जाने आखिर क्यों प्रिय है भगवान शिव को काशी नगरी-के सी शर्मा


देवों के देव महादेव का संसार के कण-कण में विराजमान हैं. लेकिन कहा जाता है कि भगवान शिव को काशी नगरी बहुत प्रिय है। लोग तो वाराणसी को भगवान शिव की ही नगरी कहते हैं। क्योंकि समूची काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है। भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान है।

काशी में जो भी आ गया वो भोलेनाथ के रंग में रंग जाता है। हर दिन भगवान शिव के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रहती है। लेकिन सावन आते ही भगवान शिव के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर के दर्शन को मोक्ष प्रदायी माना जाता है। इस मंदिर का दर्शन करने वालों में आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वांमी विवेकानंद, स्वाआमी दयानंद, गोस्वारमी तुलसीदास जैसे बड़े महापुरुष रहे।

क्या है मान्यता-
हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं काशी तीनों लोकों में न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। मान्यता है कि जिस जगह ज्योतिर्लिग स्थापित है वह जगह लोप नहीं होती और जस का तस बना रहती है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस नगरी में आकर भगवान शिव का पूजन और दर्शन करता है उसको समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

इतिहास-
इस मंदिर का 3,500 वर्षो का लिखित इतिहास है। इस मंदिर का निर्माण कब किया गया था इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए लेकिन उतनी ही बार इसका निर्माण भी किया गया। बार-बार के हमलों और पुन: निर्मित किये जाने के बाद मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था।

पौराणिक कथा-
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग के संबंध में भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़ कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया।

माना यह भी जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।

हिंदुओं का सबसे पूज्य मंदिर-
काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू मंदिरों में अत्यंत प्राचीन है। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण लेपन होने के कारण इसे स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं। इस पर महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान स्वर्ण लेपन करवाया था। मंदिर के अंदर चिकने काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग है। मंदिर के ठीक बगल में ज्ञानवापी मस्जिद है। फाल्गुन शुक्ल एकादशी (23 मार्च) को यहां श्रृंगारोत्सव का आयोजन होता है।

काशी विश्वनाथ की भव्य आरती-

काशी विश्वनाथ में की जाने वाली आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां दिन में पांच बार आरती आयोजित की जाती है। मंदिर रोजाना 2.30 बजे खुल जाता है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में तड़के सुबह की मंगला आरती के साथ पूरे दिन में चार बार आरती होती है। भक्तों के लिए मंदिर को सुबह 4 से 11 बजे तक के लिए खोल दिया जाता है फिर आरती होने के पश्चात दोपहर 12 से सायं 7 बजे तक दोबारा भक्तजन मंदिर में पूजा कर सकते हैं। सायं सात बजे सप्त ऋषि आरती का वक्त होता है। उसके बाद 9 बजे तक श्रद्धालु मंदिर में आ जा सकते हैं। 9 बजे भोग आरती शुरू की जाती है इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित है। रात 10.30 बजे शयन आरती का आयोजन किया जाता है। मंदिर रात 11 बजे बंद कर दिया जाता है।