tap news India deepak tiwari तमिलनाडु के मदुरै में रहने वाले मुरुगेसन का बचपन तंगहाली में गुजरा। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए आठवीं के बाद ही वे पढ़ाई छोड़कर खेती में पिता की मदद करने लगे। हालांकि खेती में कुछ खास मुनाफा नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे करके वे अपना काम चला रहे थे। इसी बीच एक दिन गांव में ही एक आदमी को केले की छाल से रस्सी तैयार करते देखा। वह आदमी उस रस्सी से फूलों की माला तैयार कर रहा था। उन्होंने पास जाकर देखा और उसके काम को समझा। इसके बाद मुरुगेसन ने तय किया कि क्यों न इस काम को बिजनेस के रूप में किया जाए।
57 साल के मुरुगेसन बताते हैं कि केले की बाहरी छाल को लोग या तो फेंक देते हैं या जला देते हैं। कॉमर्शियल फॉर्म में इसका इस्तेमाल बहुत ही कम लोग करते हैं। मैंने घर में इस आइडिया को लेकर पिता जी से बात की। उन्हें भी आइडिया पसंद आया। इसके बाद 2008 में मैंने केले के फाइबर से रस्सी बनाने का काम शुरू किया।
हर साल 500 टन केले के ‘फाइबर वेस्ट’ की प्रोसेसिंग करते हैं
वे बताते हैं कि शुरुआत में यह काम मुश्किल था। उन्हें सारा काम हाथ से ही करना पड़ता था। ऐसे में वक्त ज्यादा लगता था और काम कम हो पाता था। कई बार तो रस्सी ठीक से तैयार भी नहीं हो पाती थी। इसके बाद एक मित्र ने उन्हें नारियल की छाल को प्रोसेस करने वाली मशीन के बारे में बताया। हालांकि इस मशीन से उन्हें कोई फायदा नहीं मिला। मुरुगेसन केले के फाइबर की प्रोसेसिंग मशीन बनाने के लिए लगातार प्रयोग करते रहे। आखिरकार एक दिन उन्होंने पुरानी साइकिल की रिम और पुली का इस्तेमाल करके एक ‘स्पिनिंग डिवाइस’ बनाया। ये प्रयोग सफल रहा। अभी मुरुगेसन हर साल 500 टन केले के ‘फाइबर वेस्ट’ की प्रोसेसिंग करते हैं। सालाना करीब एक करोड़ रुपए उनका टर्नओवर है।
कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
इस मशीन को तैयार करने में करीब एक लाख रुपए का खर्च आया। इस मशीन के लिए उन्हें पेटेंट भी मिल चुका है। केले के फाइबर से रस्सी बनाने के लिए सबसे पहले उसके तने को टुकड़ों में काट लिया जाता है। इसके बाद उसके ऊपर की छाल को हटाकर तने को कई भागों में पतला-पतला काटा लिया जाता है। इसके बाद केले की छालों को सूखने के लिए धूप में डाल दिया जाता है। चार से पांच दिन बाद इन सूखे हुई छालों को मशीन में डालकर अपनी जरूरत के हिसाब से रस्सी तैयार की जाती है। मशीन की मदद से कई छोटे-छोटे रेशों को जोड़कर मोटी और मजबूत रस्सी भी तैयार की जाती है। मुरुगेसन अभी 15 हजार मीटर तक लंबी रस्सी बना रहे हैं।
मुरुगेसन ने अपने साथ इस काम के लिए सौ से ज्यादा लोगों को जोड़ा है। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। वे अपनी रस्सी इन्हें देते हैं और उनसे तरह-तरह के प्रोडक्ट तैयार करवाते हैं। इसके बाद उसे मार्केट में भेजते हैं। वे अभी केले के वेस्ट फाइबर से कई तरह की रस्सी, चटाई, टोकरी, चादर, सजावट के सामान जैसी चीजें तैयार कर रहे हैं।
कैसे करते हैं कमाई?
मुरुगेसन को भारत के साथ-साथ दूसरे देशों से भी ऑर्डर मिल रहा है। उन्होंने एमएस रोप प्रोडक्शन नाम से एक कंपनी बनाई है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से फोन कर ऑर्डर कर सकते हैं। इसके साथ ही वे कई शहरों में प्रदर्शनी लगाकर भी अपने उत्पाद भेजते हैं। हाल ही में उन्होंने रस्सी तैयार करने वाली मशीन का भी कारोबार शुरू किया है। उन्होंने अब तक तमिलनाडु, मणिपुर, बिहार, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में लगभग 40 मशीनें बेची हैं। वे कहते हैं कि नाबार्ड ने उनसे संपर्क किया है। वे 50 मशीन उसे सप्लाई करेंगे।
बनाना फाइबर वेस्ट की इकोनॉमी
भारत में बड़े लेवल पर केले का उत्पादन होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन देश में होता है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात और बिहार में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। अगर फाइबर वेस्ट की बात करें तो हर साल 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फाइबर भारत में होता है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में अब इस वेस्ट का कॉमर्शियल यूज हो रहा है। कई जगह बनाना फाइबर टेक्सटाइल भी बनाए गए हैं।
कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?
बनाना वेस्ट से फाइबर निकालने और उससे प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग देश में कुछ जगहों पर दी जा रही है। तिरुचिरापल्ली में 'नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना' में इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें कोर्स के हिसाब से फीस जमा करनी होती है। इसके अलावा कई राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्र में भी इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। कई किसान व्यक्तिगत रूप से भी लोगों को ट्रेंड करने का काम कर रहे हैं। खुद मुरुगेसन कई लोगों को ट्रेंड कर चुके हैं।