January 17, 2020 दीपक तिवारी
भोपाल। वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता और विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी स्वभाव से निर्भीक, गहरी राजनीतिक समझ, प्रभावी वक्ता, संसदीय ज्ञान, वचन के पक्के और समाजवाद के पोषक थे। उनके कामकाज की शैली के चलते उनके चाहने वाले उन्हें 'WHITE TIGER" कहने लगे थे। संसदीय ज्ञान के मामले में विरोधी भी उनका लोहा मानते थे। यही वजह है कि उन्हें दस साल तक विधानसभा अध्यक्ष और ढाई साल तक विधानसभा उपाध्यक्ष के तौर पर सदन संचालन का दायित्व सौंपा गया था।
ऐसा लड़ाकू नेता नहीं देखा
प्रदेश की राजनीति में कई दशकों तक श्रीनिवास तिवारी के साथी रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मंत्री हजारी लाल रघुवंशी बताते हैं कि मेरे लिए वह आदरणीय रहे। उनके स्वभाव में अनेक खूबियां थीं। ऐसा लड़ाकू नेता कांग्रेस और मध्यप्रदेश को मिलना अब मुश्किल है। कई दशकों का साथ रहा। उनसे जुडे ढेरों संस्मरण हैं ।उनके जैसा दूसरा नहीं देखा। वह चले गए अब उनके बारे में और क्या कहें भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
सिद्धांतों से समझौता नहीं
विधानसभा के प्रमुख सचिव रहे भगवानदेव इसरानी कहते हैं कि 'मैं उनकी कार्यशैली का प्रशंसक रहा।" उन्होंने बताया कि विधानसभा उपाध्यक्ष और अध्यक्ष के रूप में उनकी कार्यशैली नजदीक से देखी, शासन पर उनके प्रभाव के चलते विधानसभा में उन्होंने अनेक पद स्वीकृत कराए। कर्मचारियों को लाभ मिला। स्पीकर के रूप में उनका कार्यकाल यादगार रहा। सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, इसी के चलते उन्होंने अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक दे दिया था। अपनी स्वभावगत निर्भीकता और दुस्साहसी होने के कारण लोग उन्हें 'सफेद शेर" भी कहने लगे थे।
1948 में बनाई थी समाजवादी पार्टी
श्रीनिवास तिवारी ने विद्यार्थी जीवन में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सन 1948 में विंध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी का गठन किया तथा सन 1952 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विंध्य प्रदेश विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। जमींदारी उन्मूलन के लिए अनेक आंदोलन संचालित किए तथा कई बार जेल यात्राएं की।
कामता प्रसाद जी ने सोना गिरवी रखकर चुनाव लड़वाया
बताते हैं कि समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आम चुनाव में जब श्रीनिवास तिवारी को मनगवां विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया तब उनके सामने भारी आर्थिक संकट था। यह समस्या थी कि चुनाव कैसे लड़ा जाए? ऐसे में गांव के कामता प्रसाद तिवारी नाम के एक व्यक्ति उनकी मदद के लिए आगे आए थे। उन्होंने अपने घर का सोना रीवा में 500 रुपये में गिरवी रखकर रकम श्रीनिवास तिवारी को चुनाव लड़ने के लिए सौंप दी। इसी धन राशि से चुनाव लड़ा गया और जीत हासिल की।
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में बुलाया था
सन 1972 में समाजवादी पार्टी से मध्यप्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। सन 1973 में इंदिरा गांधी के कहने पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। सन 1977, 1980 एवं 1990 में विधान सभा के सदस्य निर्वाचित। सन 1980 में अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मंत्री रहे।
अर्जुन सिंह सरकार से इस्तीफा दिया
1977 में विधायक चुने जाने के बावजूद विपक्षी पार्टी की सरकार बनने की वजह से उन्हें कोई बड़ा पद नहीं मिल सका। 1952 में विधायक चुने गए श्रीनिवास तिवारी पहली बार 1980 में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री पद से नवाजे गए। हालांकि, बाद में इस्तीफा देकर वह विधायक के रूप में ही सेवाएं करते रहे थे।
दिग्विजय सिंह ने दिया सम्मान
1985 में टिकट काटने की कवायद के बावजूद विंध्य का यह 'सफेद शेर' मुश्किलों के आगे झुका नहीं। 1990 में चुनाव जीतने के बाद वह विधानसभा उपाध्यक्ष बनाए गए। 1993 में दिग्विजय सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद 10 साल तक वह विधानसभा अध्यक्ष रहे थे। 2008 में विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन को कमजोर नहीं होने दिया था।
पहला फोन दिग्विजय का...
तिवारी के परिजनों के अनुसार निधन के पांच-सात मिनट के भीतर ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का फोन शोक संवेदना व्यक्त करने आ गया। वह इस समय नर्मदा की परिक्रमा पर हैं। उनके बेटे जयवर्धन भी शोक संवेदना जताने घर पहुंच गए।