ऑनलाइन क्लासेस का आंखों पर असर:deepak tiwari लैपटॉप के मुकाबले मोबाइल से आंखों पर बुरा असर पड़ने का खतरा दोगुना, आंखों में खुजली और सिरदर्द से बचने के लिए ध्यान रखें एक्सपर्ट की ये बातें
कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच फिलहाल घर से ही पढ़ाई हो रही है। कई घंटों तक चलने वाली ऑनलाइन क्लासेस के दौरान बरती गईं छोटी-छोटी लापरवाही आंखों में खुजली, लालिमा, रुखापन और सिरदर्द को बढ़ा रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है, लम्बे समय तक ऐसी स्थिति रही तो मायोपिया हो सकता है। अगर आप भी ऑनलाइन स्टडी कर रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, ताकि आंखों की रोशनी पर असर न पड़े और सिरदर्द के कारण होने वाले चिड़चिड़ेपन को रोका जा सके। बच्चे छोटे हैं तो यह जरूरी है कि पेेरेंट्स उन पर नजर रखें ऐसे लक्षण दिखने पर डॉक्टर से सम्पर्क करें।
बंसल हॉस्पिटल की आई और ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट डॉ. विनीता रामनानी बता रही हैं, आंखों की इन समस्या से कैसे निपटें....
वो सवाल जो आपको अलर्ट रखेंगे
1. लैपटॉप के मुकाबले मोबाइल ज्यादा खतरनाक क्यों, इसकी क्या वजह हैं?
पहली वजह : हमेशा लैपटॉप के मुकाबले मोबाइल ज्यादा आंखों के करीब होता है, इसलिए असर भी ज्यादा होता है।
दूसरी वजह : मोबाइल की स्क्रीन छोटी होने के कारण आंखों पर जोर अधिक पड़ता है। इससे निकलने वाली नीली रोशनी आंखों के सबसे करीब होने के कारण ज्यादा बुरा असर छोड़ती है।
तीसरी वजह : ज्यादातर घरों में लैपटॉप एक या दो ही होते हैं वो ज्यादातर लोगों में बंट जाता है लेकिन मोबाइल हर इंसान के पास होता है। इसलिए इसका इस्तेमाल भी ज्यादा होता है।
लगातार गैजेट को इस्तेमाल के दौरान इंसान पलकें झपकाना भूल जाता है, यह आदत इसके बुरे असर को और बढ़ाने में मदद करती है। यही से आंखों में सूखेपन की शुरुआत होती है। ध्यान न देने पर धीरे-धीरे दूसरे लक्षण भी दिखने शुरू होते हैं। जितने ज्यादा घंटे इन्हें इस्तेमाल करेंगे आंखों पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा।
2. कौन से लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं?
अगर आंखों में खिंचाव, खुजली, थकावट, लालिमा, पानी आना, धुंधला दिखने जैसी समस्या हो रही है तो अलर्ट हो जाएं। ये डिजिटल आई स्ट्रेन के लक्षण हैं। लम्बे समय तक ऐसी स्थिति रहती है तो सिरदर्द, उल्टी और चिड़चिड़ेपन की शिकायत होने लगती है।
कुछ लोगों में चक्कर आने के साथ, आंखों से फोकस करने में कठिनाई, एक ही चीज के दो प्रतिबिम्ब दिखना जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं। कई बार यह समझ नहीं आता है क्योंकि जब दिन की शुरुआत होती है तो सब कुछ नॉर्मल लगता है, दिन में ऑनलाइन क्लासेज लेते हैं, दिमाग डायवर्ट रहता है। लेकिन शाम होते-होते इसका असर दिखने लगता है।
3. कैसे समझें कि आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है?
डिजिटल गैजेट्स से निकलने नीली रोशनी आंखों पर लगातार पड़ने से इनमें पहले रुखापन आता है फिर मांसपेशियों पर जोर पड़ता है। लम्बे समय तक ऐसा होने से आंखें कमजोर हो जाती हैं। इनकी दूर की नजर कमजोर होने का खतरा ज्यादा रहता है, इसे मायोपिया कहते हैं। लगातार ऐसा होने पर चश्मा लग सकता है और जो पहले से लगा रहे हैं उनका नम्बर बढ़ सकता है।
एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, अगर बच्चों में गैजेट का इस्तेमाल ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2050 तक 50 फीसदी बच्चों को चश्मा लग जाएगा।
4. अगर लगातार ऑनलाइन क्लासेस नहीं ले रहे तो कैसे ध्यान रखें?
अगर ऑनलाइन क्लासेस नहीं हैं और मोबाइल से स्टडी से कर रहे हैं तो आंखों को हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए तक 20 फीट तक देखें। इसके बाद वापस पढ़ाई शुरू कर सकते हैं। आंखों को दिन में 4-5 बार पानी से धोएं।
5. गैजेट्स से कितनी दूरी होनी चाहिए?
लैपटॉप की स्क्रीन और आंखों के बीच कम से कम 26 इंच की दूरी होनी चाहिए।
मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह दूरी 14 इंच होनी चाहिए। हालांकि यह हाथों की लम्बाई पर भी निर्भर करता है।
स्क्रीन की ब्राइटनेस और कंट्रास्ट को कम रखें, ताकि आंखों पर ज्यादा जोर न पड़े।
स्क्रीन पर एंटीग्लेयर शीशा हो तो बेहतर है या फिर खुद एंटीग्लेयर चश्मा लगाएं।
स्क्रीन पर दिखने वाले अक्षरों को सामान्य तौर पर पढ़े जाने वाले अक्षरों के साइज से 3 गुना ज्यादा रखें।
6. अब बात उनकी जो वीडियो गेम में बिजी रहते हैं?
ज्यादातर बच्चे पेरेंट्स के डर से रात में लाइट ऑफ करके मोबाइल या दूसरे गैजेट पर वीडियो गेम खेलते हैं। ये सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति है क्योंकि कमरे में अंधेरा होने के कारण गैजेट की नीली रोशनी का बुरा असर सीधे आंखों पर पड़ता है। नतीजा, रात में नींद न आने की समस्या, सुबह देर से उठने के कारण शरीर में भारीपन और सिरदर्द महसूस होने जैसे लक्षण बढ़ते जाते हैं।