नई दिल्ली.डिजिटल मीडिया के लिए जारी हुई नई गाइडलाइन का सबसे बड़ा फायदा उन यूजर्स को मिलने जा रहा है, जिनकी सोशल मीडिया या OTT के खिलाफ शिकायतें अब तक नहीं सुनी जाती थीं। सबसे ज्यादा नकेल बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों पर कसी गई है। उन्हें गाइडलाइन पर अमल के लिए तीन महीने का वक्त मिला है। हालांकि, सरकार इस सवाल का जवाब टाल गई कि गंभीर आपत्तिजनक कंटेंट के मामलों में जेल किसे होगी? यूजर को या सोशल मीडिया को?
सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं कि इस गाइडलाइन की जरूरत क्यों पड़ी, इसमें यूजर्स और कंपनियों के लिए क्या है और सरकार क्या करने वाली है...
मामला 2018 से शुरू हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन बनाने को कहा
इस मामले की शुरुआत 11 दिसंबर 2018 से हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप, गैंगरेप से जुड़े कंटेंट को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से हटाने के लिए जरूरी गाइडलाइन बनाए। सरकार ने 24 दिसंबर 2018 को ड्राफ्ट तैयार किया। इस पर 177 कमेंट्स आए।
किसान आंदोलन के बाद गाइडलाइन का मुद्दा सबसे ज्यादा गरमाया
सोशल मीडिया में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के इस्तेमाल बनाम गलत इस्तेमाल को लेकर लंबे वक्त से डिबेट चल रही थी। इस मामले में अहम मोड़ किसान आंदोलन के वक्त से आया। 26 जनवरी को जब लाल किले पर हिंसा हुई तो सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों पर सख्ती बरती।
सरकार का कहना था कि अगर अमेरिका में कैपिटल हिल पर अटैक होता है तो सोशल मीडिया पुलिस कार्रवाई का समर्थन करता है। अगर भारत में लाल किले पर हमला होता है तो आप डबल स्टैंडर्ड अपनाते हैं। ये हमें साफतौर पर मंजूर नहीं है।
OTT यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स पर भी अश्लीलता परोसने के आरोप लग रहे हैं। इस बार संसद सत्र में OTT को लेकर सांसदों की तरफ से 50 सवाल पूछे गए। पिछले 3 साल से देश में OTT प्लेटफॉर्म्स तेजी से बढ़े। पिछले साल मार्च से जुलाई के बीच इसमें सबसे ज्यादा 30% की ग्रोथ हुई। मार्च 2020 में 22.2 मिलियन OTT यूजर्स थे, जो जुलाई 2020 में 29 मिलियन हो गए। देश में अभी 40 बड़े OTT प्लेटफॉर्म्स हैं।
गाइडलाइन के दायरे में 4 तरह के प्लेटफॉर्म्स आएंगे
सरकार ने गाइडलाइन में चार शब्दों का इस्तेमाल किया है। पहला- इंटरमीडिएरीज। दूसरा- सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज। तीसरा- सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज। चौथा- OTT प्लेटफॉर्म्स।
इंटरमीडिएरी के मायने ऐसे सर्विस प्रोवाइडर से हैं, जो यूजर्स के कंटेंट को ट्रांसमिट और पब्लिश तो करता है, लेकिन न्यूज मीडिया की तरह उस कंटेंट पर उसका कोई एडिटोरियल कंट्रोल नहीं होता। ये इंटरमीडिएरीज आपके इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स हो सकते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हो सकते हैं या ऐसी वेब सर्विसेस हो सकती हैं जो आपको कंटेंट अपलोड करने, पोस्ट करने या पब्लिश करने की इजाजत देती हैं।
सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स के लिए 4 कॉमन फायदे
1. आपकी शिकायतें सुनी जाएंगी
अब तक यूजर्स के पास सोशल मीडिया पोस्ट्स के खिलाफ आवाज उठाने के लिए रिपोर्ट बटन था, लेकिन शिकायतों के निपटारे का पुख्ता सिस्टम नहीं था। अब सोशल और डिजिटल मीडिया कंपनियों को ऐसा मैकेनिज्म बनाना होगा, जहां यूजर्स या विक्टिम अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे।
2. शिकायतें कौन सुनेगा, यह पता रहेगा
अब तक यूजर्स को यह नहीं पता होता कि सोशल मीडिया पोस्ट्स के खिलाफ रिपोर्ट करने पर उस पर कौन विचार कर रहा है। अब कंपनियों को यूजर्स की शिकायतें निपटाने वाले अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। ऐसे अधिकारी का नाम और उसके कॉन्टैक्ट डिटेल्स बताने होंगे।
3. शिकायतों पर कितने दिन में कार्रवाई होगी, यह पता रहेगा
अभी यूजर्स को कोई टाइमफ्रेम भी नहीं मिलता कि कब तक उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई होगी। गाइडलाइन के तहत शिकायत अधिकारी को 24 घंटे के अंदर सुनवाई करनी होगी और 15 दिन के अंदर शिकायत को निपटाना होगा।
4. महिलाओं की शिकायतों पर 24 घंटे में एक्शन होगा
यूजर्स और खासकर महिलाओं की गरिमा के खिलाफ पाए जाने वाले कंटेंट को अब कंपनियों को 24 घंटे के अंदर हटाना हाेगा। इसका फायदा उन मामलों में मिलेगा, जिनमें महिलाओं की प्राइवेसी खतरे में पड़ती हो, न्यूडिटी या सेक्शुअल एक्ट से जुड़ा मसला हो या उनकी फोटो किसी ने मॉर्फ की हो।
वॉट्सऐप, फेसबुक जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नकेल
सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज के दायरे में छोटे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आएंगे। उन्हें ऊपर बताई गाइडलाइन माननी होगी, जो सभी प्लेटफॉर्म्स के लिए कॉमन है। अब सवाल उठता है कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज क्या है?
यहां सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडिएरीज के मायने ऐसे प्लेटफॉर्म से हैं, जहां यूजर्स की संख्या ज्यादा है। जाहिर है कि इसके दायरे में 53 करोड़ यूजर्स वाली वॉट्सऐप, 44.8 करोड़ यूजर्स वाली यू-ट्यूब, 41 करोड़ यूजर्स वाली फेसबुक, 21 करोड़ यूजर्स वाली इंस्टाग्राम और 1.75 करोड़ यूजर्स वाली ट्विटर आएगी।
बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर 8 तरह से सख्ती, फर्स्ट ओरिजिन के बारे में बताना होगा
1. सबसे बड़ी सख्ती यह है कि सोशल मीडिया कंपनियों को आपत्तिजनक पोस्ट्स के फर्स्ट ओरिजिन को ट्रेस करना होगा। यानी सोशल मीडिया पर खुराफात सबसे पहले किसने शुरू की? अगर भारत के बाहर से इसका ओरिजिन है, तो भारत में इसे किसने सबसे पहले सर्कुलेट किया, यह बताना होगा।
2. देश की संप्रभुता, सुरक्षा, पब्लिक ऑर्डर, फॉरेन रिलेशंस और रेप जैसे मामलों में फर्स्ट ओरिजिन की जानकारी देनी होगी। जिन आरोपों के साबित होने पर 5 साल से ज्यादा की सजा हो सकती है, ऐसे मामलों में ओरिजिन बताना होगा। कंटेंट बताने की जरूरत नहीं होगी।
3. सरकार के बनाए कानूनों और नियमों पर अमल सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को चीफ कम्प्लायंस ऑफिसर नियुक्त करना होगा। यह ऑफिसर भारत में रहने वाला व्यक्ति होना चाहिए।
4. एक नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन नियुक्त करना होगा, जिससे सरकारी एजेंसियां 24X7 कभी भी संपर्क कर सकें। यह नोडल ऑफिसर भी भारत में रहने वाला व्यक्ति होना चाहिए।
5. बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को हर महीने कम्प्लायंस रिपोर्ट जारी करनी होगी कि कितनी शिकायतें आईं और उन पर क्या कदम उठाए गए।
6. ऐसी कंपनियों को अपनी वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर भारत में मौजूद उनका एक कॉन्टैक्ट एड्रेस भी बताना होगा।
7. सोशल मीडिया पर मौजूद यूजर्स वेरिफाइड हों, इसके लिए वॉलंटरी वेरिफिकेशन मैकेनिज्म बनाना होगा। SMS पर OTP के जरिए इस तरह का वेरिफिकेशन हो सकता है।
8. अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी यूजर के कंटेंट को रिमूव करता है तो आपको यूजर को इस बारे में सूचना देनी होगी, उसके कारण बताने होंगे और यूजर की बात सुननी होगी।
OTT प्लेटफॉर्म्स को 6 बातें माननी होंगी, बच्चों को दूर रखने के लिए पैरेंटल लॉक मिलेगा
1. OTT प्लेटफॉर्म्स की एक बॉडी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज या इस फील्ड के किसी विशेषज्ञ व्यक्ति की अध्यक्षता में बने। यह बॉडी शिकायतों की सुनवाई करे और उस पर जो जजमेंट आए, उसे माने। यह ठीक उसी तरह होगा, जिस तरह टीवी चैनल अपने कंटेंट के लिए खेद जताते हैं या जुर्माना देते हैं। ऐसा करने को सरकारें उनसे नहीं कहतीं। वे खुद करते हैं। यह सेल्फ रेगुलेशन है।
2. OTT और डिजिटल मीडिया को डिटेल्स/डिस्क्लोजर पब्लिश करने होंगे कि वे इन्फॉर्मेशन कहां से पाते हैं।
3. शिकायतें निपटाने का सिस्टम वैसा ही रखना होगा, जैसा बाकी इंटरमीडिएरीज के लिए है। यानी शिकायतें रिपोर्ट करने के लिए सिस्टम बनाएं, शिकायत निपटाने वाले अधिकारी की नियुक्ति करें और उसका कॉन्टैक्ट डिटेल्स बताएं, तय टाइमफ्रेम में शिकायतों का निपटारा करें।
4. OTT प्लेटफॉर्म्स को 5 कैटेगरी में अपने कंटेंट को क्लासिफाई करना होगा। U (यूनिवर्सल), U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+ और A यानी एडल्ट।
5. U/A 13+ और इससे ऊपर की कैटेगरी के लिए पैरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी ताकि वे बच्चों को इस तरह के कंटेंट से दूर रख सकें।
6. एडल्ट कैटेगरी में आने वाले कंटेंट देखने लायक उम्र है या नहीं, इसका भी वेरिफिकेशन मैकेनिज्म बनाना होगा।
डिजिटल न्यूज मीडिया में भी सेल्फ रेगुलेशन पर जोर
डिजिटल न्यूज मीडिया के पब्लिशर्स को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और केबल टीवी नेटवर्क रेगुलेशन एक्ट से जुड़े नियमों को मानना होगा ताकि प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया के बीच रेगुलेशन का सिस्टम एक जैसा हो। सरकार ने डिजिटल न्यूज मीडिया पब्लिशर्स से प्रेस काउंसिल की तरह सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनाने को कहा है।