सीटू कार्यकर्ता/सदस्यों की बरौला सैक्टर-49,में हुई बैठक को सम्बोधन करते हुए सीटू जिला अध्यक्ष गंगेश्वर दत्त शर्मा ने कहा कि यूँ तो नोएडा व ग्रेटर नोएडा जैसे शहर में फैक्ट्रियों और कारखानों में मजदूरी करने वाले हम लोगों के लिए जिन्दगी पहले भी आसान नहीं थी, पर पिछले 100 दिन तो मानो हम सब को नरक में धकेल दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी जी कहते हैं कि वो भी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे, यानि कि वो भी हमारे-आपके बीच से ही निकलकर इतने ऊपर पहुंचे। इसलिए तो मजदूर भाईयों-बहनों ने एक नहीं दो-दो बार उनमें इतना विश्वास जताकर उन्हें जिताया, पर मार्च की 24 तारीख को जब उन्होंने बिना किसी तैयारी के लॉक डाउन की घोषणा कर दी, हम मजदूरों के लिए घोषणाएं तो बहुत हुई पर लागू एक भी नहीं तब उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि हम मजदूरों का क्या होगा !
सुई से लेकर हवाई जहाज और टूथब्रश से लेकर कपड़े बनाने वाले, शहरों को साफ-सुथरा रखने वाले और चलाने वाले हम मजदूरों को एक झटके में दो वक्त की रोटी के लिए लाचार बना दिया। बिना किसी सहारे के हमारे लाखों भाई पैदल, साईकल या जो भी साधन मिला उसी के सहारे सैकड़ों किलोमीटर अपने गाँव- अपने देश की ओर चल पड़े कईयों ने तो बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया। चाहे मोदी जी हों या फिर योगी जी या फिर अन्य सरकारें, टीवी और अखबार में चाहे जितने विज्ञापन छापे जाएं, यह तो हमारा मन ही जानता है कि बीते 3 महीने कैसे बीते हैं और हम किस तरह से जिन्दा रह पाए हैं।
कोरोना की आड़ में केंद्र की मोदी सरकार के इशारे पर अलग-अलग राज्यों में काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए गए हैं। इसका मतलब है कि ओवर टाइम के डबल रेट को लूटने की तैयारी! कई राज्यों में तो श्रम कानून ही खत्म कर दिए जार हे हैं, जिससे मालिकों के मुनाफा और बढ़ सके। इनमें भाजपा की राज्य सरकारें सबसे आगे हैं।
29 मार्च को केंद्र की गृहमंत्रालय ने एकअध्यादेश जारी किया कि मालिकों को लॉकडाउन की अवधि में सभी फैक्ट्रियों, दुकानों तथा अन्य संस्थानों के मजदूरों को वेतन देना होगा। साथ ही यह भी कहा गया कि किसी भी मजदूर को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा । पर, अधिकांश मजदूरों को आज तक लॉकडाउन का वेतन नहीं मिला है। औद्योगिक इलाकों में बड़ी संख्या में छंटनी हो रही है और मालिक मजदूरों से कहर हे हैं कि काम होने पर ही उन्हें बुलाया जाएगा।
कई मालिकान तो 29 मार्च के दिशानिर्देश के खिलाफ कोर्ट में चले गए । केंद्र सरकार ने 29 मार्च का नोटिफिकेशन 18 मई को वापस ले लिया था और इस तरह केवल इन 56दिनों के वेतन की अदायगी की ही बात हो रही है। इन सभी मामलों को एक साथ लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 जून को अंतरिम फैसले में केंद्र व राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
सबसे अहम बात तो यह है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को माना है कि मजदूरों के बिना कोई भी उद्योग नहीं चल सकता है और लॉकडाउन से उपजे सकंट में मजदूरों को राहत पहुंचाना आवश्यक है।
मालिक आज कोर्ट के फैसले का गलत प्रचार कर रहे हैं, पर फैसला साफ कहता है कि लॉकडाउन के दौरान वेतन की अदायगी के लिए मजदूरों और मालिकों के बीच बातचीतकर के विवाद का हल किया जाए । जहाँ बातचीत के बाद भी यह संभव नहीं है वहाँ श्रम विभाग के पास विवाद के निपटारे का आवेदन लगाना चाहिए। एक बार समझौता हो जाने के बाद दोनों पक्षों को इस समझौते को आगे लेकर जाना होगा ।माननीय सर्वोच्च सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि विवाद लगाने वाले किसी भी मजदूर को मालिक विद्वेषया दुर्भावना के साथ काम करने से रोक नहीं सकता, अगर वह काम करने को इच्छुक है।
वही मालिकान जिन्हें सालों साल हमने खून-पसीना बहाकर करोड़ों रुपए मुनाफे कमा कर दिएहैं, आज ऐसे छाती पीटर हे हैं जैसे वो एकदम लूट-पिट गए हैं। मजदूर हवा-पानी से जिन्दा नहीं रहता है, उसे और उसके परिवार को भी दाल-रोटी, ढूध दृ दवा के लिए पैसे चाहिए। मालिकों के एक एसोसियशन ने तो कोर्ट के भीतर लॉकडाउन के दौरान डीएस हित 50 फीसदी वेतन देने की बात भी कही है।
ऐसे में साथियों हमें 12 जून के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना है। जहाँ कहीं भी लॉकडाउनका वेतन नहीं दिया गया है, या फिर छंटनी की जा रही है, आप हमारी यूनियन सेसम्पर्क करें। हमारी यूनियन आपकी लड़ाई लड़ेगी और हममजदूरों की एकता के बूते न्याय दिलवाने का काम करेगी।
साथियों अभी दुःखों के काले-घने बादल छंटेन हीं हैं। बीते 100 दिनों ने हमें एक बार फिर यह बता दिया कि इस नोएडा/ग्रेटर नोएडा शहर में मजदूरों का अगर कोई है तो वह केवल उनका सीटू संगठन, उनकी एकता। हमें अगर जिन्दा रहना है, अगर अपने घर-परिवार, बच्चों को जिन्दा रखना है तो केवल एक ही रास्ता है और वह है अपनी एकता बनाने का, अपनी यूनियन को मजबूत करने का। आपके आसपास कई मजदूर भाई आपको कहते हुए मिलेंगे कि लड़कर कुछ नहीं होगा । वो कहेंगे कि मालिक से जीतना संभव नहीं। आप खुद भी समझ जाओ और ऐसे साथियों को भी समझा दो, हम हैं और हमारी मेहनत है तभी मालिक हैं और उनकी फैक्ट्रियां हैं, उनकी संपत्ति है। हमारे बिना कुछ भी नहीं है। साथियों, अपनी एकता की ताकत पहचानो। कोरोना के नाम पर हम मालिकानों और सरकारों को अपना खून चूसने का लाइसेंस देने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि अपना हक पाने के लिए अपने औद्योगिक इलाके में हमारी यूनियन के साथी से सम्पर्क कर सीटू से सम्बद्व यूनियन की सदस्यता लेकर संधर्षो में शामिल हो। हिम्मत रखो साथियों! हम मिलकर लड़ेंगे, तो जरूर जीतेंगे!
बैठक में मजूदरों के मुद्दों पर जन जागरूकता अभियान चलाने का अभियान का निर्णय लिया