deepak tiwari
September 1, 2020
आगरा। आगरा के एक रिक्शा चालक 45 वर्षीय शिवचरण और उसकी 36 वर्षीय दंपत्ति बबिता ने पिछले हफ्ते एक बच्चे को जन्म दिया था। वे उत्तरप्रदेश के आगरा में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में रहने वाले है।
दंपती की यह पांचवी संतान की डिलीवरी सर्जरी से होने पर अस्पताल वालों ने उसे सर्जरी के 30,000 रुपये और दवाओं के 5,000 रुपये का बिल थमाया था। उनके पास बिल भरने जितने रुपये नहीं थे। दंपती का आरोप है कि अस्पताल वालों ने उनसे बिल चुकाने के लिए अपने बच्चे को एक लाख रुपये में बेचने का प्रस्ताव रखा। रिक्शा चलाकर शिवचरण की औसतन रोज 100 रुपये आमदनी होती है। उनका जेष्ट पुत्र 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।
बबिता का कहना है कि एक आशा वर्कर उनके घर आई उसने कहा कि वह उसकी फ्री में डिलीवरी करवा देगी। जब वो अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। पर अस्पताल वालों ने उन लोगों को बिल थमाया। शिवचरण ने कहा, ‘मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं। हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया। हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर नहीं दिए गए। उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपये में खरीद लिया।’
डीएम प्रभूनाथ सिंह ने कहा, ‘यह मामला गंभीर है। इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।’ अस्पताल के बिलों का भुगतान नहीं करने के कारण अपने बच्चे को बेचना पड़ा।
वहीं अस्पताल ने कहा है कि बच्चे को दंपती ने छोड़ दिया था और उसे गोद लिया गया है, खरीदा या बेचा नहीं गया है। अस्पताल ने उन्हें बच्चे को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया। परन्तु अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है, उसका कोई मूल्य नहीं है।