वह संस्कार जिसमें बालक को चूड़ा अर्थात् शिखा दी जाए मुण्डन संस्कार को चूड़ाकरण संस्कार या चौलकर्म भी कहते है जिसका अर्थ है—वह संस्कार जिसमें बालक को चूड़ा अर्थात् शिखा दी जाए बच्चे का मुण्डन संस्कार कराने के पीछे हमारे ऋषि-मुनियों की बहुत गहरी सोच थी ।
माता के गर्भ से आए सिर के बाल अपवित्रमाने गये हैं ।
इनके मुण्डन का उद्देश्य बालक की अपवित्रता को दूर कर उसे अन्य संस्कारों (वेदारम्भ, यज्ञ आदि) के योग्य बनाना है क्योंकि मुण्डन करते हुए यह कहा जाता है कि इसका सिर पवित्र हो, यह दीर्घजीवी हो। अत: यह बालक के स्वास्थ्य व शरीर के लिए नया संस्कार है।
दूसरी बात गर्भ के बाल झड़ते रहते हैं जिससे शिशु के तेज की वृद्धि नहीं हो पाती है ।
इन केशों को मुंडवा कर शिखा रखी जाती है ।
कहीं-कहीं पर पहले मुण्डन में नहीं वरन् दूसरी बार के मुण्डन में शिखा छोड़ते हैं ।
शिखा से आयु और तेज की वृद्धि होती है ।
मुण्डन बालिकाओं का भी होता है, किन्तु उनकी शिखा नहीं छोड़ी जाती है ।
उत्तम, मध्यम व अधम श्रेणी का मुण्डन संस्कार
शास्त्रों में जन्मकालीन बालों का बच्चे के प्रथम, तीसरे या पांचवे वर्ष में या कुल की परम्परानुसार शुभ मुहुर्त में मुण्डन करने का विधान है ।
जन्म से तीसरे वर्ष में मुण्डन संस्कार उत्तम माना गया है ।
पांचवे या सातवें वर्ष में मध्यम और दसवें व ग्यारहवें वर्ष में मुण्डन संस्कार करना निम्न श्रेणी का माना जाता है ।
बच्चे का मुण्डन शुभ मुहुर्त में किसी देवी-देवता या कुल देवता के स्थान पर या पवित्र नदी के तट पर कराया जाता है ।
अपने गोत्र की परम्परानुसार मुण्डन करके बालों को नदी के तट पर या गोशाला में गाड़ दिया जाता है ।
कहीं-कहीं कुल देवता को ये बाल समर्पित कर फिर उन्हें विसर्जित किया जाता है,
मुण्डन करने के बाद बच्चे के सिर पर दही-मक्खन, मलाई या चंदन लगाया जाता है।
कुछ लोग मुण्डन के बाद बालक को स्नान कराकर सिर पर सतिया (स्वास्तिक) बना देते हैं ।
मुण्डन में अपने परिवार की परम्परा और रीतियों के अनुसार ही पूजा-पाठ और दान-पुण्य व अन्य मांगलिक कार्य किए जाते हैं ।
यजुर्वेद (३।६३) में मुण्डन संस्कार पर एक श्लोक है जिससे स्पष्ट होता है कि मुण्डन संस्कार से बच्चे को कितने लाभ हैं—
‘नि वर्त्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ।।’
अर्थात्—हे बालक ! मैं तेरे दीर्घायु के लिए, उत्पादन शक्ति प्राप्त करने के लिए,ऐश्वर्य वृद्धि के लिए, सुन्दर संतान के लिए, बल और पराक्रम प्राप्त करने के योग्य होने के लिए तेरा मुण्डन-संस्कार करता हूँ।
आचार्य चरक ने मुण्डन संस्कार का महत्व बताते हुए कहा है कि इससे बालक की आयु, पुष्टि, पवित्रता और सौन्दर्य में वृद्धि होती है ।
मुण्डन संस्कार के अनेक मन्त्रों का भी यही भाव है कि—‘सूर्य, इन्द्र, पवन आदि सभी देव तुझे दीर्घायु, बल और तेज प्रदान करें ।’
—मुण्डन संस्कार बालक के आयु, सौन्दर्य, तेज और कल्याण की वृद्धि के लिए किया जाता है ।
शुभ मुहूर्त में नाई से बच्चे का मुण्डन कराया जाता है और मर्मस्थान की सुरक्षा के लिए सिर के पिछले भाग में चोटी रखने का विधान है ।
बालक का मुण्डन कराने के बाद उसके सिर में मलाई या दही, मक्खन आदि की मालिश की जाती है जिससे मस्तिष्क के मज्जातन्तुओं को कोमलता, शीतलता और शक्ति प्राप्त होती है ।
आगे चलकर यही उसकी बुद्धि के विकास में सहायक होती है क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के लिए सिर ठण्डा होना चाहिए ।
—अधिकांशत: मुण्डन प्रथम या तीसरे वर्ष में किया जाता है ।
यह समय बच्चे के दांत निकलने का होता है ।
इसके कारण शरीर में कई तरह की परेशानियां होती हैं ।
बच्चे का शरीर निर्बल होकर उसके बाल झड़ने लगते हैं ।
हमारे शास्त्रकारो ने ऐसे समय में मुण्डन कराने का विधान बच्चे को अस्वस्थ होने से बचाने के लिए ही किया ।
—यह संस्कार त्वचा सम्बन्धी रोगों के लिए बहुत लाभकारी है ।
शिखा को छोड़कर शेष बालों को मूंड़ देने से शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है
और
उस समय होने वाली फुंसी, दस्त आदि बीमारियों स्वयं कम हो जाती हैं ।
एक बार बाल मूंड़ देने के बाद बाल फिर झड़ते नहीं, वे बंध जाते हैं ।
इस प्रकार मुण्डन संस्कार का उद्देश्य बालक की स्वच्छता, पवित्रता, सौन्दर्य वृद्धि और पुष्टि है ।
मनुष्य की समस्त शारीरिक क्रियाओं का केन्द्र मस्तिष्क ही है ।
यदि मस्तिष्क स्वस्थ है तो मनुष्य सौ वर्ष तक दीर्घजीवी हो सकता है।