वाराणसी.भगवान बुद्ध की तपोस्थली और काशी में पर्यटन की लाइफ लाइन कहा जाने वाला सारनाथ म्यूजियम सोमवार से पर्यटकों के लिए खुल गया। यह संग्रहालय कोरोनावायरस के चलते 17 मार्च से बंद था। सुबह 10 बजे से थर्मल स्क्रीनिंग के बाद पर्यटकों को एंट्री दी गई। हालांकि पहले दिन कम पर्यटक रहे, लेकिन आने वाले दिनों में यहां पर्यटकों की संख्या में उछाल की उम्मीद लोग लगा रहे हैं। कोरोना संकट से पहले तक यह संग्रहालय श्रीलंका, थाईलैंड, बैंकाक, मलेशिया, नेपाल, यूएस, जापान समेत कई देशों के पर्यटकों से गुलजार रहता था। यहां मिले अशोक स्तंभ से ही सिंहों को लेकर राज चिन्ह और अशोक चक्र से तिरंगे को सुशोभित किया गया है।
ऑनलाइन टिकट से इंट्री, थर्मल स्कैनिंग और मास्क होने पर ही प्रवेश
सारनाथ पुरातात्विक खंडहर परिसर को बीते सात सितंबर को खोल दिया गया था। तय किया गया था चरणबद्ध तरीके से स्मारकों को खोला जाएगा। इसी क्रम में संग्रहालय को आज से खोला गया, लेकिन अंदर प्रवेश के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है, साथ ही सुरक्षाकर्मी सभी का थर्मल स्कैनिंग करने के बाद ही अंदर जाने दे रहे हैं। दोपहर में 1 से 2 बजे के बीच परिसर को बंद करके सैनिटाइज किया जाएगा। अंदर किसी को कुछ भी छूने की इजाजत नही हैं।
पर्यटकों ने कहा ताजमहल की तरह ये भी ऐतिहासिक है
चंदौली के रहने वाले मनोज सिंह दिल्ली में जॉब करते हैं। लेकिन कोरोना संकट काल में जॉब छूट गई। अब वे अपने गांव पर ही रहते हैं। मनोज कहते हैं कि नौकरी जाने के कारण तनाव में था। तनाव को दूर करने के लिए सारनाथ घूमने आया है। सारनाथ पूर्वांचल का सबसे बड़ा टूरिस्ट प्लेस हैं, जो ताजमहल की तरह ही ऐतिहासिक है। बिहार से आए धनंजय सिंह ने बताया कि सम्राट अशोक से जुड़े तमाम स्तंभ और पुरातात्विक चीजों को देखने का मौका 6 महीने बाद मिला है।
18वीं शताब्दी में अशोक स्तंभ सिंह शीर्ष मिला था
इतिहासकार एसके सिंह ने बताया कि 18वीं सदी में अलेक्जेंडर कनिंघम के समय खुदाई हुई थी। जिसमें अशोक स्तंभ सिंह शीर्ष मिला था। जो मूल रूप से 15.25 मीटर का था। वास्तविक स्थान पर 2.3 मीटर ही है, बाकी का पार्ट संग्रहालय में रखा है। इसी के ऊपरी सतह पर चारों दिशाओं में चार सिंह हैं, जो 1947 में राजचिन्ह के रूप में अपनाया गया था। इसी स्तंभ पर बने 24 तीलियों का चक्र बना है, जिसे तिरंगे में सुशोभित किया गया है। संग्रहालय में भगवान बुद्ध की ज्ञान मुद्रा की मूर्ति के साथ ही पहली शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी से जुड़ी तमाम चीजें देखने लायक हैं।