किसी व्यक्ति में या किसी वस्तु में थोड़ा सा भी अवगुण देखकर कई व्यक्ति आग−बबूला हो उठते हैं और उसकी उस छोटी सी बुराई को ही बढ़ा-चढ़ाकर कल्पित करते हुए ऐसा मान बैठते हैं मानों यही सबसे खराब हो। अपनी एक बात किसी ने नहीं मानी तो उसे अपना पूरा शत्रु ही समझ बैठते हैं। जीवन में अनेकों सुविधाऐं रहते हुए भी यदि कोई एक असुविधा है तो उन सुविधाओं की प्रसन्नता अनुभव न करते हुए सदा उस अभाव का ही चिंतन करके खिन्न बने रहते हैं। ऐसे लोगों को सदा संताप और क्रोध की आग में ही झुलसते रहना पड़ेगा। इस संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसमें कोई दोष-दुर्गुण नहीं और न ही कोई वस्तु ऐसी है जो सब प्रकार हमारे अनुकूल ही हो। सब व्यक्ति सदा वही आचरण करें जो हमें पसंद है ऐसा हो नहीं सकता।
सदा मनचाही परिस्थितियाँ किसे मिली हैं? किसी को समझौता करके जो मिला है उस पर सन्तोष करते हुए यथासंभव सुधार करते चलने की नीति अपनानी पड़ी है तभी वह सुखी रह सकता है। जिसने कुछ नहीं, या सब कुछ की माँग की है उसे क्षोभ के अतिरिक्त और कुछ उपलब्ध नहीं हुआ है। अपनी धर्मपत्नी में कई अवगुण भी हो सकते हैं यदि उन अवगुणों पर ही ध्यान रखा जाय तो वह बहुत दुखदायक प्रतीत होगी। किन्तु यदि उसके त्याग, आत्म-समर्पण, वफादारी, सेवा-बुद्धि, उपयोगिता, उदारता एवं निस्वार्थता की कितनी ही विशेषताओं का देर तक चिन्तन करें तो लगेगा कि वह साक्षात् देवी के रूप में हमारे घर अवतरित हुई है। उसी प्रकार पिता−माता के एक कटुवाक्य पर क्षुब्ध हो उठने उपकार, वात्सल्य एवं सहायता की लम्बी शृंखला पर विचार करें तो उत्तेजनावश कह दिया गया एक कटु शब्द बहुत ही तुच्छ प्रतीत होगा। मन को बुराई के बीच अच्छाई ढूँढ़ निकालने की आदत डालकर ही हम अपनी प्रसन्नता को कायम रख सकते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य