सच्चे सुख का मिलन-के सी शर्मा की कलम से


किसी गांव में एक महिला बहुत धार्मिक स्वभाव वाली थी। वह साधु-संन्यासियों का सम्मान करती थी। हमेशा पूजा-पाठ करने के बाद भी उसका मन अशांत ही रहता था। एक दिन उसके गांव में प्रसिद्ध संन्यासी आए। संत घर-घर जाकर भिक्षा मांगते थे।

गांव में भ्रमण करते हुए संत उस महिला के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। महिला ने संत को खाना देते हुए कहा कि महाराज जीवन में शांति कैसे मिल सकती है, सच्चा सुख कैसे मिल सकता है? कृपया मेरे प्रश्न का उत्तर दें। संत ने कहा कि इसका जवाब मैं कल दूंगा।

अगले दिन संत महिला के घर फिर आने वाले थे। इस वजह से महिला ने संत के लिए खीर बनाई। संत महिला के घर पहुंचे। उन्होंने भिक्षा के लिए महिला को आवाज लगाई। महिला खीर लेकर बाहर आई। संत ने खीर लेने के लिए अपना कमंडल आगे बढ़ा दिया। महिला ने देखा कि कमंडल के अंदर गंदगी है। वह बोली महाराज आपका कमंडल तो गंदा है।

संत बोले कि कोई बात नहीं, आप इसी में खीर डाल दो। महिला ने कहा कि नहीं महाराज, ऐसे तो खीर खराब हो जाएगी। आप कमंडल दें, मैं इसे धोकर साफ कर देती हूं। संत ने पूछा कि मतलब जब कमंडल साफ होगा, तभी आप इसमें खीर देंगी? महिला ने कहा कि जी महाराज इसे साफ करने के बाद ही मैं इसमें खीर दूंगी।

संत ने कहा कि ठीक इसी तरह जब तक हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह, बुरे विचारों की गंदगी है, तब तक उसमें ज्ञान कैसे डाल सकते हैं? अगर ऐसे मन में ऐसी गंदगी पड़ी रहेगी तो उसमें उपदेश अपना असर नहीं दिखा पाएंगे। इसीलिए उपदेश सुनने से पहले हमें हमारे मन की इन बुराइयों को दूर करना होगा। इन बुरी बातों की वजह से ही मन शांत नहीं होता है।

जब ये बुराइयां दूर होंगी तो उपदेश का असर जल्दी होगा। इन बुराइयों को छोड़ने के बाद ही शांति मिल सकती है। तभी हम ज्ञान की बातें ग्रहण कर सकते हैं। पवित्र मन वाले ही सच्चा सुख और आनंद प्राप्त कर सकते हैं।