नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते केसों के बीच जब सरकार ने मार्च में लॉकडाउन का ऐलान किया था, तब सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना प्रवासी मजदूरों को करना पड़ा था। लाखों की संख्या में लोग रोजगार गंवाने की वजह पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े थे। शुरुआत में जहां सरकार ने संसद में प्रवासी मजदूरों से जुड़ा डेटा न होने की बात कही थी। वहीं, अब सरकार ने कहा है कि लॉकडाउन लगने के बाद मार्च से लेकर जून तक की अवधि में एक करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हुए। हालांकि, सरकार ने अब भी यह नहीं बताया है कि लॉकडाउन के दौरान पैदल चलने की वजह से ही कितने मजदूरों की जान चली गई।
सड़क परिवहन राज्यमंत्री वीके सिंह ने लोकसभा में लिखित जवाब में बताया कि कोरोनावायरस की वजह से बड़ी संख्या में प्रवासियों का पलायन अपने घरों की ओर हुआ। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने अब तक जो डेटा इकट्ठा किया है, उसके मुताबिक, करीब 1.06 करोड़ प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के दौरान पैदल ही अपने घरों को निकलने के लिए मजबूर हुए।
वीके सिंह ने संसद को बताया कि अब तक जो अस्थायी डेटा जुटाया गया है, उसके मुताबिक, मार्च‑जून 2020 की अवधि में सड़कों पर 81,385 हादसे हुए हैं। इनमें 29 हजार 415 लोगों की मौत हुई। हालांकि, उन्होंने साफ कर दिया कि मंत्रालय लॉकडाउन के दौरान सड़क हादसे में मारे गए प्रवासी मजदूरों का अलग से डेटा नहीं रखता। उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय लगातार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एडवायजरी जारी कर प्रवासी श्रमिकों को खाना, रहने की व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए कहता रहा था।
सड़क परिवहन राज्यमंत्री ने बताया कि सरकार ने हाईवे पर पैदल जा रहे प्रवासियों को लाने-ले जाने के इंतजाम किए। उनके खाने, पीने के पानी, दवाइयों और फुटवियर की व्यवस्था कराई गई। इतना ही नहीं, उन्हें रुकने के लिए जगह भी मुहैया कराई गई, इसके अलावा कई जगहों पर स्थानीय प्रशासन ने उन्हें घर पहुंचाने में सहायता की। गृह मंत्रालय के 29 अप्रैल 2020 और 1 मई 2020 के आदेश के बाद प्रवासी मजदूरों को उनके घर ले जाने के लिए बसों और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की भी व्यवस्था की गई।
दीपक तिवारी