जाने क्यों भगवान कृष्ण मोर पंख को अपने सर पर सजाते है?-के सी शर्मा

जाने क्यों भगवान कृष्ण मोर पंख को अपने सर पर सजाते है?-के सी शर्मा


जब भी हमारे मुख से कृष्णा जी जिक्र होता है तो उनकी छवि में सबसे पहले मोर पंख सबसे पहले ख्याल में आता है !

मोर पंख - भगवान कृष्ण और मोरों का बहुत पुराना नाता है.

आज हमें और आपको एक मामूली से पंछी की रूप में दिखने वाले ये मोर भगवान के समय में अलग स्थान रखते थे.

भगवान् कृष्ण अपने पास एक बांसुरी रखते हैं और दूसरा अपने मुकुट में मोर पंख. आपने भी कई बार इन मोर पंखों को भगवान के मुकुट में देखा होगा. आख़िर ऐसा क्या है और क्यों सिर्फ

मोर पंख ही भगवान अपने सिर पर सजाते हैं?

इसके कई कारण हैं. मोर ही एक मात्र ऐसे पंछी हैं जो कभी संसर्ग नहीं करते. उनके और उनकी मादा के बीच कभी सम्भोग नहीं होता. जब नर मोर मगन होकर नाचता है तो उसके मुंह से कुछ गिरता है जिसे खाकर मादा मोर बच्चे को जन्म देती है.

इसलिए मोर को पवित्र मन गया है. भगवान कृष्ण इसी पवित्रता के नाते ही मोरों के पंख को अपने सिर पर सजाते हैं.

बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर इस मोर पंख को सजाती थीं. बड़े होने के बाद कृष्ण खुद भी इसे अपने सर सजाते रहे हैं, जिसका कारण है कि स्वयं भगवान भी मोर की ही तरह पवित्र हैं. भले ही उन्हें रास रचैया कहा जाता है, लेकिन वो इन सब से बहुत दूर रहे हैं.

एक कथा के अनुसार जब कृष्ण भगवान बांसुरी बजाते थे तो राधा रानी मुग्ध होकर नृत्य करने लगती थीं. राधाजी को नृत्य करते देख वहां पर मोर आ जाते थे और वो झूमकर नाचने लगते थे. कृष्ण जी ऐसा देखकर बहुत खुश होते थे. एक बार मोर जब नाच रहे थे तो उनका पंख टूट गया. झट से कृष्ण भगवान् ने उस पंख को उठाकर अपने सर पर सजा लिया.

जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है.

इन कथाओं के आधार पर यह निश्चित होता है कि कृष्ण जी को मोर से बहुत प्यार और लगाव था, इसीलिए वो पंख को हमेशा अपने सर पर सजाते थे।।

एक अन्य कथा के अनुसार वनवास के दौरान माता सीताजी को पानी की प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था.

कुदरत से प्रार्थना करी ~ हे वन देवी!

आसपास जहाँ कहीं पानी हो, वहाँ जाने का मार्ग कृपया सुझाईये। तभी वहाँ एक मयूर ने आकर  श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है। चलिए मैं आपका मार्ग पथ प्रदर्शक बनता हूँ,  किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है.

श्रीरामजी ने पूछा ~ वह क्यों ? 
 तब मयूर ने उत्तर दिया कि ~मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप 
 चलते  हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा। उस के सहारे आप जलाशय तक पहुँच ही जाओगे। 

इस बात को हम सभी जानते हैं कि मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं  एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं । अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध  पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है.

और वही हुआ । अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, उसने मन में ही कहा कि वह कितना भाग्यशाली है, कि जो जगत की प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ ।मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही ।

तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है,
मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा । मेरे सिर पर धारण करके ।।

 तत्पश्चात अगले जन्म में श्री कृष्ण अवतार में उन्होंने अपने माथे पर मयूर पंख को धारण कर वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था । तात्पर्य यही है कि अगर भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव हैं। न जाने हम कितने ही ऋणानुबंध से बंधे हैं। उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे.
            अर्थात  
जो भी भला हम कर सकते हैं,इसी जन्म में हमें करना है। 

जय श्री राधे मोर मुकुट बंसी वाले की