सूरसागर तालाब के अस्तित्व पर मंडराया खतरा, गड्ढे ने ली तालाब की जगह। मुख्य नाला अवरुद्ध होने से घरों में घुसा गंदा बरसाती जल। लोगों के सामने खड़ी हुई समस्या


सवाई माधोपुर/ मलारना डूंगर @ रिपोर्ट चंद्रशेखर शर्मा। उपखंड क्षेत्र के मलारना चौड़ कस्बा स्थित सूरसागर तालाब से पानी की समुचित निकासी के लिए बनाए गए नाले की वर्षा पूर्व सफाई नहीं होने से नाला बरसाती पानी के भराव के चलते अवरुद्ध हो गया है। ऐसी स्थिति में वहां निवास करने वाले कई परिवारों के घरों तक में पानी भरने की समस्या आ खड़ी हुई है । कचरा और गंदगी तथा दुर्गंध युक्त पानी से सूरसागर  तालाब के किनारे घरों में निवास करने वाले लोगों के सामने एक और जहां घरों में पानी घुसने से उठने बैठने तक की समस्या खड़ी हुई है । वही दूषित व गंदे जल से किसी मौसमी बीमारी के फैलने का खतरा भी मंडराने लगा है। पीड़ित लोगों में शामिल
शंकर लाल कीर और सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि कस्बे के आधे हिस्से का बरसाती पानी सड़कों व नालियों में बहते हुए बड़े नाले के द्वारा अंत में  सूरसागर ताला में जाकर मिलता है। जिसकी एक छोर से दूसरे छोर पर पानी की निकासी के लिए व बाकायदा पूर्व ग्राम पंचायत प्रशासन द्वारा नाले का निर्माण भी करवाया हुआ है, परंतु कुछ समय से नाले की  साफ-सफाई नहीं होने एवं संपूर्ण सूरसागर तालाब के चारों ओर बढ़ते अतिक्रमण के कारण सूरसागर तालाब अब एकमात्र तालाब ना रहकर एक गंदे पानी के गहरे गड्ढे के रूप में तब्दील हो चुका है। स्थानीय ग्राम पंचायत प्रशासन की लापरवाही की वजह से पूरे सूरसागर तालाब को अतिक्रमणकारियों द्वारा चारों तरफ से अतिक्रमण की चपेट में लेकर अवैध निर्माण 
कार्य से लेकर के कच्चे- पक्के मकान ही नहीं बल्कि पुख्ता निर्माण कार्य कर दुकानें एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा आवास घर तक बना लिए गए है ।और भ्रष्टाचारी का आलम यह है, कि पूर्व ग्राम पंचायत प्रशासनों द्वारा अवैध रूप से इन अतिक्रमियों को पट्टे तक भी जारी किए जा चुके हैं। यही वजह है कि मलारना चौड़ कस्बे के आधे हिस्से का पानी जब भी जोर मारता है,(विशेषकर वर्षा काल में) तब उचित जलभराव के लिए जगह की कमी के चलते गड्ढे रूपी सूरसागर तालाब के जल स्तर मैं अचानक बढ़ोतरी हो जाती है ,और पानी सूरसागर के किनारे बसे लोगों के घरों में आ घुसता है। पीड़ित लोगों ने बताया कि अभी तो बरसात का मौसम सिर्फ शुरू ही हुआ है , ऐसे में हमारे घरों में पानी भरने की समस्या आ खड़ी हुई  है। घरों में बैठने तक की जगह नहीं बची है। इस स्थिति में वह करें भी तो क्या करें। लोगों ने बताया कि मामले को लेकर स्थानीय ग्राम पंचायत सरपंच रुक्मणी देवी मीणा से बात कर समस्या से अवगत कराया गया है है। जिसके चलते उन्होंने समस्या के शीघ्र निराकरणार्थ नाले की सफाई करवाने एवं अतिक्रमण के खिलाफ उचित कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है।
                              कहने को तो किसी जमाने में मतलब एक दशक पूर्व के कालखंड में कस्बे का सूरसागर तालाब अपने आप में बहुत महत्व रखता था, क्योंकि भीषण आकाल के समय में भी किसानों की जीवन रेखा के रूप में सूरसागर तालाब कि अपनी खुद की पहचान थी। जो कि आज के दिनों में अतिक्रमण की भेंट चढ़कर अपना संपूर्ण अस्तित्व खो चुका है,आज हालात यह है, कि सूरसागर तालाब अपने अस्तित्व पर मंडराते खतरे को देखते हुए आंसू बहाने पर मजबूर है। क्योंकि अब यह तालाब 10 - 15 फ़ीट के दायरे में सिमट गया है और उसकी पहचान भी अब एक से गड्ढे के रूप में ही रह गई है।

अब सोचने योग्य पहलू यह है कि, सूरसागर का अस्तित्व हमारे लिए क्यों जरूरी है,और हमने उसे और उसने हमें हमे क्या दिया है ? सर्वविदित है कि  मौसम की पहली या दूसरी हल्की बारिश से ही सूरसागर तालाब का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे कई घरो की दहलीज तक पानी पहुंच गया है। तो बारिश से पूर्व नालों की साफ -सफाई न हो होना भी बाद में परेशानी का सबब बन सकता है।
कस्बे के ही निवासी एवं शोधकर्ता विक्रम कुमार मीणा जो कि पेशे से एक शिक्षक है का इस संबंध में कहना है कि, सूरसागर तालाब के नामकरण की भी रोचक कथा है।
कस्बे मलारना चौड़ में छोटे- बड़े एवं नए- पुराने आधा दर्जन तालाब और करीब एक दर्जन ताल - तलैया सहित लगभग 500 एनीकट मौजूद है। जिनमें से प्रमुख रूप से तालाबों का नाम देव-देवताओं या किसी इंसान वह जाती या फिर किसी प्रचलित जगह के नाम से  रखा गया है, तो ताल-तलैयाओ का नामकरण किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर रखा गया है जैसे राम सागर तालाब दुर्गा सागर तालाब  रावत की तलाई आदि। लेकिन  सूरसागर तालाब का नामकरण प्रसिद्ध हिंदी के कवि *सूरदास जी* के प्रसिद्ध हिंदी ग्रन्थ *सूरसागर* पर हुआ है । गांव के कई लोग इसे *चुर्ड्या ,चुड़या*.  अपभ्रंश *CHURDYA* के नाम से भी जानते है ।
गांव का एक एकमात्र तालाब जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता हैं , वही तालाब आज अतिक्रमण की भेंट चढ़कर अपना अस्तित्व खो चुका है।
 
गांव का एकमात्र यही वो तालाब है, जो वर्षभर भरा रहता था, क्योंकि इसमें गांव की आबादी का लगभग 30 से 35% हिस्से का घरेलू काम में उपयोग किया हुआ पानी नाली व सड़कों के माध्यम से बहकर आता रहता है। जिससे इसमे कभी भी पानी की आवक नहीं रुकी नहीं यह कभी पाने के अभाव में सूखा। लेकिन आज हालात बिल्कुल उलट है।                                 यह तालाब अक्सर भीषण आकाल के दौर में भी पशु- पक्षियों के लिए पीने के पानी व किसानों की फसलों के लिए जीवन रेखा के रूप में जाना - पहचाना गया है। किसान इस तालाब के पानी को लगभग 2-2 किलोमीटर दूर तक ईंजनों एवं ढंड सागर की लुप्तप्राय नहर से खेतों तक पहुंचाते रहें  है । तालाब के पानी से बाईपास से ऊपर की जमीनों जिन्हें हम निम्न नामों से जानते है - भुताला, हीरामन वाली कोठी ,आदि यहां तक कि बड़वालों व पीपलीवालों की ढ़ाणी तक इसका पानी किसान ले जाते रहे है ,जो कि आकाल के समय किसानों के वर्षभऱ जीने का साधन बनता था । बदले में हमने इसको अतिक्रमण के सिवा कुछ भी नही दिया है।
अतिक्रमण के कारण सूरसागर अपनी किस्मत पर खून के आंसू रो-रहा है । यह अतिक्रमण आज से नहीं पिछले कई साल पूर्व से बढ़ रहा है । ग्रामीणों का मानना है कि  बस स्टैंड बालाजी मंदिर से लेकर यह तालाबी जमीन शुरू होती है और तलाबी जमीन में निर्माण करना नियम विरूद्ध है। ग्रामीणों के अनुसार कालांतर में 22-23 बीघा का तलाब आज लगभग *महज 2 बीघा* में सिमटकर रह गया ।। 
 जैसे हमे हमारा अस्तित्व बनाये रखेंने के लिये सास लेना जरूरी है वैसे ही तालाबों को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए पानी जरूरी है और पानी नदी-नालों से ही आता है ।