हकीकत का आईंना
जीवन के बहाव में ऐसा बहो की अंत तक पहेली बनी रहे- के सी शर्मा
एक समय की बात है गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था.
पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे। एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा।
जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा, “आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा… चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा.”
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा – रुक जा गंगा…. अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती… मैं तुझे यहीं रोक दूंगा !
पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी… उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है.
पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी.. वो लगातार संघर्ष कर रहा था… नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा जहाँ लड़कर थककर हारकर पहुंचेगा !
पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. उसके संताप का काल बन जाएगा।
वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था।
यह कहता हुआ कि “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…
चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा. तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।
नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं… वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढती जा रही है.
पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है.
आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है !
पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का…. उसके आनंद का काल बन जाएगा।
जो पत्ता नदी से लड़ रहा है… उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है..
और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार को कोई उपाय संभव नहीं है।
जीवन भी उस नदी के सामान है और जिसमे सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं...
और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकना का प्रयास भी करता है तो वह मुर्ख है..
क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है ।
वह अज्ञान में है जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है ।
क्योंकि सुख की धारा जितने दिन बहनी है उतने दिन तक ही बहेगी आप उसे बढ़ा नही सकते,
और अगर आपके जीवन में दुख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा, फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की फिजूल मेहनत करना।
बल्कि जीवन में आने वाले हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश हो कर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ जैसे जीवन आपको नही बल्कि आप जीवन को चला रहे हो ।
सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ।
और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या ? और दुःख क्या ?
जीवन के बहाव में ऐसे ना बहो कि थक कर हार भी जाओ और अंत तक जीवन आपके लिए एक पहेली बन जाये,
बल्कि जीवन के बहाव को हँस कर ऐसे बहाते जाओ की अंत तक आप जीवन के लिए पहेली बन जायें..!