कार सर्विस को लेकर हमेशा लोगों में मन में संशय रहता है कि सर्विस सेंटर पर कराई जाए या लोकल मैकेनिक से कराई जाए। फ्री सर्विस खत्म होने के बाद कुछ लोग लोकल मैकेनिक के पास पहुंच जाते हैं तो कुछ सर्विस सेंटर को ही प्राथमिकता देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सर्विसिंग के नाम पर किस तरह से आपकी जेब खाली की जाती है। नाम ना छापने की शर्त पर एक्सपर्ट ने कुछ अहम बातें बताईं...
पहला: ऑयल काला हो गया है चेंज करना पड़ेगा
आमतौर पर यह कहकर ऑयल चेंज करवा लिया जाता है कि ऑयल काला हो गया है लेकिन यह बिल्कुल गलत है। एक्सपर्ट ने बताया कि कितना भी अच्छा ऑयल हो इंजन में जाने के बाद काला हो ही जाता है। खासतौर से डीजल गाड़ियों की बात करें तो नया ऑयल भी जल्दी काला हो जाता है। ऐसे में आपको अनुभव है तो घर पर ही आप ऑयल डिप से ऑयल कि विस्कॉसिटी, क्वालिटी, टैक्सचर देख कर उसकी क्वालिटी का अंदाजा लगा सकते हैं।
अगर अनुभव नहीं हो तो सबसे सरल तरीका यह है कि सर्विस रिकॉर्ड के हिसाब से ऑयल चेंज करवाएं। एक साल कम्पलीट होने पर या 10 हजार किमी. या उससे ज्यादा चला लेने पर सर्विस जरूर कराएं, जिसमें ऑयल चेंज हो। क्योंकि सेमी सिंथेटिक ऑयल की नॉर्मल लाइफ 10 हजार किमी. होती है, मिनरल ऑयल की लाइफ इससे भी कम होती है। फुल सिंथेटिक ऑयल की लाइफ 15 हजार किमी. तक होती है लेकिन उसमें भी यह सलाह दी जाती है कि 10 हजार किमी. तक एक बार टॉप-अप के लिए चेक करा लें क्योंकि हीट होने पर ऑयल थोड़ा वाष्प बनकर उड़ जाता है। लोकल मैकेनिक हो या अथॉराइज्ड सर्विस सेंटर ऑयल सामने चेंज करवाएं तो बेहतर होगा।
दूसरा: फुल सिंथेटिक ऑयल डलवा लो, गाड़ी की लाइफ बढ़ जाएगी
यह सही है कि फुल सिंथेटिक ऑयल से इंजन की लाइफ बढ़ती है लेकिन इसे डलवाना चाहिए या नहीं ये गाड़ी की रनिंग पर निर्भर करता है। लेकिन मैकेनिक पैसे कमाने के चक्कर में महंगा ऑयल डलवाने के लिए कह देते हैं। सिंथेटिक ऑयल की कीमत नॉर्मल ऑयल से तीन गुना अधिक तक होती है। सबको यह ऑयल डलवाने की जरूरत नहीं है। हां, अगर आपकी रनिंग ज्यादा है या आपकी गाड़ी ट्रैवल्स में लगी है तो आपको फुल सिंथेटिक ऑयल डलवा सकते हैं।
एक्सपर्ट ने बताया कि सेमी सिंथेटिक और फुल सिंथेटिक ऑयल का सीधा असर गाड़ी के इंजन स्मूदनेस, रनिंग और वियर-एंड-टियर पर पड़ता है। जिनकी हाई रनिंग होती है उन लोगों को अपनी गाड़ी में फुल सिंथेटिक ऑयल ही डलवाना चाहिए खासतौर से डीजल इंजन में, इससे वियर-एंड-टियर कम होता है।
फुल सिंथेटिक में इंजन का परफॉर्मेंस अच्छा मिलेगा। ठंड के मौसम में भी सिंथेटिक ऑयल इंजन में जल्दी फैल जाता है, जमता नहीं है, तो अगर आप किसी बर्फीले इलाके में या ऐसी जगह रह रहे हैं जहां तापमान बेहद काम या माइनस में चला जाता है तो आप सिंथेटिक ऑयल ही यूज करें। नॉर्मल रनिंग है तो कम से कम सेमी सिंथेटिक ऑयल डलवाएं।
तीसरा: व्हील अलाइनमेंट-बैलेंसिंग करना पड़ेगा
बिल बढ़ाने के लिए आपसे फिजूल में व्हील बैलेंसिंग और अलाइनमेंट कराने के लिए कहा जा सकता है। लेकिन आप टायरों की कंडीशन से इसका पता लगा सकते हैं कि क्या वाकई में इसकी जरूरत है। अगर आगे के टायर अनियमित तरह से घिस रहे हैं, जैसे की अंदर की तरफ ग्रिप है लेकिन बाहर से घिस रहे हों या बाहर ग्रिप अच्छी है लेकिन अंदर की तरफ से घिस रहे हों तो व्हील अलाइनमेंट की बिल्कुल जरूरत है।
यदि हाई स्पीड (लगभग 80 किमी. प्रतिघंटा) पर यदि स्टीयरिंग व्हील में जर्क आ रहा है या वाइब्रेशन आ रहा है, तो बैलेंसिंग की जरूरत है। अगर इनमें से कोई परेशानी नहीं दिख रही है, तो बेवजह पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है। बाकी प्रॉपर शेड्यूलिंग की बात करें तो हर 5 हजार किमी. पर बैलेंसिंग और अलाइनमेंट कर लेना चाहिए और 10 हजार किमी.पर व्हील रोटेशन करना चाहिए।
चौथा: कूलिंग नहीं हो रही, एसी फिल्टर चेंज होगा
ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता कि एसी फिल्टर कब चेंज कराना चाहिए और इसी बात का फायदा मैकेनिक उठाते हैं और फिजूल में एसी फिल्टर चेंज करवा लेते हैं। एक्सपर्ट ने बताया कि एसी फिल्टर हर 20 हजार किमी. पर बदला जाता है।
बेहतर होगा कि गर्मी का मौसम शुरू होने से पहले एक बार एसी चेक करा लें क्योंकि गर्मियों में ज्यादातर लोगों को शिकायत रहती है कि एसी कूलिंग नहीं कर रहा लेकिन होता यह है कि फ्रेश एयर एसी फिल्टर में जाम होने की वजह से अच्छी तरह से फ्लो नहीं होती। इसलिए गर्मी आने से पहले एक बार फिल्टर जरूर चेक करा लें।
पांचवां: बैटरी चेंज करनी पड़ेगी, खराब हो गई है
बैटरी खराब हो रही है, ज्यादा दिन नहीं चलेगी, नई लगवा लो। यह कहकर भी कई मैकेनिक जबरन का बिल बढ़ा देते हैं। एक्सपर्ट ने बताया कि अगर बैटरी लेवल मेनटेन रहेगा और गाड़ी प्रोपर चलती रहेगी तो बैटरी में कोई समस्या नहीं आएगी और लंबे समय तक सर्विस दे जाएगी। इसलिए साल में दो बार बैटरी वॉटर टॉप-अप करा लें।
अगर बैटरी डिसचार्ज भी हो रही है तो एक-दो बार चार्ज करवा लें, जिसका खर्च बहुत मामूली होता है, अल्टीनेटर चेक करा लें, क्योंकि हो सकता है कि अल्टीनेटर खराब होने की वजह से भी बैटरी ड्रेन हो रही हो। अगर इन सब के बाद भी समस्या बनी हुई है, तो नई बैटरी लगवाने का डिसीजन लिया जा सकता है।
छठवां: एयर-ऑयल फिल्टर खराब हो गए हैं, नया लगाना पड़ेगा
फिल्टर खराब हो गए हैं, चेंज करना पड़ेगा और उस समय ग्राहक के पास हां कहने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं होता। लोकल मैकेनिक फिल्टर में काफी बड़ी धांधली करते हैं, लोकल फिल्टर को ओरिजनल बता कर लगा देते हैं और अनुभव न होने के कारण हम उसकी पहचान भी नहीं कर पाते। इसलिए अगर फिल्टर्स चेंज भी करवाना पड़े तो अथॉराइज्ड सेंटर पर भरोसा किया जा सकता है।
सातवां: एसी गैस लीक हो गई है, दोबारा फिल करना पड़ेगी
यह कारण बता कर भी अच्छे खासे पैसे वसूले जा सकते हैं। कई बार एसी कूलिंग कम करता है और मैकेनिक हमें कारण बताता है कि एसी गैस खत्म हो गई है। आम आदमी को इसकी ज्यादा नॉलेज नहीं होती और यह मैकेनिक को अच्छी तरह पता होता है। एक्सपर्ट ने बताया कि अक्सर यह कारण बता कर लंबा बिल थमा दिया जाते है। हर कंपनी अलग अलग तरह की एसी गैस यूज करती है, इसी के जरिए एसी कूलिंग करता है। यह लाइफ टाइम के लिए होती है। बिना लीकेज गैस खत्म नहीं हो सकती है।
हालांकि आम आदमी के पास एसी गैस खत्म हुई है या नहीं इसे चेक करने का कोई तरीका नहीं होता। गाड़ी के साइज के अनुसार 250 ग्राम से 600 ग्राम तक एसी गैस डलती है, अगर वो कम होगी तो एसी अंदर परफॉर्म करेगा। अगर मैकेनिक मशीन से गैस निकाल कर बताएं कि इतनी गैस निकली है तब तो ठीक है वरना इसमें भी घपला किया जा सकता है।