टियर थैरेपी:deepak tiwari रोना थैरेपी से कम नहीं, यह दर्द और तनाव घटाती है; जापान के इस शख्स से समझिए आंसुओं का निकलना क्यों जरूरी?
जापान में हिदेफुमी योशिदा नाम का शख्स लोगों को रुलाकर उनका तनाव दूर कर रहा है। लोग इन्हें टियर टीचर कहते हैं। टियर टीचर यानी रोने की कला सिखाने वाला टीचर। योशिदा पिछले 8 साल से लोगों को रुलाकर उन्हें तरोताजा कर रहे हैं । वह अब तक 50 हजार लोगों को रुला चुके हैं। योशिदा की जुबानी जानिए रोना क्यों जरूरी है...
ऐसे लोगों को रुलाते हैं
योशिदा कहते हैं, लोगों को रुलाना आसान नहीं है। मैं कई तरह की फिल्में, बच्चों की किताबें, चिटि्ठयां और तस्वीरों से लोगों को रुलाकर उन्हें तरोताजा महसूस कराता हूं। मेरी क्लास में कुछ ऐसे लोग भी आते हैं जो एक प्राकृतिक दृश्य को देखकर रो पड़ते हैं। रोने की कला को जापानी भाषा में 'रूई कात्सु' कहते हैं।
आखिर लोगों को रुलाने की जरूरत क्यों पड़ी?
योशिदा के मुताबिक, जापानी लोग आसानी से रो सकते हैं, लेकिन इन्हें बचपन से सिखाया जाता है कि आंसुओं को कंट्रोल करना है। हम इसी सोच के साथ हम बड़े होते हैं। दर्द और तनाव को अपने अंदर भरते जाते हैं। इस तरह इंसान घुटने लगता है और बीमार पड़ जाता है।
अब रोने के तरीके और फायदे भी समझ लीजिए
योशिदा कहते हैं, सबसे बेहतर रुलाई वो होती है, जिसमें आपकी आंखें पूरी तरह भीग जाती हैं। आप मन से रोते हैं और आंसू अपने आप निकलकर बहने लगते हैं। जितना ज्यादा रोते हैं उतना तरोताजा महसूस करते हैं।
अगर आप मन से रोते हैं तो यह फिजिकली और मेंटली दोनों तरह से राहत पहुंचाता है। यह आपको शांत रखता है और मूड को बेहतर बनाता है। रोने के दौरान, मस्तिष्क की नर्व एक्टिविटी बढ़ती है जो हार्ट रेट को थोड़ा धीमा करके दिमाग को रिलैक्स करती है। जितना ज्यादा अंदर से रोते हैं उतना ही हल्का महसूस करते हैं।
जापान में कई शहरों में रोने की वर्कशॉप करने का ट्रेंड बढ़ रहा है
जापान के कई शहरों में रोने की कला सीखने का ट्रेंड बढ़ रहा है। योशिदा यहां वर्कशॉप और लेक्चर ऑर्गेनाइज करते हैं। जापान टाइम्स से हुई बातचीत में वह कहते हैं, अगर आप हफ्ते में एक दिन भी रोते हैं तो आप तनावमुक्त जीवन जी सकते हैं। तनाव दूर करने के लिए नींद और हंसने से भी ज्यादा असरदार है रोना।
यूं तो योशिदा इस फील्ड में 8 साल से हैं लेकिन इनके काम ने रफ्तार 2015 में उस समय पकड़ी जब जापान में कर्मचारियों का तनाव कम करने की पॉलिसी शुरू हुई। उस दौरान योशिदा ने कम्पनियों से अपनी वर्कशॉप और लेक्चर शुरू करने के लिए परमिशन मांगी। इस काम में उन्हें लम्बा संघर्ष करना पड़ा।
इनकी वर्कशॉप में शामिल एक महिला का कहना है कि मुझे नहीं लगता था कि मैं रो पाउंगी। लेकिन मेरी आंखें आंसुओं और इमोशंस से भर गई थीं। इसके बाद मैंने नहाया और खुद को काफी हल्का महसूस किया।