किसानों के लिए किसी प्राण वायु से कम नहीं है, मोरेल बांध


सवाई माधोपुर@ स्पेशल रिपोर्ट/स्टोरी चंद्रशेखर शर्मा । मोरेल बांध सवाई माधोपुर का एक मुख्य बांध होने के साथ एशिया का सबसे बढ़ा कच्चा मिट्टी का बांध है गौरतलब है कि मिट्टी का सबसे बड़ा बांध पांचना बांध (करौली) है जो एशिया में सबसे बड़ा है ।। मोरेल बांध सवाई माधोपुर व दौसा जिले की जीवनरेखा के रूप में माना जाता है। 
*यहां से होती है बांध में पानी की आवक*
 मोरेल बांध में पानी की आवक ढूंढ नदी व मोरेल नदी से होती है यह जयपुर के चैनपुरा (बस्सी) गांव की पहाडियों से निकलकर जयपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर में बहती हुई करौली के हडोती गांव में बनास में मिल जाती है।ढूँढ इसकी मुख्य नदी है। जो जयपुर से निकलती है। मोरेल नदी पर दौसा व सवाईमाधोपुर की सीमा पर के पिलुखेडा गांव में इस पर मोरेल बांध बना है।
 **मोरेल बांध कब कितना भरा ऐसे समझे* 
मोरेल बांध की भराव क्षमता लगभग 31 फिट है जो 1998 में पूर्णरूपेण भरा था उसके 21 साल  बाद 2019 में पुनः यह बांध *झलका* है।।
मोरेल बांध सन *2019*  में 30 फिट 6 इंच, *2018* में 14 फिट 2 इंच, *2017* में  000,
*2016* में 26 फिट 8 इंच, *2015* में 12 फिट 8 इंच पानी की आवक हुई थी ।
*मोरेल बांध का कार्यलय व उसके अध्यक्ष

मोरेल बांध का कार्यालय *मलारना चौड़* मुख्य बस स्टैंड पर भी है गांव का एकमात्र यह सरकारी कार्यलय है जो मलारना चौड़ तहसील व विधानसभा हुआ करता था उसके आसपास से यह यही संचालित हो रहा है । गांव वाले इसे स्थानीय भाषा मे *चौकी* कहते है एक अन्य चौकी वर्तमान में *धूल फांक* रही है !
 मोरेल बांध परियोजना के अध्यक्ष भी मलारना चौड़ के ही निवासी है जो कि *श्री कांजी मीणा* है  वे पेशे से किसान है ।
*बांध का कैचमेंट एरिया व वर्तमान स्तिथि यह

बांध में अभी *लगभग 6 फिट 7 इंच* पानी शेष है जो कि *जलीय जीवों* व पशु पक्षियों के लिये प्रसाशन ने रिजर्व रखा है। पिछले साल  15 अगस्त के कुछ दिन बाद से बांध की *वेस्टवेयर*(ऊपराल)  लगभग 1 से डेढ़ महीने चली थी । बांध का केचमेंट एरिया 19 हजार 607 हेक्टेयर है !(4 पक्के बीघा में एक हेक्टेयर होता है!) दोनो केनाल को मिलने के बाद लगभग 129 किलोमीटर नहरों का फैलाव है जिनसे पिलाई होती होती है इसमें  मुख्य नहर, माइनर सहित सभी शामिल है।।
*पिछले साल पूर्ण भराव से किसानों को इतना लाभ 
गौरतलब है साल 2019 में मोरेल बांध 21 साल बाद झलका था जिसकी नहर *लगभग 90 दिन* चली थी और लगभग *3 लाख 12 हजार पक्के बीघा* में इससे सिचाई हुई थी! इस साल किसानों के बम्पर पैदावार हुई थी और क्षेत्र में खरीफ की फसल में गेहूं का रकबा भी बढ़ गया था।।

**इन गावो में होती है सिंचाई* 
जिले के बामनवास में करेल, पीपलदा , टिगरिया , बेरखेड़ी, बाटोदा, बरनाला , चैनपुरा ,टोंड, जस्टाना, निमोद, अनियाला, मलारना चौड़ , भाड़ौती, बड़ागाँव उर्फ कहार, चक रसूलपुरा सहित मलारना डूंगर के **55 राजस्व गांवों* में सिचाई होती है* लालसोट तहसील के कांकरिया ,सुन्दरपुर, कल्याणपुरा, रायपुरा, धोराला, बगड़ी व बिलौना सहित कई गांवों में सिचाई होती है।।


*मोरेल से लंबे दिनों तक तालाबो की नगरी मलारना चौड़ बन जाता है टापू

मोरेल बांध की नहर गांव के सभी मुख्य तालाबो से कनेक्ट है जिससे तालाबो में पानी की आवक रहती है और तालाब लगभग ओवरफ्लो हो जाते है जिससे मलारना चौड़ सही दर्जनों गांवों का *जलस्तर* अच्छा बना रहता है । कस्बे के पांचों तालाब भरने के बाद मलारना चौड़ एक टापू की तरह नजर आता है मलारना चौड़ राज्यभर में जलसरङ्क्षण में अपना सर्वोच्च स्थान रखता है यहाँ की जलप्रबंधन प्रणाली देखते ही बनती है यहाँ एक तालाब दूसरे तालाब से इस प्रकार कनेक्टेड की की पानी व्यर्थ नही जाता ।।