मास्क-ग्लव्स-पीपीई किट्स जैसे कोविड वेस्ट से बनाएंगे ईंटें deepak tiwar

कोरोनावायरस की महामारी से आज पूरा विश्व जूझ रहा है, इस महामारी के साथ अब कई और परेशानियां भी सामने आ रही हैं। इसमें सबसे बड़ी परेशानी है कोविड मेडिकल वेस्ट। कोरोना के इस दौर में मास्क, पीपीई किट और ग्लव्स का इस्तेमाल करना हर शख्स की जरूरत बन चुकी है, ऐसे में इनका इस्तेमाल भी पहले की तुलना में काफी बढ़ा है। कोविड मेडिकल वेस्ट डिस्पोज होने के बाद यह सारा वेस्ट लैंडफिल साइट्स में पहुंचता है, जो उसके आस-पास रहने वालों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।
कोविड मेडिकल वेस्ट से आई इस पर्यावरणीय आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश की है गुजरात के सोशल एंटरप्रेन्योर बिनीश देसाई ने। कोविड मेडिकल वेस्ट के मैनेजमेंट पर काम कर रहे बिनीश को ‘रीसायकल मैन ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। वो इससे पहले भी वेस्ट से बिल्डिंग मटेरियल समेत करीब 150 प्रकार के प्रोडक्ट बना चुके हैं। बिनीश कहते हैं कि इस दुनिया में कुछ भी वेस्ट नहीं है, जो चीज आपके लिए वेस्ट है, वो किसी और के लिए एसेट हो सकती है।
मार्च के बाद से देश में रोजाना 101 मीट्रिक टन कोविड बायोमेडिकल वेस्ट निकल रहा है
बीड्रीम कंपनी के फाउंडर बिनीश देसाई इंडस्ट्रियल वेस्ट से सस्टेनेबल बिल्डिंग मटीरियल बनाने की टेक्नोलॉजी का ईजाद कर चुके हैं। बिनीश ने बताया कि उनका पहला इनोवेशन पेपर मिल से निकलने वाले कचरे को रीसाइकल करके पी-ब्लॉक ब्रिक्स ईंट बनाना था। अब बिनीश कोविड मेडिकल वेस्ट जैसे यूज्ड मास्क, ग्लव्स और पीपीई किट से भी पी-ब्लॉक 2.0 बनाने जा रहे हैं। बिनीश बताते हैं कि मार्च 2020 के बाद से ज्यादातर लोग सिंगल यूज मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक बार इस्तेमाल के बाद ये मास्क या खुले में या कूड़े के ढेर में फेंक दिए जाते हैं। लॉकडाउन में घर बैठा था तो मैंने सोचा क्यों न मैं इस वेस्ट से भी ईंटें बनाने का काम शुरू करूं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च के बाद से देश में हर दिन 101 मीट्रिक टन कोविड से जुड़ा बायोमेडिकल वेस्ट निकल रहा है। इसके अलावा, हमारे देश में एक दिन में 609 मीट्रिक टन बायोमेडिकल वेस्ट निकलता है।"
वेस्ट कलेक्शन और डिसइंफेक्शन की प्रक्रिया के दौरान टीम मेंबर पीपीई किट पहनकर काम करेंगे
कोविड वेस्ट कलेक्शन की प्रक्रिया के बारे में बिनीश बताते हैं, 'इसके लिए हम हॉस्पिटल, रेस्त्रां, सलून समेत पब्लिक प्लेस पर ईको बिन रखेंगे। जब यह बिन भर जाएंंगी तो सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन के मुताबिक इस बिन को 72 घंटे तक आइसोलेट किया जाएगा यानी इसे टच नहीं किया जाएगा। 72 घंटे के बाद इन बिन को हमारी टीम पूरी सावधानी और नियमों का पालन करते हुए हमारे सेंटर तक लाएगी।
यह टीम पीपीई किट पहनी होगी। यहां आने के बाद बिन को डिसइंफेक्ट किया ​जाएगा और फिर इसकी फर्स्ट वॉशिंग होगी। इसके बाद इसमें से पीपीई किट और मास्क को अलग करके दोबारा वॉश किया जाएगा। यह पूरा काम भी हमारे टीम मेंबर पीपीई किट पहनकर करेंगे। इस प्रक्रिया के बाद इस कोविड वेस्ट पूरी तरह डिसइंफेक्ट हो जाता है। फिर इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर कागज की स्लेज और बाइंडर के साथ निश्चित अनुपात में मिलाकर ब्रिक्स तैयार की जाएंगी।" बिनीश कहते हैं कि बाइंडर का फॉर्मूला हमारा ट्रेड सीक्रेट है, इसलिए हम उसके बारे में आपसे ज्यादा कुछ शेयर नहीं कर सकते हैं।
पी-ब्लॉक 2.0 बनाने में 52% PPE मटेरियल, 45% गीले कागज़ के स्लज और 3% गोंद का इस्तेमाल
बिनीश बताते हैं, 'इस ईंट को बनाने में 52 % PPE मटेरियल, 45% गीले कागज के स्लज और 3% गोंद का इस्तेमाल किया जाएगा। बायोमेडिकल वेस्ट से ईंट बनाने की प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे पेपर मिल के वेस्ट से ब्रिक्स बनाई जाती है।' बिनीश ने सबसे पहले अपनी होम लैब में काम किया और फिर अपनी फैक्ट्री में कुछ सैंपल ईंटें तैयार कींं। प्रयोग सफल रहने पर बिनीश ने इन ईंटों को वलसाड की ही एक सरकारी लैब से टेस्टिंग के लिए भेजा। बिनीश बताते हैं कि कोराना महामारी के चलते हम अपने सैंपल्स को नेशनल लैब नहीं भेज पाए। हमारे ब्रिक्स प्रोटोटाइप ने टेस्टिंग के दौरान सभी क्वालिटी टेस्ट को पास किया है।
बिनिश ने यूस किए गए पीपीई किट और मास्क से यह ईंट तैयार की है। यह ईंट ट्रेडिशनल ईंट की तुलना में हल्की भी होती है और एक ईंट की कीमत 2 रुपए 80 पैसे है।
रोजाना 4 हजार ब्रिक्स तैयार होंगी, अगले डेढ़ महीने तक की बुकिंग भी हो गई है
बिनीश बताते हैं कि इन ईंट का साइज 12 x 8 x 4 इंच है। एक स्क्वायर फुट ईंट बनाने के लिए 7 किलोग्राम बायोमेडिकल वेस्ट का इस्तेमाल हुआ है। ये ईंट वॉटर और फायर प्रूफ हैं, यह ईंट ट्रेडिशनल ईंट की तुलना में हल्की भी होती है। एक ईंट की कीमत 2 रुपए 80 पैसे है। इन ईंटों का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन में किया जाएगा। बिनीश कहते हैं कि वे सितंबर के दूसरे सप्ताह से ईंटे बनाना शुरू करेंगे। उनके प्लांट में रोजाना 4 हजार ब्रिक्स तैयार होंगी। अगले डेढ़ महीने तक इन ब्रिक्स की भी प्री बुकिंग हो चुकी है।
च्युइंगम से शुरू हुआ वेस्ट से बेस्ट बनाने का सफर
वेस्ट से बेस्ट बनाने के सफर के बारे में बिनिश ने बताया कि जब वे छठवीं क्लास में थे तो एक दिन क्लासरूम में उनकी पैंट पर च्युइंगम चिपक गई। क्लास में कागज के टुकड़े से च्युइंगम को जैसे-तैसे निकाला और इस कागज में ही लपेटकर जेब में यह सोच कर रख लिया कि बाद में इसको बाहर फेंक देंगे। स्कूल खत्म होने के बाद ​जब बिनिश का ध्यान इस कागज पर गया तो देखा कि कागज में रखी हुई च्युइंगम पत्थर जैसी हो चुकी है। यहां से बिनिश को आइडिया मिला कि क्यों ना इससे ईंटे बनाई जाए। बिनिश की बात किसी ने नहीं सुनी तो उन्होंने अकेले ही प्रयोग शुरू कर दिया।
बिनिश ने 16 साल की उम्र में अपनी कंपनी बनाकर ऑर्गेनिक बाइंडर के साथ इस तरह की ईंट बनाने का प्रयोग शुरू किया। बिनिश ने अब इस तरह की ईंटे बनाने के लिए पेपर मिल वेस्ट, जिप्सम वेस्ट, मेटल और टैक्सटाइल वेस्ट का इस्तेमाल किया। वे इस वेस्ट से विभिन्न तरह की डिजाइन की ईंटें और बिल्डिंग मटेरियल बनाते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उनकी बनाई हुई ईंटों से 1000 से अधिक टॉयलेट भी बनाए जा चुके हैं।