पर्यावरण जीवन का आधार है और आधार से छेड़खानी पूरी ईमारत को हिलाती ही नही है बल्कि नेस्तनाबूद भी कर देती है।
हालांकि पूंजीवाद ने सुविधाएं दी है जिस से समय रहते पर्यावरण आपदाओं की सूचना मिल जाती है समय रहते आपदाओं से नुकसान को कम भी किया जा सकता है लेकिन पर्यावरण आपदाओं का असली कारण भी तो असन्तुलित पूंजीवादी सोच ही रही है।
यह अंतिम आपदा नहीं है अगर हमने धरती के बढ़ते तापमान को कंट्रोल नहीं किया तो भविष्य में इससे भी बड़ी और डरावनी घटनाएं होगी।
दुनिया में औद्योगिक क्रांति के बाद से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड में 47 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है जिससे धरती के औसत तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई है।
अगर अब मानव जाति ने इस पर काम नहीं किया तो यह धरती इंसान और बाकी जीवो के रहने के लायक नहीं रह जाएगी अगर कार्बन उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा तो आने वाले वक्त में सामान्य से ज्यादा बारिश,मैदानी इलाकों में बाढ़, तटीय इलाकों का डूब जाना, और उष्णकटिबंधीय इलाकों में गर्म हवाओं का चलना इस धरती पर जीवन की सभी संभावनाओं को खत्म कर देंगे।
इस तरह की आपदाओं से हर साल हजारों लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहें है , इसके कारण भी मानव जनित ही है , अगर हम केदारनाथ को याद करें तो उस घटना के बाद एक कमेटी गठित हुई थी जिसे उत्तराखंड में नए पावर प्लांट व इस तरह के उद्योगों पर एक रिपोर्ट पेश करनी थी जो प्राकृतिक संसाधनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हानि पहुँचा रहे थे , उत्तराखंड में सैंकड़ो बिजली प्रॉजेक्ट ऐसे है जिनसे वहाँ की जलवायु सीधे तौर पर बड़ी तेजी से प्रभावित हुई है। आजतक सरकारों की तरफ से ना इसपर कोई रिपोर्ट आई है और ना ही लोगो ने दोबारा इसपर जानने की कोशिश की , हमें सब तब ही याद आता है जब नुकसान हो जाता है।
जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देना ही एकमात्र विकल्प है । हमें समय रहते खराब हो चुकी व्यवस्थाओ को ठीक करना होगा ।
उत्तराखण्ड में हुई इस त्रासदी की जिम्मेदारी सीधे तौर पर पॉवर प्लांट लगाने वाली कम्पनियों व इन्हें अनुमति देने वाली सरकार के साथ हमारी भी है।
विकास निश्चित तौर पर मानव जाति की जरूरत है लेकिन इसमें अंधापन और प्रकृति को नजरअंदाज करने का रवैया नही होना चाहिए।
- Stand With Nature
प्रकाश चंद सैनी