मगर फिर हालातों से लड़ना सीखा
रायपुर की दीप्शा भी जल्द ही पुलिस युनीफॉर्म में दिखेंगी। लाखे नगर में रहने वाली दिप्शा ने बताया कि बचपन में जब लोग मुझे लड़कियों की तरह कपड़े पहनने या सजने पर चिढ़ाते थे तो बुरा लगता था। मैं सोचती थी कि भगवान ने मुझे क्यों नॉर्मल जिंदगी नहीं थी। इस वजह से मैंने सुसाइड करने की भी कोशिश की थी। मैंने जहर पी लिया था। मगर मुझे डॉक्टरों ने नया जीवन दिया। किन्नरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली विद्या जी के संपर्क में आने के बाद मैंने हालातों से लड़ना सीखा। मैंने समझा कि मुझे खुद को स्वीकारते हुए आगे बढ़ना होगा। हमारे मुहल्ले के एक लड़के ने मुझसे छेड़छाड़ की थी, मैने विरोध किया तो उसने चाकू से हमला कर दिया था। समाज का यह रूप देखकर मैंने खुद को संभाला मेरे घर वाले भी कहते थे कि कुछ बनकर दिखाओ खुद को साबित करो। इसी से मैंने खुद को मोटीवेट किया और अब पुलिस सर्विस में मेरा सलेक्शन हुआ है।
घर वालों ने निकाला, भीख मांगकर रोटी का बंदोबस्त करना पड़ा था
नैना रायपुर के संतोषी नगर में रहती थीं। 4 साल पहले इसे घर वालों ने घर से निकाल दिया था। वजह थी इसके व्यवहार में आने वाला बदलाव। सभी इसे लड़कों की तरह रहने के लिए दबाव बनाते थे। मगर नैना अपने अंदर मौजूद औरत को महसूस कर सकती थी। वो लड़कियों की तरह ही रहना चाहती थी।इसी बात पर घर वालों से झगड़ा हुआ। घर वालो ने इसे स्वीकार नहीं किया और यह कहते हुए घर से निकाल दिया कि जाकर नाचो-गाओ और किन्नरों के बीच ही रहो। मगर नैना को यह सब पसंद नहीं था। उसने बताया कि पंडरी के कपड़ा मार्केट में उसने काम किया। लॉकडाउन में नौकरी चली गई, हाइवे पर ट्रक वालों से भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया और इसी हाल में पुलिस भर्ती की तैयारी की। प्रैक्टिस की बदौलत अब सलेक्शन भी हो गया है। जल्द ही नैना रायपुर के किसी चौराहे पर या भीड़ में कानून व्यवस्था संभालती दिखेंगी।