भगवान शिव का पवित्र महीना सावन का प्रारंभ हो चुका है। भगवान शिव को रुद्राक्ष प्रिय है। साधु-संत और शिवजी के भक्त रुद्राक्ष विशेष रूप से धारण करते हैं। इसको पहनने से महादेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, ये कितने प्रकार का होता है, इसके बारे में जानना चाहिए। आइये जानते हैं रुद्राक्ष की कथा और उसके स्वरूपों के बारे में शिव ने पार्वती जी से क्या कहा।
रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा
एक बार शिव ने जब एक हजार वर्ष की साधना की, उसके पश्चात समाधि से जाग्रत होने पर जब उन्होंने बाहरी जगत को देखा तो उनके नेत्रों से एक जल बिंदु पृथ्वी पर जा गिरा। उसी बिंदु से एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई, जिसे रुद्राक्ष कहा गया। भगवान शिव की इच्छा से वह सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैल गया और मानव जाति के लिए आज भी एक आशीर्वाद है।
रुद्राक्ष शांतिदायक, मुक्तिदायक, पुण्यवर्धक और कल्याणकारी है। शिव ने पार्वती जी को इसकी अद्भुत शक्तियों के बारे में बताया और कहा कि जो मनुष्य रुद्राक्ष धारण करता है वो शिव प्रिय होता है तथा उसकी समस्त मनोकामना पूरी होती हैं।
जो लोग रुद्राक्ष धारण करते हैं, उन्हें अधार्मिक कामों से बचना चाहिए। मांसाहार और नशे से दूर रहना चाहिए। रुद्राक्ष तीन तरह के होते हैं। कुछ रुद्राक्ष आकार में आंवले के समान होते हैं। ये रुद्राक्ष सबसे अच्छे माने जाते हैं। कुछ रुद्राक्ष बेर के समान होते हैं, इन्हें मध्यम फल देने वाला माना जाता है। तीसरे प्रकार के रुद्राक्ष का आकार चने के बराबर होता है। इन रुद्राक्षों को सबसे कम फल देने वाला माना गया है।
रुद्राक्ष से जुड़ी ये बातें ध्यान रखनी चाहिए
अगर कोई रुद्राक्ष खराब है, टूटा-फूटा है या पूरा गोल नहीं है तो ऐसे रुद्राक्ष को धारण करने से बचना चाहिए। जिस रुद्राक्ष में उभरे हुए छोटे-छोटे दाने न हों, ऐसे रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने की सामान्य विधि
रुद्राक्ष सोमवार को धारण करना चाहिए। किसी अन्य शुभ मुहूर्त में भी रुद्राक्ष धारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत या गंगाजल डालकर पवित्र करना चाहिए। अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप-दीप, फूल आदि से शिवलिंग और रुद्राक्ष की पूजा करें। शिव मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप 108 बार करें। लाल धागे में, सोने या चांदी के तार में पिरोकर रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के बाद रोज सुबह शिवजी की पूजा करनी चाहिए।