भगवान शिव के पसीने से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव का पसीना धरती पर गिरा तो उससे ही वास्तु पुरुष उत्पन्न होकर जमीन पर गिरा। वास्तु पुरुष को प्रसन्न करने के लिए वास्तु शास्त्र की रचना की गई। वास्तु पुरुष का असर सभी दिशाओं में रहता है। इसके बाद वास्तु पुरुष के कहने पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियम बनाए। जिनके अनुसार कोई भी मकान या इमारत बनाई जाती है। इसके बाद भूमि पूजन से गृह प्रवेश तक हर मौके पर वास्तु पुरुष की पूजा का महत्व है। जिसके साथ ही भगवान शिव, गणेश और ब्रह्मा जी की पूजा जरूर करनी चाहिए। इससे भूमि शुद्ध हो जाती है और वहां जगह पर रहने वाले लोग किसी भी तरह परेशान नहीं होते।
भूमि पूजन से गृह प्रवेश तक, वास्तु पूजा जरूरी
पुराणों के अनुसार किसी भी तरह के निर्माण कार्य के मौके पर वास्तु पुरुष की पूजा की जाती है। ऐसा करने से शुभ फल मिलता है। इसलिए सबसे पहले भूमि पूजन के समय वास्तु देवता की पूजा की जाती है। इसके बाद नींव खोदते समय, मुख्य द्वार लगाते समय और गृह प्रवेश के दौरान भी वास्तु पुरुष की पूजा करने का विधान बताया गया है। इससे उस घर में रहने वाले लोग हर तरह की परेशानियों से दूर रहते हैं। उनको हर तरह का सुख और समृद्धि भी मिलती है।
वास्तु पुरुष हैं भवन के मुख्य देवता
वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख स्थित है। अधोमुख यानी उनका मुंह जमीन की तरफ और पीठ उपर की ओर हैं। सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। इस तरह उनकी भुजाएं पूर्व और उत्तर में हैं।
ब्रह्माजी ने बनाए वास्तु शास्त्र के नियम
कई पुराणों में वास्तु शास्त्र के नियम बताए गए हैं लेकिन इनके बारे में खासतौर से मत्स्य पुराण में बताया गया है। इसके अनुसार वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ही ब्रह्माजी ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी जानकारी पुराणों के जरिये अन्य ग्रंथों से होते हुए आम लोगों तक पहुंची।