जानिए माँ वैष्णो देवी के दरबार की कहानी-के सी शर्मा की कलम से


आपने जम्मू के माता वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। आज हम इन्हीं की कहानी सुना रहा हूँ। जो वर्षों से जम्मू और कश्मीर में सुनी और सुनाई जाती है। कटरा के करीब हंसाली ग्राम में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहाँकोई संतान नहीं थी।
वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पुजन के लिए कुवाँरी कन्याओं को बुलवाया। माँ वैष्णो कन्या वेष में उन्हीं के बीच आ बैठी। अन्य कन्याएँ तो चली गयी किंतु माँ वैष्णो नहीं गई। 
वह श्रीधर से बोलीः "सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ"। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली। और आस पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। लौटते समय (गोरखनाथ और भैरवनाथ जी) को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थें कि आखिर  कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है ?
श्रीधर की कुटिया में बहुत से लोग बैठ गएं। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुंची तो वह बोलेः "मुझे तो मांम व मदिरा चाहिए"। "ब्राह्मण" के भंडारे में यह सब नहीं मिलता"। कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किन्तु माता उसकी चाल भांप गई थी। 
वह पवन का रुप धर त्रिकुट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरव ने उनका पिछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगुर भी था। एक गुफा में (माँ शक्ति)
ने नौ माह तक तप किया। (भैरव) भी उनकी खोज में वहाँ आ पहुंचा। एक साधु ने उससे कहाः " जिसे तु साधारण नारी समझ रहा है वह तो महाशक्ति हैं। 
भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दुसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गई। वह गुफा आज भी "गर्भ जून" के नाम से जानी जाती है। देवी ने "भैरव" को लौटने की चेतावनी भी दी वह नहीं माना। माँ गुफा के भीतर चली गई। दरवाजे पर वीर लंगुर था। उसने भैरव से युद्ध किया जब वीर लंगूर निढ़ाल होने लगा तो माँ वैष्णो ने चण्डी का रुप धारण किया। और भैरव का वध कर दिया।
भैरव का सिर भैरव घाटी में जा गिरा। तब माँ ने उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। आज भी प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। गुफा में माता पिंडी रुप में विराजमान हैं।

जय माँ वैष्णो देवी तेरी सदा ही जय!