छत्तीसगढ़ में एक रामनामी संप्रदाय है। इसे मानने वालों का राम में अटूट विश्वास है। ये मंदिर में पूजा नहीं करते। पीले वस्त्र धारण नहीं करते। सिर पर टीका भी नहीं लगाते और मूर्ति पूजा में भी बहुत यकीन नहीं करते। बल्कि, ये लोग अपने पूरे शरीर पर राम का नाम लिखवा लेते हैं। इनके घरों में, दीवारों पर, दरवाजे-खिड़कियों पर हर कहीं राम नाम लिखा दिख जाएगा।
कुरीति का सामना करने के लिए यह परंपरा सालों पहले शुरू हुई थी, जो बाद में कण-कण में राम देखने लगी। इस रीति को निभाते हुए कई पीढ़ियां बीत गईं। हालांकि, राम नाम लिखवाने के बाद स्कूलों में एडमिशन नहीं मिलता। नौकरी नहीं मिलती। ऐसे में नई पीढ़ी के ज्यादातर लोग अब इस परंपरा को नहीं अपना रही हैं।
रामनामी संप्रदाय के लोग इस तरह पूरे शरीर पर राम नाम लिखवा लेते हैं।
रामनामी संप्रदाय के मेहतर लाल टंडन 76 साल के हैं। उन्होंने बताया, ‘‘मैंने आज से 54 साल पहले अयोध्या में ही अपने शरीर पर राम नाम लिखवाया था। तब मेरी उम्र 22 साल थी। हम रामनवमी पर अयोध्या गए थे। वहां एक पुजारी ने ही मेरे चेहरे पर राम नाम लिख दिया था। गांव आया तो पूरे शरीर पर राम नाम लिखवा लिया। जो मरते दम तक मेरे साथ रहेगा।'
रामनामी जो कपड़े पहनते हैं, उन पर भी राम का नाम लिखा होता है।
मुश्किलें आईं तो अब नई पीढ़ी छोड़ रही परंपरा
आखिर ऐसा करने से होता क्या है? इस सवाल पर मेहतर लाल कहते हैं- इसकी तो कई कहानियां हैं। एक कहानी यह भी है कि नदी में नाव फंस गई थी। राम नाम का गान हुआ तो जान बच गई और राम नाम लिखवाना शुरू हो गया।
एक कहानी यह भी है कि ब्राह्मण हमें मंदिर में नहीं जाने देते थे। ऐसे में लोगों ने राम नाम लिखवाना शुरू कर दिया। और कण-कण में राम को देखने लगे। हम अपने शरीर को ही मंदिर मानते हैं। कहते भी राम हैं, लिखते भी राम हैं, सोचते भी राम हैं।
रामनामी संप्रदाय के हर घर में रामायण जरूर होती है। बचपन से ही बच्चों को रामायण पढ़ाई जाती है।
रामनामी संप्रदाय में अब 400 से 500 लोग ही हैं। ऐसा माना जाता है कि चारपारा गांव में एक दलित युवक परसराम ने 1890 के आसपास रामनामी संप्रदाय की स्थापना की थी। संप्रदाय के अध्यक्ष रामप्यारे कहते हैं, हफ्तेभर पहले भाजपा के एक पूर्व विधायक ने हमें अयोध्या जाने के बारे में पूछा था। हमारी फोटो भी मांगी थीं, जिनमें राम का नाम लिखा हुआ दिखता है, लेकिन उसके बाद कुछ बताया नहीं।
मेहतर लाल कहते हैं कि हमें कोई गिला-शिकवा नहीं। क्योंकि हम मंदिर, मूर्ति पूजन के बजाए दिनभर मन से राम की धुन लगाते रहते हैं। कहते हैं, वैसे भी अब भव्य मंदिर बन जाएगा तो पंडे-पुजारी पैसे वालों को ही विशेष पूजन का मौका देंगे। पहले तो रामलला बाहर बैठे थे। दर्शन आसानी से हो जाते थे।
रामनामी संप्रदाय के लोग इस तरह सिर पर मोर के पंख लगाते हैं और रामधुन गाते हैं।
रामनामी घुंघरू बजाते हैं और भजन गाते हैं। कई लोग मोरपंखों से बना मुकुट पहनते हैं। हर साल बड़े भजन कार्यक्रम करते हैं। इसमें जैतखांब (खंभे) बनाए जाते हैं, जिन पर राम नाम लिखा होता है और इन्हीं के बीच में बैठकर ये लोग राम के भजन करते हैं।
भजन करते समय ये लोग विशेष लय में घुंघरू बजाते हुए झूमते हैं। भगवान राम की भक्ति, भजन और गुणगान ही इन लोगों की जिंदगी का मकसद है। टंडन कहते हैं- बहुत से लोग कहते हैं हमने राम नाम गुदवा लिया। ऐसा कहकर वे हमारी आस्था का मजाक उड़ाते हैं, क्योंकि हमने राम नाम गुदवाया नहीं बल्कि लिखवाया है। हम इसके साथ जी रहे हैं। इसी के साथ मरेंगे।